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Friday, September 18, 2020

Dynasty of South Indiia (दक्षिण भारत के राजवंश) Indian History ! part -1 For Scc, Railway, Bank, Upsc etc....

दक्षिण भारत के राजवंश (Dynasty of South India)

दक्षिण भारत के राजवंश (Dynasty of South India)



दक्षिण भारत के प्रमुख राजवंश:-
1. पल्लव वंश
2.चालुक्य वंश
3.चोलवंश
4.राष्ट्रकूट वंश
5.प्रतिहार वंश,
6. पाण्ड्य वंश –

नमस्कार दोस्तों इंडिया जीके की इस सीरीज में हम भारत में गुप्त कालीन इतिहास को जानेंगे इस पोस्ट में  पल्ल्व वंश का उदय, शासक, शासकों के उपाधि,शाषन प्रणाली, आदि की पूरी जानकारी दी गयी है।

1.  पल्लव वंश :- 


- दक्षिण भारत में पल्लव वंश का उदय सातवाहन वंश के पतन के समय हुआ था |
- सिंह विष्णु को पल्लव वंश का संस्थापक माना जाता है। 
- इसके काल मे ही महाबलीपुरम नामक स्थान पर वराह मन्दिर का निर्माण हुआ था।
- सिंह विष्णु को वैष्णव धर्म का अनुयायी बताया गया है।

 महेंद्रवर्मन :-

- महेंद्रवर्मन को  साहित्य का संरक्षक माना गया है।
- महेंद्रवर्मन के द्वारा एक हास्य ग्रंथ मतविलास प्रसहन नामक पुस्तक की रचना गई।
- इसके काल मे दक्षिण भारत मे बौद्ध धर्म व जैन धर्म का अधिक प्रचार हो रहा था। इसलिए महेंद्रवर्मन के द्वारा वैष्णव धर्म को संरक्षण प्रदान किया गया।

 नरसिंह वर्मन – I :-

- यह पल्लव वंश का सबसे प्रतापी शासक था।
- इसने बादामी के चालुक्य शासकों को पराजित कर इसने वातापी कोंड की उपाधि ली।
- नरसिंह वर्मन के द्वारा महामल्स की भी उपाधि ली गई।
- इसके काल मे महाबलीपुरम में रथ मंदिरों का निर्माण हुआ था। ये मन्दिर सप्त पैगोड़ा के नाम से जाने गए।

 नरसिंहवर्मन द्वितीय :- 

- यह परमेश्वर वर्मन प्रथम का पुत्र था।
- दण्डिन ने इसकी राजसभा को भी सुशोभित किया।
- इसका काल शांति का काल माना जाता है। इसके समय चोल-पल्लव संघर्ष रुक गया था।
- इसने कांची के कैलाश मंदिर और महाबलीपुरम के शोर मंदिर का निर्माण कराया था। 
- इसने एक दूतमण्डल चीन भेजा और चीनी बौद्ध यात्रियों के लिए नागापत्तनम में विहार बनवाया, जिसे चीनी    पैगोड़ा कहा जाता है।

 परमेश्वरवर्मन द्वितीय :-

- परमेश्वरवर्मन द्वितीय इस वंश का अंतिम शासक था।
- यह तिरुमंगलाई का समकालीन था।
- इसके बारे में माना जाता है कि इसने बृहस्पति द्वारा बनाये सिद्धांतों का अनुसरण कर संसार की रक्षा की थी।
- इसकी आकस्मिक मृत्यु के बाद पल्लव वंश पल्लव राज्य में संकट उत्पन्न हो गया। इसका प्रमुख कारण था की इसका कोई वैध उत्तराधिकारी नहीं था।

नंदिवर्मन द्वितीय :- 

- उसके बाद लोगों ने नंदिवर्मन द्वितीय को शासक बनाया, परंतु यह सिंहविष्णु की परंपरा का न होकर भीमवर्मा की परंपरा का था जो कि सामंत हुआ करते थे।
- यह वैष्णव मत का अनुयायी था। 
- इसने कांची के मुक्तेश्वर मंदिर और बैकुंठ पेरुमल मंदिर का निर्माण कराया था।

नंदिवर्मन तृतीय :- 

- यह शैव मत का अनुयायी था।
- इसने तमिल साहित्य को संरक्षण दिया था।

*  स्थापत्य कला :- 

 मंडप :- पत्थरों को काटकर मंदिरों का निर्माण किया जाता था, उसे मंडप कहा जाता था।

 रथमन्दिर :-
- मामल्ल शैली में निर्मित रथ मन्दिर महाबलीपुरम (तमिलनाडु) नामक स्थान पर है।
- इन मंदिरों के निर्माण में मंडप व रथ दोनों का प्रयोग मिलता है।
- एकाश्म पत्थरों के द्वारा मामल्ल शैली में रथ मंदिरों का निर्माण हुआ ये रथ मन्दिर सप्त पैगोड़ा के नाम से जाने गए।
- यहाँ युधिष्ठिर का रथ सबसे प्रसिद्ध है और द्रोपदी का रथ सबसे छोटा है।

* राजनैतीक इकाई :- 

- पल्लव काल मे केंद्र का विभाजन प्रान्त में किया जाता था।
- प्रान्त को राज्य अथवा मण्डल कहते थे। 
- मण्डल का विभाजन विषय मे किया जाता था।
- विषय का विभाजन कोट्टम में किया जाता था, कोट्टम को नगर कहा जाता था। 
- प्रशासन की सबसे छोटी इकाई गांव थी।


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