राजस्थान के प्रमुख वाद्य यंत्र (Major instruments of Rajasthan) Rajasthan GK ! Part -2 - JANGIR ACADEMY | Online Study Portal

Monday, September 7, 2020

राजस्थान के प्रमुख वाद्य यंत्र (Major instruments of Rajasthan) Rajasthan GK ! Part -2

 राजस्थान के प्रमुख वाद्य यंत्र  (Major instruments of Rajasthan)

राजस्थान के प्रमुख वाद्य यंत्र(Major instruments of Rajasthan)

 (C) अवनद्ध वाद्य यंत्र या ताल वाद्य यंत्र-

   - जो वाद्य यंत्र पशुओं की खाल से बने होते है उन्हे अवनद्ध वाद्य यंत्र या ताल वाद्य यंत्र कहा जाता है।


राजस्थान के प्रमुख अवनद्ध वाद्य यंत्र या ताल वाद्य यंत्र-

1.चंग-

- चंग को शेखावाटी का लोकप्रिय वाद्य यंत्र है।
- आम की लकड़ी से बना गोल घेरा जिसे खाल से मंढकर तैयार किया जाता है।
- इस यंत्र को शेखावटी क्षेत्र में होली के अवसर पर चंग नृत्य के द्धोरान बजाते है।

2. मृदंग (पखावज)-

- इसको अवनद्ध वाद्य यंत्रों में सर्वश्रेष्ठ वाद्य यंत्र माना जाता है।
- सुपारी और वट की लकड़ी को खोखला करके उस पर बकरे की खाल मंढकर तेयार किया जाता है।
- इस वाद्य यंत्र का उपयोग धार्मिक स्थानों पर किया जाता है।
- रावल, भवाई तथा रबिया जाति के लोगों द्वारा नृत्य करते समय बजाता जाता है।
- मृदंग के प्रमुख वादक पद्मश्री प्राप्त पुरूषोत्तम दास जी है।

3. नोबत-

- इस वाद्य यंत्र को धातु की अर्द्धगोलाकार कुण्डी पर भैंसे की खाल चढ़ाकर बनाया जाता है।
- यह वाद्य यंत्र राजा महाराजाओं के महलों के मुख्य द्वार पर बजाया जाता था।

4. मांदल-

- यह वाद्य यंत्र मिट्टी से बना होता है।
- इस वाद्य यंत्र को भील जाति के लोग गवरी नृत्य करते समय बजाते है।
-  इसकी आकृति मृदंग के समान होती है।
- राजसमंद जिले के मोलेला गांव में मांदल वाद्य यंत्र बनाये जाते है।
- मांदल वाद्य यंत्र को शिव पार्वती का वाद्य यंत्र मानते है।

5.ढोल या ढोलक-

- ढोलक अवनद्ध वाद्य यंत्रों में सबसे प्राचीन वाद्य यंत्र माना जाता है।
- यह मांगलिक वाद्य यंत्र है।
-  इसको थाली व बांकिया के साथ बजाया जाता है।
- इसका एक भाग नर तथा दूसरा भाग मादा कहलाता है।
- ढोलक वाद्य यंत्र को भेरुजी व माताजी के मंदिरों में विशेष रूप से बजाया जाता है।
- इस वाद्य यंत्र को रामलीला, नाटक, नौटंकी, ख्याल आदि में बजाया जाता है।
- राणा जाति, भाट जाति, ढाढी जाति व मिरासी जाति के लोग ढोलक वाद्य यंत्र को बजाने में दक्ष होते है।  
*  ढोलक का प्रमुख वादक रामकिशन सौलंकी है।

6.  दमामा या टामक-

- टामक अवनद्ध वाद्य यंत्रों में सबसे बड़ा वाद्य यंत्र होता है।

7. डमरू-

- डमरू वाद्य यंत्र भगवान शिव का प्रिय वाद्य यंत्र होता है।
- डमरू का उपयोग मदारियों के द्वारा किया जाता है।

8. खंजरी-

- यह वाद्य यंत्र ढप का छोटा रूप है।
- खंजरी वाद्य यंत्र को भजन करते समय बजाया जाता है।

9. तासा-

- यह वाद्य यंत्र मिट्टी तथा लोहे के चपटे कटोरों पर बकरे की खाल मंढकर बनाया जाता है।

10. ढफ-

- इस वाद्य यंत्र को लोहे के गोल घेरे पर बकरे की खाल चढ़ाकर तैयार किया जाता है।
- यह वाद्य यंत्र होली के अवसर पर बजाया जाता है।

11. डफली-


- डफली वाद्य यंत्र ढफ का छोटा रूप होता है।

12. कुंडी-

- इस वाद्य यंत्र को मिट्टी के छोटे बर्तन के ऊपर खाल मंढकर तैयार किया जाता है।
- यह वाद्य यंत्र राजस्थान के सिरोही जिले के गरासिया जाति तथा मेवाड़ के जोगिया जाति के द्वारा बजाया जाता है।

13. माठ या माटे-
- माठ वाद्य यंत्र को पाबूजी के पावड़ों के गायन के समय बजाया जाता है।

14. कमर-

- इस वाद्य यंत्र को लोहे की चद्दर को गोल कर चमड़े से मढ़कर बनाया जाता है।
- यह वाद्य यंत्र राजस्थान के अलवर, भरतपुर जिलों में तीन या चार व्यक्तियों के द्वारा उसके चारों ओर खड़े होकर दोनों हाथों में डण्डे की सहायता से बजाया जाता है।

15.डेरू-

- यह वाद्य यंत्र डमरू का बड़ा रूप है।
- इस वाद्य यंत्र को भील जाति तथा गोगाजी के भोपे भक्तों के द्वारा बजाया जाता है।
- इस वाद्य यंत्र को थाली या कांसे के छोटे कटोरे के साथ बजाते है।

(D)घन वाद्य यंत्र-

- धातु से निर्मित वे वाद्य यंत्र जिनमें चोट या आघात करने से स्वर उत्पन्न होता है उन्हे घन वाद्य यंत्र कहा जाता है।

राजस्थान के प्रमुख घन वाद्य यंत्र-

1. रमझौल-

- इस वाद्य यंत्र में चमड़े की पट्टी पर बहुत सारे छोटे-छोटे घुंघरू लगे हुए होते है जिन्हें नृत्य करते समय दोनों पैरों पर बांधा जाता है।
- होली पर गैर नृत्य के समय तथा उदयपुर जिले में भीलों द्वारा चक्राकार नृत्य के समय रमझौल वाद्य यंत्र का प्रयोग किया जाता है।

2. झांझ-

- यह वाद्य यंत्र मंजीरे का बड़ा रूप है।
- इस वाद्य यंत्र को शेखावाटी क्षेत्र में कच्छी घोड़ी नृत्य केअवसर पर बजाया जाता है।

3.  घुंघरू-


- यह वाद्य यंत्र छोटे पीतल तथा कांसे का वाद्य यंत्र है।

4.भरनी-


- इस वाद्य यंत्र को मिट्टी के मटके के संकरे मुंह पर कांसे की प्लेट ढककर बनाया जाता है।
- इस वाद्य यंत्र को पूर्वी राजस्थान मे अलवर व भरतपुर में सर्प के काटे हुए व्यक्ति का इलाज करते हुए बजाया जाता है।

5. झालर-


- इस वाद्य यंत्र में कांसे या तांबे की मोटी चक्राकार प्लेट होती है जिस पर लकड़ी की सहायता से चोट मार कर बजाया जाता है।
- इस वाद्य यंत्र का प्रयोग मंदिरों में सुबह-शाम आरती के समय करते है।

6.मंजीरा-


- मंजीरा पीतल व कांसे से निर्मित गोलाकार वाद्य यंत्र होता है। यह वाद्य यंत्र हमेशा जोड़े में ही बजाया जाता है।
*  कामड़ जाति की महिलायें तेरहताली नृत्य करते समय मंजारी वाद्य यंत्र को बजाती है।

- यह वाद्य यंत्र भक्ति, कीर्तन में भी बजाया जाता है।

7. घण्टा (घड़ियाल)-


- यह पीतल या अन्य धातु का गोलाकार वाद्य यंत्र होता है।
- घण्टा वाद्य यंत्र का प्रयोग मंदिरों में होता है।

8. चिमटा-


- चिमटा वाद्य यंत्र लोहे की दो पतली पट्टिकाओं के द्वारा बना होता है।

9. करताल (खड़ताल)-


- इस वाद्य यंत्र में लकड़ी के टुकड़े के बीच में पीतल की तस्तरियां लगी होती है जो लकड़ी के टुकड़े को आपस में टकराने पर मधुर आवाज निकलती है।
- राजस्थान के बाड़मेर व पाली जिलों में गैर नृत्य के अवसर पर करताल वाद्य यंत्र बजाया जाता है।
*  करताल वाद्य यंत्र का प्रमुख वादक सदीक खां मांगणियार है। सदीक खां मांगणियार को खड़ताल का जादूगर भी कहते है।

10.थाली-

- यह वाद्य यंत्र कांसे का बना होता है।
- थाली वाद्य यंत्र को चरी नृत्य में भील जाति तथा कालबेलियों के द्वारा बजाया जाता है।

11. घुरालियों या धुरालियों-


- 5-6 अंगुली लम्बी बांस की खप्पच्ची से बना होता है।
- इस वाद्य यंत्र को कालबेलियों व गरासिया जाति के द्वारा बजाया जाता है।

12. श्री मण्डल-


- यह झाड़ूनुमा वाद्य यंत्र है जिस पर चांद जैसे छोटे-बड़े टंकारे लगे होते है।

13. गरासियों की लेजिम-


- यह बांस का एक धनुषाकार टुकड़ा होता है जिसके साथ लगी जंजीर में पीतल की छोटी-छोटी गोलाकार पत्तियां होती है जिसे हिलाने पर झनझनाहट की ध्वनि उत्पन होती है।



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