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Tuesday, September 1, 2020

वैदिक सभ्यता(Vedic Civilization) Indian History |

 वैदिक सभ्यता(Vedic Civilization) 
वैदिक सभ्यता(Vedic Civilization)


सिंधु घाटी सभ्यता (Indus Valley Civilization) के पश्चात भारत में जिस नवीन सभ्यता का विकास हुआ, उसे आर्य(Aryan) अथवा वैदिक सभ्यता(Vedic Civilization) कहा जाता है। वेदिक काल की जानकारी हमे वेदों से प्राप्त होती है, जिसमे ऋग्वेद सबसे प्राचीन  होने के कारण सर्वाधिक महत्वपूर्ण है। वैदिक काल को दो कालो मे :-
   (1) ऋग्वैदिक या पूर्व वैदिक काल (1500 -1000 ई.पु.) 
                                                                                           (2)उत्तर वैदिक काल (1000 - 600 ई.पु.) में बांटा गया है। 
 * वैदिक काल, या वैदिक समय (c. 1500 - c.500 ईसा पूर्व)

वैदिक समाज पितृसत्तात्मक था। आरंभिक वैदिक आर्य पंजाब में केंद्रित एक कांस्य युग के समाज थे, जो कि राज्यों के बजाय जनजातियों में संगठित हुआ करते थे, और मुख्य रूप से जीवन जीने का एक देहाती तरीका था। ।  वैदिक काल के अंत में बड़े शहरों और बड़े राज्यों (महाजनपद कहा जाता है) के उदय के साथ-साथ आंदोलनों (जैन धर्म और बौद्ध धर्म सहित) में वृद्धि हुई, जिसने वैदिक रूढ़िवाद को चुनौती दी।

वैदिक काल में सामाजिक वर्गों के वर्णानुक्रम का उदय हुआ जो प्रभावशाली था। वैदिक धर्म यज्ञ परक था तथा इस काल वर्ण व्यवस्था के आधार पर कार्य करता था | रामायण, महाभारत,और पुराणौं की रचना इस काल मे हुई जो इस काल के ज्ञानप्रदायी स्रोत माना गये  हैं। इतिहासकारों का मानना है कि आर्य मुख्यतः उत्तरी भारत के मैदानी इलाकों में रहते थे इस कारण आर्य सभ्यता का केन्द्र मुख्यतः उत्तरी भारत था। इस काल में उत्तरी भारत (आधुनिक पाकिस्तान, बांग्लादेश तथा नेपाल समेत) कई महाजनपदों में बंटा हुआ था। आर्यों का आगमन मध्य एशिया से माना जाता है |


वैदिक सभ्यता की जानकारी का प्रमुख स्रोत वेद हैं। वेद चार है - (1) ऋग्वेद                      (2)सामवेद 
                                                                                      (3) अथर्ववेद                   (4) यजुर्वेद 
 सर्वप्रथम ऋग्वेद की रचना हुई थी। ऋग्वेद में ही गायत्री मन्त्र है जो सविता(सूर्य) को समर्पित है।

वैदिक काल को मुख्यतः दो भागों में बांटा जा गया है-
(1) ऋग्वैदिक काल - ऋग्वैदिक काल आर्यों के आगमन के तुरंत बाद का काल था जिसमें कर्मकांड गौण थे
(2) उत्तर वैदिक काल - उत्तरवैदिक काल में हिन्दू धर्म में कर्मकांडों की प्रमुखता बढ़ गई।

(1) ऋग्वैदिक काल(1500-1000 ई.पू.)


- मैक्स मूलर के अनुसार आर्य का मूल निवास मध्य ऐशिया था |
- आर्यो द्वारा निर्मित सभ्यता वैदिक काल कहा जाता है |
-  आर्यो द्वारा विकसित सभ्य्ता ग्रामीण सभ्यता थी।
-  आर्यों की भाषा संस्कृत थी।

ऐसा माना जाता है कि आर्यों का एक समूह भारत के अतिरिक्त ईरान (फ़ारस) और यूरोप की तरफ़ भी गया था। ईरानी भाषा के प्राचीनतम ग्रंथ अवेस्ता की सूक्तियां ऋग्वेद से मिलती जुलती हैं। इस भाषिक समरूपता को देखने तो पता चलता है कि ऋग्वेद का काल 1000 ई.पू. हो सकता है |
बाल गंगाधर तिलक ने ज्योतिषीय गणना करके ऋग्वेदिक काल 6000 ई.पू. माना था। हरमौन जैकोबी ने इसे 4500 ईसापूर्व से 2500 ईसापूर्व के बीच माना था वहीं सुप्रसिद्ध संस्कृत विद्वान विंटरनित्ज़ ने इसे 3000 ईसा पूर्व का माना था।

प्रशासन


- प्रशासन की सबसे छोटी इकाई को कुल कहा जाता था । एक कुल में एक घर में एक छत के नीचे रहने वाले लोग शामिल होते थे। 
- एक ग्राम कई कुलों से मिलकर बना होता था। ग्रामों का संगठन विश् कहलाता था और विशों का संगठन जन। 
- बहुत से जन मिलकर राष्ट्र बनाते थे।परिवार के मुखिया को कुलुप कहा जाता था।  ग्राम के मुखिया को ग्रामिणी, विश का प्रधान विशपति ,जन का शासक राजन् (राजा) तथा राष्ट्र के प्रधान को सम्राट कहा जाता था ।
- आर्यों की प्रशासनिक संस्थाएं काफी सशक्त थी । प्रारंभ में राजा का चुनाव जनता के द्वारा होता था बाद में पद धीरे-धीरे पैतृक होता चला गया परंतु राजा निरंकुश नहीं होता था, ऋग्वैदिक आर्यों की दो महत्वपूर्ण राजनैतिक संस्थाएं थीं जिन्हें सभा और समिति कहा जाता था 

1.सभा
         इसे उच्च सदन कहा जाता था, यह समाज के बुद्धिमान और अनुभवी व्यक्तियों की संस्था होती थी। सभा के सदस्यों को सभेय अथवा सभासद कहते थे और सभा के अध्यक्ष को सभापति कहा जाता था

2. समिति- समिति आम जनमानस की संस्था होती थी उसके सदस्य समस्त नागरिक होते थे इसमें सामान्य विषयों पर चर्चा होती थी  उसके अध्यक्ष को ईशान कहते थे, प्रारंभ में समिति में स्त्रियां भी आती थी और उसमें आकर ऋक नामक गान किया करती थी।

* आर्यों की सबसे प्राचीन संस्था को जनसभा थी उसे "विदथ" कहा जाता था।

धर्म

ऋग्वैदिक काल में प्राकृतिक शक्तियों की ही पूजा की जाती थी और कर्मकांडों की प्रमुखता नहीं थी।  इस समय में मूर्ति पूजन नहीं होता था और ना ही मंत्रोचार किया जाता था। कर्मकांड जैसे पूजा-पाठ, व्रत,यज्ञ आदि इस काल में नहीं होते थे।


(2) उत्तरवैदिक काल (1000-600 ई०पू०)

- ऋग्वैदिक काल में आर्यों का निवास स्थान सिंधु तथा सरस्वती नदियों के बीच में था। बाद में वे सम्पूर्ण उत्तर भारत में फ़ैल चुके थे। - - सभ्यता का मुख्य क्षेत्र गंगा और उसकी सहायक नदियों का मैदान हो गया था। गंगा को आज भारत की सबसे पवित्र नदी माना जाता है।  पूर्वी उत्तर प्रदेश और बिहार में कुछ नए राज्यों का विकास हो गया था, जैसे - काशी, कोसल, विदेह (मिथिला), मगध और अंग।
- उतरवेदिक काल मे कौसाम्बी नगर मे॓ पहली बार पक्की ईटो का प्रयोग किया गया था। 
- इस काल मे वर्ण व्यवसाय के बजाय जन्म के आधार पे निर्धारित होने लगे।
- ऋग्वैदिक काल में सरस्वती नदी को सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है। ग॓गा का एक बार और यमुना नदी का उल्लेख तीन बार हुआ है।- 

वैदिक साहित्य

- वैदिक साहित्य में चार वेद एवं उनकी संहिताओं, ब्राह्मण, आरण्यक, उपनिषदों एवं वेदांगों को शामिल किया जाता है।
- ऋग्वेद, सामवेद, यजुर्वेद और अथर्ववेद विश्व के प्रथम प्रमाणिक ग्रन्थ माने जाते है।

* वेदों को अपौरुषेय कहा गया है। गुरु द्वारा शिष्यों को मौखिक रूप से कंठस्त कराने के कारण वेदों को "श्रुति" की संज्ञा दी गई है।

(1) ऋग्वेद

- ऋग्वेद मे देवताओं की स्तुति से सम्बंधित मंत्रो का संग्रह है। 
- यह 10 मंडलों में विभक्त है। इसमे 2 से 7 तक के मंडल प्राचीनतम हैं। 1 एवं 10 मंडल बाद में जोड़े गए हैं। इसमें 1028 सूक्त हैं। 
- इसकी भाषा पद्यात्मक है। 
- ऋग्वेद में 33 प्रकार के देवों (दिव्य गुणो से युक्त पदार्थो) का उल्लेख मिलता है। 
- प्रसिद्ध गायत्री मंत्र जो सूर्य से सम्बंधित देवी गायत्री को संबोधित है, ऋग्वेद में सर्वप्रथम प्राप्त होता है। 
- ' असतो मा सद्गमय ' वाक्य ऋग्वेद से लिया गया है। 
- ऋग्वेद में मंत्र को कंठस्त करने में स्त्रियों के नाम भी मिलते हैं, जिनमें प्रमुख हैं- घोषा,शाची, लोपामुद्रा, पौलोमी एवं काक्षावृती आदि। - इसमे  पुरोहित को होत्री कहा जाता था ।

(2) यजुर्वेद

- यजु का अर्थ होता है- यज्ञ।
- इसके पाठकर्ता को अध्वर्यु कहा जाता हैं।
- यजुर्वेद की दो शाखाएं हैं- कृष्ण यजुर्वेद तथा शुक्ल यजुर्वेद।
- यजुर्वेद की भाषा पद्यात्मक एवं गद्यात्मक है।
- कृष्ण यजुर्वेद की चार शाखाएं हैं- मैत्रायणी संहिता, काठक संहिता, कपिन्थल तथा संहिता।
- शुक्ल यजुर्वेद की दो शाखाएं हैं- मध्यान्दीन तथा कण्व संहिता।
- यह 40 अध्याय में विभाजित है।
- इसी ग्रन्थ में पहली बार राजसूय तथा वाजपेय जैसे दो राजकीय समारोह का उल्लेख है।

(3) सामवेद

- सामवेद को भारत की प्रथम संगीतात्मक पुस्तक होने का गौरव प्राप्त है।
- सामवेद की रचना ऋग्वेद में दिए गए मंत्रों को गाने योग्य बनाने हेतु की गयी थी।
- इसमे 1810 छंद हैं 
- सामवेद तीन शाखाओं में विभक्त है- कौथुम, राणायनीय और जैमनीय।

ब्राह्मण

- वैदिक मन्त्रों तथा संहिताओं को ब्रह्म कहा जाता  है। वहीं ब्रह्म के विस्तारित रुप को ब्राह्मण कहा गया है। 
- यह मुख्यतः गद्य शैली में उपदिष्ट है।
- ऐतरेय ब्राह्मण में राज्याभिषेक के नियम प्राप्त होते हैं।
- तैतरीय ब्राह्मण कृष्णयजुर्वेद का ब्राह्मण है।
- ब्राह्मण ग्रंथों से हमें बिम्बिसार के पूर्व की घटना का ज्ञान प्राप्त होता है।
- ऐतरेय ब्राह्मण में आठ मंडल हैं और पाँच अध्याय हैं। जिसे पंजिका भी कहा जाता है।

आरण्यक

- आरण्यक वेदों का वह भाग है जो गृहस्थाश्रम त्याग के उपरान्त वानप्रस्थ लोग जंगल में पाठ किया करते थे | 
- वर्तमान में सात अरण्यक उपलब्ध हैं।
- सामवेद और अथर्ववेद का कोई आरण्यक स्पष्ट और भिन्न रूप में उपलब्ध नहीं है।

उपनिषद

- उपनिषद प्राचीनतम दार्शनिक विचारों का संग्रह है। उपनिषदों में ‘वृहदारण्यक’ तथा ‘छान्दोन्य’, सर्वाधिक प्रसिद्ध हैं। इन्हीं उपनिषदों से यह स्पष्ट होता है कि आर्यों का दर्शन विश्व के अन्य सभ्य देशों के दर्शन से सर्वोत्तम तथा अधिक आगे था। 
- कुल उपनिषदों की संख्या 108 है।
- "सत्यमेव जयते" मुण्डकोपनिषद से लिया गया है।
- मैत्रायणी उपनिषद् में त्रिमूर्ति और चार्तु आश्रम सिद्धांत का उल्लेख है।

वेदांग

युगान्तर में वैदिक अध्ययन के लिए छः विधाओं (शाखाओं) का जन्म हुआ जिन्हें ‘वेदांग’ कहते हैं। वेदांग का शाब्दिक अर्थ है वेदों का अंग, तथापि इस साहित्य के पौरूषेय होने के कारण श्रुति साहित्य से पृथक ही गिना जाता है। वेदांग को स्मृति भी कहा जाता है, क्योंकि यह मनुष्यों की कृति मानी जाती है। वेदांग सूत्र के रूप में हैं इसमें कम शब्दों में अधिक तथ्य रखने का प्रयास किया गया है।
वेदांग की संख्या 6 है |
शिक्षा- स्वर ज्ञान
कल्प- धार्मिक रीति एवं पद्धति
निरुक्त- शब्द व्युत्पत्ति शास्त्र
व्याकरण- व्याकरण
छंद- छंद शास्त्र
ज्योतिष- खगोल विज्ञान

राजनीतिक स्थिति

- ऋग्वैदिक काल एक कबीलाई व्यवस्था वाला शासन था जिसमें सैनिक भावना प्रमुख थी। राजा को गोमत भी कहा जाता था।
- वैदिक काल में राजतंत्रात्मक प्रणाली प्रचलित थी। इसमें शासन का प्रमुख राजा होता था।
- सभा, समिति तथा विदथ नामक प्रशासनिक संस्थाएं थीं।
- सभा श्रेष्ठ लोंगो की संस्था थी, समिति आम जनप्रतिनिधि सभा थी एवं विदथ सबसे प्राचीन संस्था थी। ऋग्वेद में सबसे ज्यादा बार उल्लेख विदथ का 122 बार हुआ है।
- सैन्य संचालन वरात, गण व सर्ध नामक कबीलाई संगठन करते थे।
- शतपथ ब्रह्मण के अनुसार अभिषेक होने पर राजा महँ बन जाता था। राजसूय यज्ञ करने वाले की उपाधि राजा तथा वाजपेय यज्ञ करने वाले की उपाधि सम्राट थी।
- स्पर्श, गुप्तचरों को और पुरूप, दुर्गापति को कहा जाता था।
- राजा का प्रशासनिक सहयोग पुरोहित एवं सेनानी आदि 12 रत्निन करते थे। चारागाह के प्रधान को वाज्रपति एवं लड़ाकू दलों के प्रधान को ग्रामिणी कहा जाता था।

12 रत्निन

पुरोहित- राजा का प्रमुख परामर्शदाता,
सेनानी- सेना का प्रमुख,
ग्रामीण- ग्राम का सैनिक पदाधिकारी,
अक्षवाप- लेखाधिकारी,
गोविकृत- वन का अधिकारी,
पालागल- राजा का मित्र।
महिषी- राजा की पत्नी,
सूत- राजा का सारथी,
क्षत्रि- प्रतिहार,
संग्रहित- कोषाध्यक्ष,
भागदुध- कर एकत्र करने वाला अधिकारी,

विविध क्षेत्रों के विशेषज्ञ

होत्र- ऋग्वेद का पाठ करने वाला।
उदगाता- सामवेद की रचनाओं का गान करने वाला।
अध्वर्यु- यजुर्वेद का पाठ करने व
ब्रह्मा- संपूर्ण यज्ञों की देख रेख करने वाला।

सामाजिक स्थिति

- वर्ण व्यवस्था कर्म आधारित थी। दसवें मंडल को परवर्ती काल माना जाता है।
- समाज पितृसत्तात्मक था। संयुक्त परिवार प्रथा प्रचलित थी।
- परिवार का मुखिया 'कुलप' कहलाता था। परिवार कुल कहलाता था। कई कुल मिलकर ग्राम, कई ग्राम मिलकर विश, कई विश मिलकर - जन एवं कई जन मिलकर जनपद बनते थे। अतिथि सत्कार की परम्परा का सबसे ज्यादा महत्व था।
- एक और वर्ग ' पणियों ' का था जो धनि थे और व्यापार करते थे।
- भिखारियों और कृषि दासों का अस्तित्व नहीं था। संपत्ति की इकाई गाय थी जो विनिमय का माध्यम भी थी। सारथी और बढई समुदाय को विशेष सम्मान प्राप्त था।
अस्पृश्यता, सती प्रथा, परदा प्रथा, बाल विवाह आदि का प्रचलन नहीं था।

* शिक्षा एवं वर चुनने का अधिकार महिलाओं को था। विधवा विवाह, महिलाओं का उपनयन संस्कार, नियोग, गन्धर्व एवं अंतर्जातीय विवाह प्रचलित था।
- वस्त्राभूषण स्त्री एवं पुरूष दोनों को प्रिय थे।
- जौ (यव) मुख्य अनाज था। शाकाहार का प्रचलन था। सोम रस (अम्रित जैसा) का प्रचलन था।
- नृत्य, संगीत, पासा, घुड़दौड़, मल्लयुद्ध, शुइकर आदि मनोरंजन के प्रमुख साधन थे।
- अपाला, घोष, मैत्रयी, विश्ववारा, गार्गी आदि विदुषी महिलाएं थीं।

* सर्वप्रथम 'जाबालोपनिषद ' में चारों आश्रम ब्रम्हचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ तथा संन्यास आश्रम का उल्लेख मिलता है।


आर्थिक स्थिति

अर्थव्यवस्था का प्रमुख आधार पशुपालन एवं कृषि था।
ज्यादा पाल्तुपशु रखने वाले गोमत कहलाते थे। चारागाह के लिए ' उत्यति ' या ' गव्य ' शब्द का प्रयोग हुआ है। दूरी को ' गवयुती ', पुत्री को दुहिता (गाय दुहने वाली) तथा युद्धों के लिए ' गविष्टि ' का प्रयोग होता था।
आवास घास-फूस एवं काष्ठ निर्मित होते थे।
ऋण लेने एवं देने की प्रथा प्रचलित थी जिसे ' कुसीद ' कहा जाता था।
बैलगाड़ी, रथ एवं नाव यातायात के प्रमुख यातायात के साधन थे।

कृषि

- सर्वप्रथम शतपथ ब्राम्हण में कृषि का उल्लेख मिलता है। 
- ऋग्वेद के प्रथम और दसम मंडलों में बुआई, जुताई, फसल की गहाई आदि का वर्णन है। 
- ऋग्वेद में केवल यव (जौ) नामक अनाज का उल्लेख मिलता है। 
- ऋग्वेद के चौथे मंडल में कृषि का वर्णन है।

- उतर वैदिक साहित्यों में ही अन्य अनाजों जैसे- गोधूम(गेंहू), ब्रीही (चावल) आदि की जानकारी मिलती है।
- काठक संहिता में 24 बैलों द्वारा हल खींचे जाने का, अथर्ववेद में वर्षा, कूप एवं नाहर का तथा यजुर्वेद में हल का ' सीर ' के नाम से उल्लेख है। उस काल में कृत्रिम सिंचाई की व्यवस्था भी थी।

पशुपालन

- पशुचारण ही उनकी आजीविका का प्रमुख साधन था। गाय ही विनिमय का प्रमुख साधन थी।
- ऋग्वैदिक काल में भूमिदान या व्यक्तिगत भू-स्वामित्व की धारणा विकसित नही हुई थी।

व्यापार

 व्यापार विनिमय पद्धति पर आधारित था। समाज का एक वर्ग 'पाणी' व्यापार  करते थे। राजा को नियमित कर देने या भू-राजस्व देने की प्रथा नहीं थी। राजा को स्वेच्छा से भाग या नजराना दिया जाता था। पराजित कबीला भी विजयी राजा को भेंट देता था।  

धातु एवं सिक्के :

- ऋग्वेद में उल्लेखित धातुओं में सर्वप्रथम धातू, अयस (ताँबा या कांसा) था। वे सोना (हिरव्य या स्वर्ण) एवं चांदी से भी परिचित थे। लेकिन ऋग्वेद में लोहे का उल्लेख नहीं है। ' निष्क ' संभवतः सोने का आभूषण या मुद्रा था जो विनिमय के काम में भी आता था।

उद्योग : 

- ऋग बढ़ई एवं धूकर का कार्य अत्यन्त महत्वपूर्व था। अन्य प्रमुख उद्योग वस्त्र, बर्तन, लकड़ी एवं चर्म कार्य था। 
- स्त्रियाँ भी चटाई बनने का कार्य करतीं थीं।

धार्मिक स्थिति

-आर्य एकईशवर पर विश्वास करते थे। मैक्समूलर के अनुसार आर्य हेनोथीज्म परंपरा का पालन करते थे।
 - वैदिक धर्म पुरूष प्रधान धर्म था। 

- वैदिक धर्म पुरोहितों से नियंत्रित धर्म था। पुरोहित ईश्वर एवं मानव के बीच मध्यस्थ था। मनुष्य एवं देवता के बीच मध्यस्थ की भूमिका निभाने वाले देवता के रूप में अग्नि की पूजा की जाती थी। 

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