महाजनपद काल (Mahajanpada Period)
महाजनपद कालीन प्रशासनीक व्यवस्था
- उत्तरवैदिक काल की अपेक्षा राज्य एवं राजा की संकल्पना अधिक स्पष्ट थी।- राज्य अपनी भौगोलिक सीमा गढ़ाने लगे थे। स्थायी सेना रखी जाती थी।
- ग्राम प्रशासन की सबसे छोटी इकाई होती थी। ग्राम से ऊपर खटीक एवं द्रोणमुख होते थे।
- शौल्किक अधिकारी - यह अधिकारी व्यापारियों से कर वसूलता था।
- तुण्डिया एवं अकासिया अधिकारी - ये कर वसूली करने वाले उग्र अधिकारी थे।
- वस्सकार(मगध), दीर्घ चारायण(कौशल) - इस काल के मंत्री हुआ करते थे।
- ग्रामीण - यह ग्राम का प्रशासनिक अधिकारी होता था।
अधिकारी:-
- बलिसाधक - बलि ग्रहण करने वाला- शौल्किक - शुल्क वसूल करने वाला
- रज्जुग्राहक - भूमि मापने वाला
- द्रोणमापक - अनाज की तौल का निरीक्षक
अर्थव्यवस्था
- नगरों का विकास एवं लोहे का कृषि कार्यो, युद्ध अस्त्रों में उपयोग इस काल की महत्वपूर्ण विशेषता है।- तैत्तरीय अरण्यक में प्रथम बार नगरों का उल्लेख मिला है।
- इस काल में 60 नगरों का उल्लेख मिलता है। जिनमें 6 महानगर थे -
A.राजगृह
B. श्रावस्ती
C. कौशाम्बी
D. चम्पा
E. काशी
F. साकेत(अयोध्या)
आग्रहायण यज्ञ - फसल तैयार होने पर किया जाने वाला यज्ञ
सुत्तनिपात ग्रंथ - इस ग्रंथ में गाय को अन्नदा, वनदा एवं सुखदा कहा गया है।
गहपति - यह शब्द बड़े एवं धनवान जमींदारों के लिए प्रयोग किया जाता था।
श्रेणी एवं पुग में अन्तर
श्रेणी - यह एक जैसा व्यवसाय करने वाले व्यापारियों की संस्था होती थी।पुग - यह अलग-अलग व्यवसाय करने वाले व्यवसायियों की संस्था होती थी।
आहत सिक्के - ये धातु के बने सिक्के(धातु पर ठप्पा लगाकर) थे, जिनकी सर्वप्रथम प्राप्ति गौतम बुद्ध के समय में हुई थी। यह मुख्यतः चांदी के बने होते थे परन्तु तांबे का उपयोग भी होता था।
बौद्धकालीन सिक्कों के नाम
- निष्क, स्वर्ण, पाद, माषक, काकिनी, कार्षापण आदि।* इस काल में वेतन एवं भुगतान सिक्कों में किया जाता था।
महाजनपद कालीन समाज
- दहेज प्रथा की शुरूआत महाजनपद काल में हुई।- जाति व्यवस्था का प्रसार शुरू होने लगा था।
- इस काल में दास प्रथा का अत्यधिक विकास हुआ। इस काल में दासों को कृषि कार्यो में लगाया जाने लगा था। पहले दास केवल घरेलु कार्य के लिए होते थे। इस काल में दासों की खरीद-फरोख्त की जाने लगी थी। इसका प्रमुख कारण कृषि कार्यो में विस्तार था।
- सती प्रथा का साहित्यिक साक्ष्य प्राप्त हुआ है। किन्तु सती प्रथा का प्रचलन नहीं था। विधवा का अपने पति की संपत्ति पर अधिकार था। कुछ परिस्थितियों में विधवा पुनर्विवाह का विधान था।
- गन्धर्व विवाह/प्रेम विवाह को अनुमति मिली हुई थी।
- राक्षस विवाह को केवल क्षत्रिय समाज में मान्यता प्राप्त थी।
- अनुलोम विवाह(पुरूष उच्च कुल, स्त्री निम्न कुल) को अनुमति प्राप्त थी।
- बहुविवाह हुआ करते थे ।
धर्म की स्थिति
- बौद्ध एवं जैन धर्म का प्रभाव रहा तथा ब्राह्मण वाद एवं पुरोहित वाद की स्थिति कमजोर थी।महाजनपदों के उदय के कारण
- कृषि विस्तार युद्ध व विजय की प्रक्रिया में वैदिक जनजातियां अनार्यो के सम्पर्क में आयी थी।- जनपदों के एकीकरण से भी महाजनपदों का निर्माण हुआ।
- कुछ महाजनपद अपनी आन्तरिक सामाजिक राजनीतिक संरचना में होने वाले परिवर्तनों के कारण विकसिक हुए थे।
भौतिकवादी - (लोकायत दर्शन)
- इसका प्रथम आचार्य बृहस्पति था।- इस दर्शन का प्रमुख प्रवर्तक चार्वाक था।
- भौतिकवादी - कर्म, पुनर्जन्म, स्वर्ग, नरक, मोक्ष, भक्ति, साधना, उपासना आदि में विश्वास नहीं करते थे।
- इस दर्शन के अनुयायी - परलोक, मोक्ष, अलौकिक शक्ति, ईश्वरीय सत्ता, कर्मकाण्ड में विश्वास नहीं करते। - - - इस मत के अनुसार, मानव अपनी बुद्धि एवं इन्द्रियों से जो महसूस कर रहा है वही यथार्थ है।
- इस मत के अनुसार, प्रत्यक्ष अनुभव ही एकमात्र ज्ञान का साधन है। पृथ्वी, जल, वायु, अग्नि ही वास्तविक द्रव्य है।
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