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Thursday, September 10, 2020

सातवाहन वंश (Satavahana Dynasty) For SCC, Bank, UPSC Exams...

सातवाहन वंश (Satavahana Dynasty)

सातवाहन वंश (Satavahana Dynasty)

सातवाहन वंश

- शासन काल :- 235 ई.पू. से 240 ई. तक 
- भारत का प्राचीन राजवंश माना जाता है, जिसने दक्षिण भारत पर शासन किया।
भारतीय इतिहास में यह राजवंश 'आन्ध्र वंश' के नाम से भी जाना जाता है।
- सातवाहन वंश का प्रारम्भिक राजा सिमुक था। 
- दक्षिणी क्षेत्र में साम्राज्य की स्थापना करने वाला पहला वंश दक्कनी वंश था। इस वंश का आरंभ 'सिभुक' अथवा 'सिंधुक' नामक व्यक्ति ने दक्षिण में कृष्णा और गोदावरी नदियों की घाटी में किया था। इस वश को 'आंध्र राजवंश' के नाम भी जाना जाता है। 

सिमुक (235 ई0पू0 - 212 ई0पू0)

- सिमुक सातवाहन वंश का संस्थापक था | 
- पुराणों में सिमुक को सिमेक के अतिरिक्त शिशुक, सिन्धुक तथा शिप्रक आदि नामों से भी पुकारा गया है। 
- जैन अनुश्रुतियों के अनुसार सिमुक ने अपने शासन काल में जैन तथा बौद्ध मन्दिरों का निर्माण करवाया था , परन्तु अपने शासन काल के अन्तकाल में वह पथभ्रष्ट व क्रुर हो गया जिस कारणवश उसे पदच्युत कर उसकी हत्या कर दी।

कान्हा तथा कृष्ण (212 ई.पू. - 195 ई.पू.)


- सिमुक की मृत्यु के पश्चात उसका छोटा भाई कान्हा (कृष्ण) राजगद्दी पर बैठा। 
- अपने 18 वर्षों के कार्यकाल में कान्हा ने साम्राज्य विस्तार की नीति को अपनाया। 
- नासिक शिलालेख से पता चलता है कि कान्हा के समय में सातवाहन साम्राज्य पश्चिम में नासिक तक फैल गया था।

 शातकर्णी प्रथम 

- कान्हा के बाद शातकर्णी प्रथम गद्दी पर बैठा। पुराणों के अनुसार वह कान्हा पुत्र था। 
- डॉ॰ गोपालचारी ने सिमुक को शातकर्णी प्रथम का पिता बताया हैं। 
- सातवाहन शासकों में वह पहला शासक था जिसने इस वंश के शासकों में प्रिय एवं प्रचलित, ‘‘शातकर्णी’’ शब्द से अपना नामकरण किया।
- नानाघाट शिलालेख के अनुसार शातकर्णी ने अपने साम्राज्य का विस्तार किया तथा अपने कार्य काल में दो अश्वमेघ यज्ञ तथा एक राजसुय यज्ञ करवाया। 
- उसने दक्षिण पथपति तथा अप्रतिहत चक्र आदि उपाधियाँ धारण की। 
- नानाघाट लेख तथा हाथी गुम्फा लेखों में प्रयुक्त लिपि की समानता के आधार पर ही यह सुझाया गया है कि कदाचित इसी शातकर्णी शासकों के शासन काल के दूसरे वर्ष में कलिंग के महान शासक खारखेल ने युद्ध क्षेत्र में हराया था। 
शातकर्णी प्रथम की पत्नी नयनिका अथवा नागनिका अंगीय कुल के एक महारथी त्रणकाइरो की पुत्री थी।

वेदश्री तथा सतश्री /शक्ति श्री


- शातकर्णी प्रथम की मृत्यु के पश्चात उसके दो अल्पव्यस्क पुत्र वेदश्री तथा सतश्री सिंहासन पर बैठे। 
- मत्स्यपुराण में स्कन्दस्तम्भी का उल्लेख सातवाहन वंश के पाँचवें शासक के रूप में किया गया है परन्तु अधिकतर विद्वान इस नाम को कल्पित मानते हैं।

शातकर्णी द्वितिय (166 ई.पू. से लेकर 111 ई.पू.)


- यह कदाचित वही शासक था जिसका वर्णन हीथीगुम्फा तथा भीलसा शिलालेखों में मिलता है। 
- इसके शासन काल में सातवाहनों ने पूर्वी मालवा को पुष्यमित्र शुंग के एक उत्तराधिकारी से छीन लिया।

- पुराणों के अनुसार शातकर्णी द्वितिय के पश्चात् लम्बोदर राजसिंहासन पर आसीन हुआ। 
- लम्बोदर के पश्चात् उसका पुत्र अपीलक गद्दी पर बैठा, जो कि आठवाँ सातवाहन शासक था | 

हाल (20 ई. - 24 ई.)


- ऐसा माना जाता है कि यदि आरम्भिक सातवाहन शासकों में शातकर्णी प्रथम योद्धा के रूप में सबसे महान था तो हाल शांतिदूत के रूप में अग्रणी था। 
- ऐसा माना जाता है कि प्राकृत भाषा में लिखी गाथा सप्तशती अथवा सतसई (सात सौ श्लोकों से पूर्ण) का रचियता हाल ही था। 
- हाल के प्रधान सेनापति विजयानन्द ने अपने स्वामी के आदेशानुसार श्रीलंका पर आक्रमण कर उसे जीत लिया।  
- शक शासकों ने 35 ई.से लेकर लगभग 90ई.तक सातवाहन राज्य पर आक्रमण किये। उन्होंने सातवाहनों से पूर्वी तथा पयिचमा मालवा प्रदेशों को जीता; उत्तरी कोंकण (अपरान्त) उत्तरी महाराष्ट्र, जो कि सातवाहन शक्ति का केन्द्र था तथा बनवासी (वैजयन्ती) तक फैले दक्षिणी महाराष्ट्र पर भी अपना प्रभुत्व जमा लिया। 


गौतमी पुत्र श्री शातकर्णी (70 ई.-95 ई.)



- गौतमी पुत्र श्री शातकर्णी सातवाहन वंश का सबसे महान शासक था जिसने लगभग 25 वर्षों तक शासन करते हुए न केवल अपने साम्राज्य की खोई प्रतिष्ठा को पुर्नस्थापित किया अपितु एक विशाल साम्राज्य की भी स्थापना की।
- गौतमी पुत्र के समय तथा उसकी विजयों के बारें में हमें उसकी माता गौतमी बालश्री के नासिक शिलालेखों से सम्पूर्ण जानकारी मिलती है। 
- उसकी सबसे बड़ी उपलब्धि क्षहरात वंश के शक शासक नहपान तथा उसके वंशजों को पराजय करना थी। 
- जोगलथम्बी (नासिक) समुह से प्राप्त नहपान के चान्दी के सिक्कें जिन्हे कि गौतमी पुत्र शातकर्णी ने द्वारा ढ़लवाया तथा अपने शासन काल के अठारहवें वर्ष में गौतमी पुत्र द्वारा नासिक के निकट पांडु-लेण में गुहादान करना- ये कुछ ऐसे तथ्य है जों यह प्रमाणित करतें है कि उसने शक शासकों द्वारा छीने गए प्रदेशों को पुर्नविजित कर लिया।
- नहपान के साथ उनका युद्ध उसके शासन काल के 17वें और 18वें वर्ष में हुआ तथा इस युद्ध में जीत कर र्गातमी पुत्र ने अपरान्त, अनूप, सौराष्ट्र, कुकर, अकर तथा अवन्ति को नहपान से छीन लिया थे। 
- उसके प्रत्यक्ष प्रभाव में रहने वाला क्षेत्र उत्तर में मालवा तथा काठियावाड़ से लेकर दक्षिण में कृष्णा नदी तक तथा पूवै में बरार से लेकर पश्चिम में कोंकण तक फैला हुआ था। 
-उसने 'त्रि-समुंद्र-तोय-पीत-वाहन' उपाधि धारण की जिससे यह पता चलता है कि उसका प्रभाव पूर्वी, पश्चिमी तथा दक्षिणी सागर अर्थात बंगाल की खाड़ी, अरब सागर एवं हिन्द महासागर तक था।

सातवाहन कालीन लेखों में निम्नलिखित उल्लेखनीय हैं:

(i) नागनिका का नानाघाट (महाराष्ट्र के पूना जिले में स्थित) का लेख ।
(ii) गौतमीपुत्र शातकर्णि के नासिक से प्राप्त दो गुहालेख ।
(iii) गौतमी बलश्री का नासिक गुहालेख ।
(iv) वासिष्ठीपुत्र पुलुमावी का नासिक गुहालेख ।
(v) वासिष्ठीपुत्र पुलुमावी का कार्ले गुहालेख ।

(vi) यज्ञश्री शातकर्णि का नासिक गुहालेख ।

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