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Tuesday, September 8, 2020

मीरा बाई ओर गवरी बाई ! Rajasthan GK

 मीरा बाई और गवरी बाई 


 मीरा बाई और गवरी बाई

मीरा बाई 

- स्थापना - मीरा दासी सम्प्रदाय की 
 - प्रधान पीठ- मेड़ता सिटी (नागौर)
- मीरा बाई को राजस्थान की राधा कहते है।
- जन्म:-  कुडकी ग्राम (नागौर) में हुआ था।
- पिता का नाम :- रत्न सिंह राठौड़
- दादा का नाम :- रावदूदा
राणा सांगा के बडे़ पुत्र भोजराज से मीरा बाई का विवाह हुआ और 7 वर्ष बाद उनके पति की मृत्यु हो गई।
- पति की मृत्यु के पश्चात् मीराबाई ने श्री कृष्ण को अपना पति मानकर दासभाव से पूजा-अर्जना की शुरू कर दी
- मीरा बाई ने अपना अन्तिम समय गुजरात के राणछौड़ राय मंदिर में व्यतीत किया और यहीं श्री कृष्ण जी की भक्ति में लीन हो गई।
- मीरा बाई के दादा रावदूदा ने मीरा के लिए मेड़ता सिटी में चार भुजा नाथ मंदिर (मीरा बाई का मंदिर) का निर्माण करवाया।
* मीरा बाई के मंदिर - मेडता सिटी, चित्तौड़ गढ़ दुर्ग में
 - हालाँकि ज्योतिप्रसाद मिश्र 'निर्मल' जो 'भारत' और 'मनोरमा' के संपादक रहे हैं, ने अपनी पुस्तक 'स्त्री-कवि-कौमुदी' (1931, गाँधी हिन्दी पुस्तक भंडार) में मीरा का जन्म स्थल 'चौकड़ी' बताया है।

मीरा द्वारा रचित ग्रंथ
- नरसी का मायरा- रतना खाती द्वारा रचित( (मीरा बाई के निर्देशन में)
- राग सोरठ के पद
- गीत गोविंद टीका
- राग गोविंद
*  मीराबाई के गीतों का संकलन "मीराबाई की पदावली' नामक ग्रन्थ में किया गया है।

मीराबाई की भक्ति
- मीरा की भक्ति में माधुर्य- भाव काफी हद तक पाया जाता था। वह अपने इष्टदेव कृष्ण की भावना प्रियतम या पति के रुप में करती थी। उनका मानना था कि इस संसार में कृष्ण के अलावा कोई पुरुष है ही नहीं। कृष्ण के रुप की दीवानी थी।

गवरी बाई

- जन्म:गवरी देवी का जन्म 1920 को जोधपुर रियासत में हुआ 
- इनके माता-पिता दोनों गायक के रूप में बीकानेर दरबार में कलाकर थे.
- जब इनकी शादी हुई, उन्ही वर्षों में इनके पति के देहांत हो जाने के बाद यह पूरी तरह संगीत की दुनियां में        रम गई. इन्होने कई अंतर्राष्ट्रीय कार्यक्रमों में अपनी गायिकी के सुर बिखेरे हैं.
- गवरी बाई को बागड़ की मीरा कहते है।
- डूंगरपुर के महारावल शिवसिंह ने डूंगरपुर में गवरी बाई का मंदिर बनवाया जिसका नाम बाल मुकुन्द मंदिर रखा गया।
- गवरी बाई बागड़ क्षेत्र में श्री कृष्ण की अनन्य भक्तिनी थी।
गवरी देवी को 2013 में राजस्थान रत्न भी मिल चुका है इन्हें राजस्थान की मरु-कोकिला कहा जाता है 

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