महान सम्राट हर्ष (Great Emperor Harsh)
- ईसा की 6 शताब्दी में उत्तर भारत में एक शक्तिशाली राज्य उभर था, जिसका नाम था थानेश्वर |
- थानेश्वर में राजा प्रभाकरवर्धन का शासन था। वे बड़े वीर, पराक्रमी और योग्य शासक थे।
- राजा प्रभाकरवर्धन ने महाराज के स्थान पर महाराजाधिराज और परम भट्टारक की उपाधियां धारण की ।
- राजा प्रभाकरवर्धन छठी शताब्दी के उत्तरार्द्ध में मालवों, गुर्जरों और हूणों को पराजित किया था, किंतु राज्य की उत्तर-पश्चिम सीमा पर प्रायः हूणों के छुट-पुट उपद्रव होते रहते थे।
हर्ष का जन्म :
- हर्ष का जन्म थानेसर (हरियाणा) में हुआ था। यहां 51 शक्तिपीठों में से 1 पीठ है। हर्ष के मूल और उत्पत्ति के संदर्भ में एक शिलालेख प्राप्त हुआ है, जो कि गुजरात राज्य के गुन्डा जिले में खोजा गया है।
- राजा प्रभाकरवर्धन की रानी का नाम यशोमती था। रानी यशोमती ने 590 ई. में एक परम तेजस्वी बालक को जन्म दिया। यही बालक आगे चलकर भारत के इतिहास में राजा हर्षवर्धन के नाम प्रसिद्ध हुआ।
- हर्षवर्धन का राज्यवर्धन नाम का एक बड़ा भाई भी था। हर्षवर्धन की बहन का नाम राजश्री था।
- हर्ष के काल में कन्नौज में मौखरि वंश के राजा अवंति वर्मा शासन करते थे।
राज्यभिषेक :-
- प्रभाकरवर्धन की मृत्यु के पश्चात राज्यवर्धन राजा बना, पर मालव नरेश देवगुप्त और गौड़ नरेश शशांक की मिलीभगत से मारा गया।
- बड़े भाई राज्यवर्धन की हत्या के बाद हर्षवर्धन को 606 में राजा बना।
- खेलने-कूदने की उम्र में हर्षवर्धन को राजा शशांक के खिलाफ युद्ध करना पड़ा। शशांक ने ही राज्यवर्धन की हत्या की थी।
* गुप्त साम्राज्य के पतन के बाद उत्तर भारत में अराजकता की स्थिति बनी गयी थी। जिसे हर्ष के शासन ने राजनीतिक स्थिरता मिली।
शासन प्रबन्ध
- सम्राट की सहायता के लिए एक मंत्रिपरिषद् थी।
- बाणभट्ट ने हर्षचरित में इन पदों की व्याख्या इस प्रकार की है-
* लोकपाल- प्रान्तीय शासक
* अवन्ति - युद्ध और शान्ति का मंत्री
* स्कन्दगुप्त - हस्तिसेना का मुख्य अधिकारी
* भंंडी - प्रधान सचिव
* सिंहनाद - हर्ष की सेना का महासेनापति
* कुन्तल - अश्वसेना का मुख्य अधिकारी
- ऐसा माना जाता है कि सम्राट हर्षवर्धन की सेना में 1 लाख से अधिक सैनिक थे।
- सेना में 60 हजार से अधिक हाथियों को रखा गया था। परन्तु हर्ष को बादामी के चालुक्यवंशी शासक पुलकेशिन द्वितीय से पराजित होना पड़ा। (ऐहोल प्रशस्ति (634 ई.) में इसका उल्लेख मिलता है)
हर्ष रचित साहित्य :
- नाटक : हर्षवर्धन ने 'रत्नावली', 'प्रियदर्शिका' और 'नागरानंद' नामक नाटिको की भी रचना की थी।- 'कादंबरी' के रचयिता कवि बाणभट्ट उनके (हर्षवर्धन) के मित्र थे।
- कवि बाणभट्ट ने उसकी जीवनी 'हर्षच चरित' लिखी है।
- हर्ष ने 641 ई. में एक ब्राह्मण को अपना दूत बनाकर चीन भेजा था। 643 ई. में चीनी सम्राट ने 'ल्यांग-होआई-किंग' नाम के दूत को हर्ष के दरबार में भेजा था। लगभग 646 ई. में एक और चीनी दूतमण्डल 'लीन्य प्याओं' एवं 'वांग-ह्नन-त्से' के नेतृत्व में हर्ष के दरबार में आया था।
- चीनी यात्री ह्वेन त्सांग हर्ष के राज-दरबार में 8 साल तक रहे थे।
- तीसरे दूत मण्डल के भारत पहुंचने से पूर्व ही हर्ष की मृत्यु हो गई थी।
* हर्षवर्धन के अपनी पत्नी दुर्गावती से 2 पुत्र थे- वाग्यवर्धन और कल्याणवर्धन हुए। परन्तु उनके दोनों बेटों की अरुणाश्वा नामक मंत्री ने हत्या कर दी। इस वजह से हर्ष का कोई वारिस नहीं रहा। हर्ष के मरने के बाद, उनका साम्राज्य भी धीरे-धीरे बिखरता चला गया और फिर समाप्त हो गया।
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