राजस्थान की जनजातियां(Tribes of rajasthan)
इस पोस्ट में राजस्थान की प्रमुख जनजातियों का विस्तृत वर्णन किया गया है | राजस्थान की जनजातियां ( Tribes of Rajasthan)के बारे में राजस्थान की लगभग हर ए
ग्जाम में प्रश्न पूछे जाते है जैसे कि राजस्थान पुलिस, पटवार,रीट,एसआई आदि | आगामी समय में राजस्थान लेवल की सभी एग्जाम के लिए ये टॉपिक काफी महत्वपूर्ण है ......
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ग्जाम में प्रश्न पूछे जाते है जैसे कि राजस्थान पुलिस, पटवार,रीट,एसआई आदि |
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आगामी समय में राजस्थान लेवल की सभी एग्जाम के लिए ये टॉपिक काफी महत्वपूर्ण है ......
4. सहरिया जनजाति (Sahariya Tribe) :
- यह जाति राज्य में बांरा जिले की शहबाद व किशनगंज तहसीलों में निवास करती है।
- इस जनजाति में भीख मांगना वर्जित हैं |
- इस जनजाति में लड़की का जन्म शुभ माना जाता है।
- सहरियों की बस्ती को सहराना कहते है।
- सहरिया जनजाति के मुखिया को कोतवाल कहते हैं |
- सहरिया जनजाति के गांव सहरोल कहलाते है।
- सहरिया जनजाति के गुरू महर्षि वाल्मिकी है।
- सहरिया जनजाति की सबसे बड़ी पंचायत चैरसिया कहलाती है। जिसका आयोजन सीता बाड़ी नामक स्थान पर वाल्मिकी जी के मंदिर में होता है।
- कुसिला :- सहरिया जनजाति में अनाज संग्रह हेतु मिट्टी से निर्मित कोठियां।
- भडे़री :- आटा संग्रह करने का पात्र।
- टापरी :- सहरियों के मिट्टी ,पत्थर, लकडी, और घासफूस के बने घरों को टापरी कहते है।
- टोपा (गोपना, कोरूआ)- घने जंगलों में पेड़ों पर या बल्लियों पर जो मचाननुमा झोपड़ी बनाते है, उसे टोपा कहते है।
- राज्य की सबसे पिछड़ी जनजाति जिसे भारत सरकार ने आदिम जनजाति (पी.टी.जी) में शामिल किया गया है।
* प्रमुख वस्त्र :-
1. सलुकाः- पुरूषों की अंगरखी।
2. खपटाः- पुरूषों का साफा।
3. पंछाः- पुरूषों की धोती।
* प्रमुख मेलें :-
1.सीताबाड़ी का मेला (बांरा) :- वैषाख अमावस्या को सीता बाडी नामक स्थान पर भरता है।
- यह मेला हाडौती आंचल का सबसे बडा मेला है।
- इस मेले को सहरिया जनजाति का कुंभ कहां जाता है।
2.कपिल धारा का मेला (बांरा) :- यह मेला कार्तिक पूर्णिमा को आयोजित होता है।
* प्रमुख नृत्यः- शिकारी नृत्य
5. कंजर जनजाति (Kanjar tribe) :
- कंजर जनजाति राज्य के हाडौती क्षेत्र में निवास करती है।
- 'कंजर' शब्द "काननचार" से उत्पन्न हुआ है जिसका शब्दिक अर्थ है जंगल में विचरण करने वाला।
- यह जनजाति अपराध प्रवृति के लिए कुख्यात है।
- इस जनजाति के लोग मृतक व्यक्ति के मुख में शराब की बूंदे डालते है।
- इस जनजाति के लोग हाकम राजा का प्याला पीकर कभी झूठ नहीं बोलते।
- कंजर जनजाति के कुल देवता हनुमान जी तथा कुल देवी चौथ माता है।
* पाती मांगना :- कंजर जनजाति के लोग अपराध करने से पूर्व अपने अराध्य देव का आशीर्वाद प्राप्त करते है, जिसे पाती मांगना कहां जाता है।
- इस जनजाति के घरों में मुख्य दरवाजे के स्थान पर छोटी-छोटी खिडकियां बनी होती है जो भागने में सहायता करती है।
प्रमुख नृत्य :- चकरी नृत्य
* प्रमुख मेला :- चैथर माता का मेला (चौथ का बरवाड़ा - सवाईमाधोपुर)
- यह मेला माघ कृष्ण चतुर्थी को भरता है।
- यह मेला "कंजर जनजाति का कुम्भ" कहलाता है।
6. कथौडी जनजाति (Kathodi tribe) :
- यह जनजाति राज्य में उदयपुर जिले की कोटड़ा झालौड व सराडा तहसीलों में निवास करती हैं ।
- यह जनजाति मूल रूप से महाराष्ट्र की जनजाति है।
- इस जनजाति के लोग दूध नहीं पीते।
- इस जनजाति का पसंदीदा पेय पदार्थ महुआ की शराब है।
- गाय तथा लाल मुंह वाले बन्दर का मांस खाना पसंद करते है।
- यह जनजाति खैर के वृक्ष से कत्था तैयार करने में दक्ष मानी जाती है।
- कथौडी जनजाति की महिलाऐं मराठी अंदाज में एक साड़ी पहनती है जिसे फड़का कहते है।
* वाद्ययंत्र :- तारपी, पावरी (सुषिर श्रेणी के)
* प्रमुख नृत्य :- मावलिया, होली आदि |
7. डामोर जनजाति (Damor tribe) :
- यह जनजाति मुख्यतः डूंगरपुर जिले की सिमलवाड़ा पंचायत समिति में निवास करती है।
- इस जनजाति की उत्पत्ति राजपूतों से मानी जाती है।
- इस जनजाति के लोग एकलवादी होते है। शादी होते ही लड़के को मूल परिवार से अलग कर दिया जाता है।
- यह जनजाति मांसाहारी होती है।
- इस जनजाति के पुरूष महिलाओं के समान अधिक आभूषण पहनते है।
- डामोर जनजाति की पंचायत के मुखिया को मुखी कहते है।
चाडि़या :- होली के अवसर पर डामोर जनजाति द्वारा आयोजित उत्सव को चाडि़या कहते है।
* प्रमुख मेला :- ग्यारस रेवाड़ी का मेला
- डूंगरपुर में अगस्त- सितम्बर माह में आयोजित होता है।
8. सांसी जनजाति(Sansi tribe) :
- खानाबदोश जीवन यापन करने वाली सांसी जनजाति सर्वाधिक भरतपुर जिले मे निवास करती है।
- इस जनजाति की उत्पत्ति सांसमल नामक व्यक्ति से मानी जाती है।
- सांसी जनजति के दो वर्ग है
1. बीजा :- धनादय वर्ग
2. माला :- गरीब वर्ग
- सांसी जनजाति में विधवा विवाह का प्रचलन नहीं है।
- इस समाज में किसी विवाद की स्थिति में हरिजन व्यक्ति को आमंत्रित किया जाता है।
प्रमुख मेला :- पीर बल्लूशाह का मेला
- संगरिया में जून माह मे भरता है।
अन्य महत्वपूर्ण तथ्य
* नातरा प्रथा :- आदिवासियों में प्रचलित विधवा पुनर्विवाह की प्रथा है।
* कीकमारी :- विपदा के समय जोर-जोर से चिल्लाने की आवाज |
* मावडि़या :- आदिवासियों में प्रचलित बन्धुआ मजदूर प्रथा है।
* बपौरी :- दोपहर के विश्राम का समय "बपौरी" कहलाता है।
* लोकाई/कांधिया :-आदिवासियों में प्रचलित मृत्युभोज की प्रथा है।
* भराड़ी :- आदिवासियों विशेशकर भीलों में प्रचलित वैवाहिक भित्ति चित्रण की लोक देवी है।
* लीला मोरिया संस्कार :- आदिवासियों में प्रचलित विवाह से संबंधित संस्कार है।
* हलमा/हांडा/हीड़ा :- आदिवासियों में प्रचलित सामुहिक सहयोग की प्रथा/भावना है।
* दापा करना :- आदिवासियों में विवाह के लिए वर द्वारा वधू का चुकाया गया मूल, दापा कहलाता है।
* मारू ढोल :- गंभीर संकट अथवा विपत्ति के समय ऊंची पहाड़ी पर चढ़कर जोर-जोर से ढोल बजाना अर्थात् सहयोग के लिए पुकारना।
* पाखरिया :- जब कोई भील किसी सैनिक के घोडे़ को मार देता है तो उस भील को पाखरिया कहा जाता है। यह सम्माननीय शब्द है।
* मौताणा :- उदयपुर संभाग में प्रचलित प्रथा है, जिसके अन्तर्गत खून-खराबे पर जुर्माना वसूल किया जाता है वसूली गई राशि वढौतरा कहलाती है।
* हुण्डेल प्रथा :- जब दो या दो से अधिक परिवार मिलकर सामुहिक रूप से अपने सीमित संसाधनों द्वारा जो कार्य करते है।
* हमेलो :- आदिवासियों में प्रचलित जनजातिय उत्सव है, जिसका आयोजन "माणिक्य लाला वर्मा आदिम जाति शोध संस्थान" द्वारा किया जाता है। इस उत्सव के आयोजन का उद्देश्य अदिवासियों की सांस्कृतिक परम्पराओं को बनाए रखना है।
- यह बांसवाड़ा के कुशलगढ़ क्षेत्र की विशिष्ट परम्परा है।
-राज्य की अधिकांश जनजातिया उदयपुर जिले मे निवास करती है।
- जिस भील कन्या का विवाह होता है उसके घर की दीवार पर जंवाई के द्वारा हल्दी रंग से लोक देवी का चित्रण किया जाता है।
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