जैन धर्म तथा दर्शन (Jainism and philosophy) Indian History - JANGIR ACADEMY | Online Study Portal

Thursday, September 3, 2020

जैन धर्म तथा दर्शन (Jainism and philosophy) Indian History

जैन धर्म तथा दर्शन (Jainism and philosophy)

जैन धर्म तथा दर्शन (Jainism and philosophy)
                                                
                                         वैदिक सभ्यता(Vedic Civilization) Indian History


जैन धर्म विश्व के सबसे प्राचीन दर्शन या धर्मों में से एक है।  इसके प्रवर्तक हैं 24 तीर्थंकर, जिनमें प्रथम तीर्थंकर भगवान ऋषभदेव (आदिनाथ) तथा अंतिम व प्रमुख महावीर स्वामी हैं। जैनों के धार्मिक स्थल, जिनालय या मंंदिर कहा जाता हैं।
'जिन परम्परा' का अर्थ है - 'जिन द्वारा प्रवर्तित दर्शन'। जो 'जिन' के अनुयायी हों उन्हें 'जैन' कहते हैं। 'जिन' शब्द बना है संस्कृत के 'जि' धातु से। 'जि' माने - जीतना। 'जिन'का अर्थ जीतने वाला। जैन धर्म अर्थात 'जिन' भगवान्‌ का धर्म।
 जैन मत 'स्याद्वाद' के नाम से भी जाना जाता है। स्याद्वाद का अर्थ है अनेकांतवाद अर्थात् एक ही पदार्थ में नित्यत्व और अनित्यत्व, सादृश्य और विरुपत्व, सत्व और असत्व, अभिलाष्यत्व और अनभिलाष्यत्व आदि परस्पर भिन्न धर्मों का सापेक्ष स्वीकार। इस मत के अनुसार आकाश से लेकर दीपक पर्यंत समस्त पदार्थ नित्यत्व और अनित्यत्व आदि धर्म युक्त है।

जैन धर्म के 24 तीर्थंकर

जैन धर्म मे 24 तीर्थंकर हुये है, तीर्थंकर धर्म तीर्थ का प्रवर्तन करते थे। इस काल के 24 तीर्थंकर है-

1. ऋषभदेव- इन्हें 'आदिनाथ' भी कहा जाता है
- वैदिक दर्शन परम्परा में ॠषभदेव का विष्णु के 24 अवतारों में से एक के रूप में संस्तवन किया गया है।
- भागवत में अर्हन् राजा के रूप में इनका विस्तृत वर्णन है।
2अजितनाथ
3सम्भवनाथ
4अभिनंदन जी
5सुमतिनाथ जी
6पद्ममप्रभु जी
7सुपार्श्वनाथ जी
8चंदाप्रभु जी
9सुविधिनाथ- इन्हें 'पुष्पदन्त' भी कहा जाता है
10शीतलनाथ जी
11श्रेयांसनाथ
12वासुपूज्य जी
13विमलनाथ जी
14अनंतनाथ जी
15धर्मनाथ जी
16शांतिनाथ
17कुंथुनाथ
18अरनाथ जी
19मल्लिनाथ जी
20मुनिसुव्रत जी
21नमिनाथ जी

22. अरिष्टनेमि जी - इन्हें 'नेमिनाथ' भी कहा जाता है। जैन मान्यता में ये नारायण श्रीकृष्ण के चचेरे भाई थे।
23पार्श्वनाथ

24. महावीर स्वामी  - इन्हें वर्धमान, सन्मति, वीर, अतिवीर भी कहा जाता है।
- महावीर का जन्म ईसा से 540 (कहीं पर 599) वर्ष पहले होना ग्रंथों से पाया जाया है। शेष के विषय में अनेक प्रकार की    अलौकिक और प्रकृतिविरुद्ध कथाएँ हैं।

- रागद्वेषी शत्रुओं पर विजय पाने के कारण 'वर्धमान महावीर' की उपाधि 'जिन' थी।अतः उनके द्वारा प्रचारित धर्म 'जैन' कहलाता है


- अंतिम दो तीर्थंकर, पार्श्वनाथ और महावीर स्वामी ऐतिहासिक पुरुष है । 

जैनधर्म के सिद्धान्त

रागद्वेषी शत्रुओं पर विजय पाने के कारण 'वर्धमान महावीर' की उपाधि 'जिन' थी।अतः उनके द्वारा प्रचारित धर्म 'जैन' कहलाता है।

जैनधर्म का दूसरा महत्वपूर्ण सिद्धांत है कर्म। महावीर स्वामी ने कहा है कि जो जैसा अच्छा, बुरा कर्म करता है उसका फल अवश्य ही भोगना पड़ता है तथा मनुष्य चाहे जो प्राप्त कर सकता है, चाहे जो बन सकता है, इसलिये अपने भाग्य का विधाता वह स्वयं है।
अनेकान्तवाद जैनधर्म का तीसरा मुख्य सिद्धांत है। 
पार्श्वनाथ के चार महाव्रत थे
1.अहिंसा,2.सत्य,3.अस्तेय तथा 4.अपरिग्रह।
महावीर ने पाँचवा महाव्रत 'ब्रह्मचर्य' को बताया |
जैन सिद्धांतों की संख्या 65 है,जिनमें 11 अंग हैं।
जैन के मत में ३ प्रमाण हैं-प्रत्यक्ष,अनुमान तथा आगम(आगम)।

जैन धर्म के मुख्यतः दो सम्प्रदाय हैं

   1. श्वेताम्बर:उजला वस्त्र पहनने वाला)
   2. दिगम्बर(नग्न रहने वाला) ।

दिगम्बर

 - दिगम्बर साधु (निर्ग्रन्थ) वस्त्र नहीं पहनते है, नग्न रहते हैं|
 - दिगम्बर मत में तीर्थकरों की प्रतिमाएँ पूर्ण नग्न बनायी जाती हैं और उनका श्रृंगार नहीं किया है।
 - दिगंबर समुदाय तीन भागों विभक्त किया गया हैं।
  • तारणपंथ
  • दिगम्बर तेरापन्थ
  • बीसपंथ

श्वेताम्बर

श्वेताम्बर एवं साध्वियाँ और संन्यासी श्वेत वस्त्र पहनते हैं, तीर्थकरों की प्रतिमाएँ प्रतिमा पर धातु की आंख, कुंडल सहित बनायी जाती हैं और उनका शृंगार किया जाता है।
श्वेताम्बर को दो भाग मे विभक्त किया गया है:
  1. देरावासी - यॆ तीर्थकरों की प्रतिमाएँ की पूजा करतॆ हैं.
  2. स्थानकवासी - ये मूर्ति पूजा नहीँ करते बल्कि साधु संतों को ही पूजते हैं।
स्थानकवासी के भी दो भाग हैं:-
  1. बाईस पंथी
  2. श्वेताम्बर तेरापन्थ

सात तत्त्व

जैन ग्रंथों में सात तत्त्वों का वर्णन मिलता हैं। यह हैं-
  1. जीव- जैन दर्शन में आत्मा के लिए "जीव" शब्द का प्रयोग किया गया हैं। आत्मा द्रव्य जो चैतन्यस्वरुप माना है।
  2. अजीव- जड़ या की अचेतन द्रव्य को अजीव (पुद्गल) कहा जाता है।
  3. आस्रव - पुद्गल कर्मों का आस्रव करना
  4. बन्ध- आत्मा से कर्म बन्धना
  5. संवर- कर्म बन्ध को रोकना
  6. निर्जरा- कर्मों को क्षय करना
  7. मोक्ष - जीवन व मरण के चक्र से मुक्ति को मोक्ष कहा गया हैं।

व्रत[

जैन धर्म में श्रावक और मुनि दोनों के लिए पाँच व्रत बताए गए है। तीर्थंकर आदि महापुरुष जिनका पालन करते है, वह महाव्रत कहलाते है | 
  1. अहिंसा - किसी भी जीव को मन, वचन, काय से पीड़ा नहीं पहुँचाना। किसी जीव के प्राणों का घात नहीं करना चाहिए।
  2. सत्य - हित, मित, प्रिय वचन बोलना चाहिए।
  3. अस्तेय - बिना दी हुई वस्तु को ग्रहण नहीं करना चाहिए।
  4. ब्रह्मचर्य - मन, वचन, काय से मैथुन कर्म का त्याग करना चाहिए।
  5. अपरिग्रह- पदार्थों के प्रति ममत्वरूप परिणमन का बुद्धिपूर्वक त्याग चाहिए।
- मुनि इन व्रतों का सूक्ष्म रूप से पालन करते है, वही श्रावक स्थूल रूप से करते है।

त्रिरत्न

  • सम्यक् दर्शन - सम्यक् दर्शन को प्रगताने के लिए तत्त्व निर्णय की साधना करनी चहिये | तत्त्व निर्णय - मै इस शरीर आदि से भिन्न एक अखंड अविनाशी चैतन्य तत्त्व भगवान आत्मा हू, यह शरीरादी मै नहीं और यह मेरे नहीं |
  • सम्यक् ज्ञान - सम्यक ज्ञान प्राप्त के लिए भेद ज्ञान की साधना करनी चहिये | 
  • सम्यक् चारित्र - सम्यक चरित्र का तात्पर्य नैैतिक आचरण से है | पंचमहाव्रत का पालन ही शिक्षा है जो चरित्र निर्माण करती है|

अनेकान्तवाद

अनेकान्तावाद का अर्थ है- किसी भी विचार या वस्तु को अलग अलग दष्टिकोण से देखना, समझना, परखना और सम्यक भेद द्धारा सर्व हितकारी विचार या वस्तु को मानना ही अनेकतावाद है ।

स्यादवाद

स्यादवाद का अर्थ है- विभिन्न अपेक्षाओं से वस्तुगत अनेक धर्मों का प्रतिपादन।

अहिंसा

अहिंसा और जीव दया पर बहुत ज़ोर दिया जाता है। सभी जैन शाकाहारी होते थे।अहिंसा का पालन करना सभी मुनियो और श्रावकों का परम धर्म होता है।
- जैन धर्म का मुख्य वाक्य हि "अहिंसा परमो धर्म" है।


धर्मग्रंथ

दिगम्बर आचार्यों द्वारा समस्त जैन आगम ग्रंथो को चार भागो में बांटा गया है -
(1) प्रथमानुयोग
(2) करनानुयोग
(3) चरणानुयोग
(4) द्रव्यानुयोग

तत्त्वार्थ सूत्र- सभी जैनों द्वारा स्वीकृत ग्रन्थ

 Wish You All The Best For Your Examination 

Dear Candidates ! “उम्मीद है हमारी यह Post आपके काम आयी होगी। जिस किसी भी Candidate को अगर हमारे बनाए Posts में किसी प्रकार की कोई त्रुटि(Error) या किसी प्रकार की Problem हो तो आप हमे Comment करके बता सकते हैं और अगर हमारी Posts आपको अच्छे लगे आपके काम आए तो आप इन्हे अपने मित्रों (Friends) को Share कर सकते हैं और हमे Feedback दे सकते हैं।



धन्यवाद !!!!!
Team JANGIR ACADEMY


Join Our facebook Group - 

                                       वैदिक सभ्यता(Vedic Civilization) Indian History

                                        बौद्ध धर्म/दर्शन (Buddhism / philosophy) Indian History |

No comments:

Post a Comment