राजस्थान के प्रमुख वाद्य यंत्र (Major instruments of Rajasthan)
वाद्य यंत्र :-
कोई भी वस्तु जो ध्वनि पैदा करती है, वाद्य यंत्र कहलाती है |- वाद्य यंत्रों को कुल 4 भागो मे बाटा जाता है |
A. तत् वाद्य यंत्र
B. सुषिर वाद्य यंत्र
C. अवनद्ध वाद्य यंत्र या ताल वाद्य यंत्र
D. घन वाद्य यंत्र
1. तत् वाद्य यंत्र-
- जिन वाद्य यंत्रों में तार का प्रयोग होता है तथा तारों के माध्यम से विभिन्न आवाजें निकाली जाती है वे वाद्य यंत्र तत् वाद्य यंत्र कहलाते है।
2. सुषिर वाद्य यंत्र-
- जिन वाद्य यंत्रों को फुक मारकर या हवा के माध्यम से बजाया जाता है उन्हे सुषिर वाद्य यंत्र कहा जाता है।
3. अवनद्ध वाद्य यंत्र या ताल वाद्य यंत्र-
- जिन वाद्य यंत्रों को पशुओं की खाल से बनाया जाता है उन्हे अवनद्ध वाद्य यंत्र कहा जाता है तथा अवनद्ध वाद्य यंत्रों को ताल वाद्य यंत्र भी कहा जाता है।
4. घन वाद्य यंत्र-
- जो वाद्य यंत्रों को धातु से बना होता है तथा जिनमें चोट तथा आघात करने से स्वर उत्पन्न होता है उन्हे घन वाद्य यंत्र कहा जाता है।
- राजस्थान के जोधपुर जिले में सन् 1976-77 में लोक वाद्य संग्रहालय की स्थापना की गई थी।
(A). तत् वाद्य यंत्र
1. जंतर या जन्तर-
- जंतर वाद्य यंत्र को वीणा का प्रारम्भिक रूप माना जाता है तथा आकृति भी वीणा जैसी ही होती है।- जंतर तत् वाद्य यंत्र का प्रयोग देवनारायण जी की फड़ का वाचन करते समय गुर्जर जाति के भोपों के द्वारा किया जाता है।
- जंतर तत् वाद्य यंत्र का प्रयोग मुख्यतः नागौर, अजमेर तथा भीलवाड़ा जिलों में किया जाता है।
2. सारंगी-
- सभी तत् वाद्य यंत्रों में सागंरी सर्वश्रेष्ठ वाद्य यंत्र है।- सारंगी वाद्य यंत्र सागवान की लकड़ी से बना होता है।- इसमें तारों की संख्या 27 होती है।
- इसका वादन घोड़े की पूंछ के बालों से निर्मित गज के द्वारा किया जाता है।
- सारंगी वाद्य यंत्र जैसलमेर व बाड़मेर जिलों की लंगा जाति का मुख्य वाद्य यंत्र माना जाता है।
- पण्डित रामनारायण, रज्जब अली व अल्लादीया खां सारंगी वादक है।
(अ) जोगिया सारंगी-
- इसको अलवर, भरतपुर के भर्तृहरि जोगियों द्वारा भजन व लोक कथाओं में भपंग के साथ बजाया जाता है।
(ब) जड़ी सारंगी-
- जड़ी सारंगी का प्रयोग जैसलमेर जिले में मांगणियारों द्वारा किया जाता है।
3. इकतारा-
- इकतारे का संबंध भगवान नारद जी से माना जाता है।- यह वाद्य यंत्र नाथ साधु सन्यासियों व भजन मण्डली के द्वारा बजाया जाता है।
- इकतारा मीरा का प्रिय वाद्य यंत्र था।
4. रावण हत्था-
- यह वाद्य यंत्र आधे कटे नारियल के खोल पर बकरे की खाल चढ़ाकर बनाया जाता है।- इसमें तारों की संख्या 9 होती है।
- पाबुजी के अलावा डूंगजी तथा जवाहरजी के भोपे भी रावण हत्था बजाते है।
5. कमायचा या कामायचा-
- यह इरानी वाद्य यंत्र है।- इसमे में 19 तार होते है।
- कामायचा सारंगी के समान वाद्य यंत्र होता है।
- यह वाद्य यंत्र राजस्थान के बाड़मेर व जैसलमेर के मांगणियार व लंगा जाति के लोगों के द्वारा बजाया जाता है।
- नाथ पंथ के साधु भर्तृहरि व गोपीचंद की कथा के गीत कामायचा वाद्य यंत्र के साथ गाते है।
6. भपंग-
- यह वाद्य यंत्र डमरू की आकृति के समान है।- यह वाद्य यंत्र तुबे से बना होता है।
- जहुर खां मेवाती को भपंग का जादुगर कहा जाता है।
- यह वाद्य यंत्र राजस्थान के अलवर जिले का लोकप्रिय वाद्य यंत्र है।
- राजस्थान में अलवर जिले के जोगी जाति के लोग भपंग वाद्य यंत्र के साथ राजा भर्तृहरि, भक्त पूरणमल व हीर रांझा आदि की लोक गाथाएं गाते है।
7. तंदूरा या तम्बूरा-
- इस वाद्य यंत्र में 4 तार होते है।- तम्बूरा वाद्य यंत्र को वेणी भी कहा जाता है।
- इस यंत्र को कामड़ जाति के लोगों के द्वारा बजाया जाता है।
8. रबाब या रवाब-
- रबाब वाद्य यंत्र अलवर तथा टोंक जिलों का लोकप्रिय वाद्य यंत्र है।- यह वाद्य यंत्र को मेव व भाट जातियों के द्वारा बजाया जाता है।
9. रबाज-
- इस वाद्य यंत्र में 12 तार होते है।- रबाज वाद्य यंत्र अंगुली के नाखुनों से बजाया जाता है।
- यह वाद्य यंत्र पाबुजी की लोकगाथा गाते समय भील जाति के भोपों के द्वारा बजाया जाता है।
- मेवाड़ में रावल तथा भाट जाति के द्वारा रम्मत नामक लोक नाट्य में रबाज वाद्य यंत्र बजाया जाता है।
10. गुजरी-
- यह वाद्य यंत्र रावण हत्था से छोटा तथा रावण हत्था जैसा ही होता है।- यह वाद्य यंत्र में 5 तार हाते है।
11. सुरमण्डल-
- यह वाद्य यंत्र प्राचीन काल में कोकिला वीणा के नाम से प्रसिद्ध था।- यह यंत्र को पश्चिमी राजस्थान में मांगणियार लोगों के द्वारा बजाया जाता है।
12. दुकाको-
- दुकाको वाद्य यंत्र भील समुदाय के द्वारा दीपावली के अवसर पर बजाया जाता है।13. सुरिन्दा-
- सुरिन्दा वाद्य यंत्र लंगा जाति के द्वारा बजाया जाता है।(B) सुषिर वाद्य यत्र-
1. शहनाई-
- सुषिर वाद्य यंत्रों में शहनाई को सर्वश्रेष्ठ माना गया है।- इसको सुरीला व मांगलिक वाद्य यंत्र माना जाता है।
- इसका निर्माण शिशम की लकड़ी या सांगवान की लकड़ी से होता है।
- शहनाई की आकृति चिलम के समान होती है।
- शहनाई में कुल छेदु की संख्या 8 होती है।
- शहनाई का प्रमुख वादक बिस्मिल्लाह खां है।
- शहनाई को सुंदरी भी कहा जाता है।
- इसको विवाह के अवसर पर नगाड़े के साथ बजाया जाता है।
2. अलगोजा-
- इसमें चार छेदों वाली दो बांसुरीयां होती है।- इसे कोटा, बूंदी, अजमेर व अलवर जिलों के गुर्जर, मेव व धाकड़ जाति के लोगों के द्वारा बजाया जाता है।
- इसे राजस्थान के बाड़मेर के राणका फकीरों के द्वारा भी बजाया जाता है।
3. बांसुरी-
- यह बांस की खोखली लकड़ी से बनी होती है।- स्वरों के लिए बांसुरी में कुल छेदू की संख्या 7 होती है।
- बांसुरी के प्रमुख वादक हरिप्रसाद चौरसिया व पन्ना लाल घोष है।
4. पूंगी (बीन/बीण)-
- यह छोटी लोकी के तुंबे की बनी होती है।- इसको कालबेलिया जाति के लोगों द्वारा सर्प पकड़ते व नृत्यों के दौरान विशेष रूप से बजाते है।
5. मशक-
- मशक वाद्य यंत्र चमड़े से बना होता है।- इस वाद्य यंत्र को मांगलिक अवसरों पर बजाया जाता है।
- राजस्थान में प्राचीन काल से ही अतिथि सत्कार हेतु मशक वाद्य यंत्र को बजाया जाता है।
- इस वाद्य यंत्र को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर ख्याति श्रवण कुमार ने दिलवायी है इसीलिए श्रवण कुमार को मशक का जादूगर कहते है।
- भेरुजी के भोपे इस वाद्य यंत्र को बजाते है।
6. बांकिया-
- यह पीतल धातु से निर्मित वाद्य यंत्र है।- इसकी बिगुल के जैसी आकृति का होता है।
- इस वाद्य यंत्र के साथ ढोल व कांसे की थाली बजायी जाती है।
- बांकिया वाद्य यंत्र को मांगलिक अवसरों पर बजाया जाता है।
- यह सरगड़ों का खानदानी वाद्य यंत्र है।
7. भूंगल या रणभेरी-
- यह वाद्य यंत्र पीतल की लम्बी नली से निर्मित होता है।- यह मेवाड़ के भवाईयों का प्रमुख वाद्य यंत्र माना जाता है।
- भूंगल बिगुल की भाति रण वाद्य यंत्र है।
8. मोरचंग-
- यह लोहे का बना छोटा वाद्य यंत्र है।- इस वाद्य यंत्र को लंगा जाति के द्वारा बजाया जाता है।
9. सतारा-
- यह वाद्य यंत्र अलगोजा, बांसुरी व शहनाई का मिश्रण है।- इस वाद्य यंत्र का प्रयोग बाड़मेर तथा जैसलमेर की जनजातियों तथा लंगा जाति के द्वारा किया जाता है।
10. नड़-
- यह वाद्य यंत्र बैंत व कंगोर की लकड़ी से निर्मित होता है।- इस वाद्य यंत्र का सर्वाधिक प्रयोग जैसलमेर जिले में होता है।
- राजस्थान के बांसवाड़ा जिले के कर्णाभील(अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रसिद्धि दिलाई) नड़ वाद्य यंत्र के प्रमुख वादक है।
11. तुरही-
- यह वाद्य यंत्र पीतल से निर्मित होता है।
- इस वाद्य यंत्र को मुख्यतः दुर्गो तथा युद्ध स्थलों पर बजाया जाता है।
12. नागफणी-
- यह वाद्य यंत्र पीतल की सर्पाकार नली का बना होता है।
- इस वाद्य यंत्र को मंदिरों व साधु सन्यासियों के द्वारा बजाया जाता है।
13. मुरली-
➯यह वाद्य यंत्र पूंगी का परिष्कृत रूप होता है।
➯इस वाद्य यंत्र को मुख्यतः बाड़मेर व जैसलमेर की लंगा जाति के द्वारा बजाया जाता है।
14. सिंगा-
- यह वाद्य यंत्र धनुषाकार आकृति का पीतल धातु से निर्मित होता है।
- इस वाद्य यंत्र को मुख्यतः साधु सन्यासियों के द्वारा बजाया जाता है।
15. सिंगी-
- इस वाद्य यंत्र मुख्यतः जोगियों द्वारा बजाया जाता है।
- यह वाद्य यंत्र हिरण व बारहसिंगा के सिगों से निर्मित होता है।
16. सुरनाई या सुरणई या लफीरी-
- यह वाद्य यंत्र सहनाई के जैसी आकृति का बना होता है।
- इस वाद्य यंत्र को मांगलिक अवसरों पर ढोली जाति के द्वारा बजाया जाता है।
- सुरणई या सुरणाई के प्रमुख वादक पेपे खां है।
17. पावरी व तारपी-
- यह वाद्य यंत्र राजस्थान में उदयपुर जिले की कथौड़ी जनजाति के द्वारा बजाया जाता है।
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