राजस्थान की चित्र शैलियां (Rajasthan of Picture Styles) part -2 Rajasthan GK - JANGIR ACADEMY | Online Study Portal

Wednesday, September 2, 2020

राजस्थान की चित्र शैलियां (Rajasthan of Picture Styles) part -2 Rajasthan GK

राजस्थान की चित्र शैलियां (Rajasthan's Picture Styles)

राजस्थान की चित्र शैलियां (Rajasthan of Picture Styles)


                           
                 राजस्थान की चित्र शैलियां (Rajasthan's Picture Styles) part -1 Rajasthan GK 

2.मारवाड़ स्कूल

(A) जोधपुर शैली

- प्रमुख चित्रकार - किशनदास भाटी, वीर सिंह भाटी, देवदास भाटी, देवी सिंह भाटी, अमर सिंह भाटी, शिवदास भाटी, रतन भाटी, नारायण भाटी, गोपालदास भाटी, प्रमुख थे।
- इस शैली पर मुगल शैली का प्रभाव देकने को मिलता हैं।
- इस शैली का प्रारम्भिक विकास राव मालदेव (52 युद्धों का विजेता) के काल में हुआ।
- इस शेली का स्वर्णकाल, जसवंत सिंह प्रथम का काल था ।
- इस शैली पर मुगल शैली का प्रभाव मोटा राजा उदयसिंह के समय पड़ा।
- अन्य संरक्षक शासक  - मानसिंह, शूरसिंह, अभय सिंह थे।
- चित्रित विषय - राजसी ठाठ-बाट, दरबारी दृक्श्य आदि।
- प्रमुख चित्र - इस चित्रकला शैली में मुख्यतः लोकगाथाओं का चित्रण किया गया है।
  जैसे:-भूम लदे, निहालदे,सूरसागर, रागमाला, ढोला-मारू, उजली-जेठवा, कल्याण रागनी, नाथ       चरित्र(मानसिंह  नाथ संप्रदाय(भगवान शंकर) से प्रभावित था),  पंचतंत्र, कामसूत्र।

(B) किशनगढ़ शैली

- किशनगढ़ शैली, किशनगढ के शासक सांवत सिंह राठौड़ के समय फली-फूली।
- इस शैली का स्वर्णकाल 1747 से 1764 ई. का समय माना जाता है।
- महाराजा सांवत सिंह के समय इस शैली का सर्वश्रेष्ठ चित्र बणी-ठणी को सांवत सिंह के चित्रकार "मोरध्वज निहाल चन्द" द्वारा चित्रित किया गया।
- इस शैली के चित्र "बणी-ठणी" पर सरकार द्वारा 1973 ई. में 20 पैसें का डाक टिकट जारी किया जा चुका।
* एरिक डिक्सन ने "बणी-ठणी" चित्र को  "मोनालिसा" कहा है।
- इस शैली को अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रतिष्ठा दिलाने का श्रेय एरिक डिक्सन तथा फैयाज अली को जाता है।
- किशनगढ़ शैली, का प्रमुख विषय नारी सौंदर्य रहा है। कमल से भरे सरोवर, नौका विहार, भ्रमण चित्रण आदि    इस शैली की विशेषता है।
- यह शैली कांगड़ा शैली, से प्रभावित रही है।
- वेसरि किशनगढ़ शैली में प्रयुक्त नाक का प्रमुख आभूषण।
- अन्य चित्र -चांदनी रात की संगीत गोष्ठी चित्रकार अमरचंद द्वारा सावंत सिंह के समय बनाया गया था ।
- अन्य चित्रकार - छोटू सिंह व बदन सिंह अन्य प्रमुख चित्रकार है।
- किशनगढ के शासक सांवत सिंह अन्तिम समय में राजपाट ढोड़कर-वृदांवन चले गए और कृष्ण भक्ति में     लीन हो गए। उन्होने अपना नाम "नागरीदास" रखा तथा "नागर समुच्चय" नाम से काव्यरचना करने लगे।

(C) बीकानेर शैली

- इस शैली पर मुगल शैली का प्रभाव (राजा कल्याणमल के समय पड़ा) देखने को मिलता है।
- इस शैली का प्रारम्भिक विकास रायसिंह राठौड़ के समय हुआ था।
- इस शैली का स्वर्णकाल महाराजा अनूपसिंह का काल था।
- इस शैली, का सबसे प्राचीन चित्र "भागवत पुराण" महाराजा रायसिंह के समय चित्रित किया गया।
- इस शैली का प्रयोग आला गिल्ला पद्धति (नम दीवार पर किया गया चूने के माध्यम से भीत्ती चित्रण आला गिला पद्धति कहलाती है, इस कला को मुग़ल सम्राट अकबर के काल में इटली से लाया गया)|
- काष्ट चित्रांकन, मथैरण तथा उस्ता कला में किया गया।
- इस शैली के अन्तर्गत महाराजा राय सिंह के समय प्रसिद्ध चित्रकार हामित रूकनुद्दीन थे।
- महाराजा अनूपसिंह के प्रमुख दरबारी चित्रकार हसन, अल्लीरज्जा और रामलाल थे।
- अन्य चित्रकार - मुन्नालाल व मस्तलाल अन्य प्रमुख चित्रकार थे।
- इस शैली में चित्रण का विषय दरबारी दृश्य, बादल दृश्य थे।
- इस शैली में पुरूष आकृति दाड़ी मूंह युक्त तथा उग्रस्वभाव वाली दर्शाई गई है।
* चित्रकार चित्र के नीचे अपने हस्ताक्षर व तिथी अंकित करते थे।

(D) जैसलमेर शैली

- इस शैली का प्रारम्भिक विकास हरराय भाटी के काल में हुआ।
- इस शैली का स्वर्णकाल अखैराज भाटी का काल माना जाता है।
- राज्य की एक मात्र शैली है जिस पर किसी अन्य शैली का प्रभाव नहीं है।
- इस शैली में रंगों की अधिकता देखने को मिलती है।
- इस शैली का प्रसिद्ध चित्र "मूमल" है। "मूमल" को 'मांड की मोनालिसा' कहा जाता है।

(E) नागौर शैली

- इस शैली में धार्मिक चित्रण सर्वाधिक किया गया है।
- नागौर किले की दीवारों पर इस शैली के चित्र देखने को मिलते हैं।
- नागौर शैली में हल्के /बुझे हुए रंगों का प्रयोग किया गया है।

(F) अजमेर शैली

- सभी रंगों का संयोजन
- गरीबों के घरों में भी इस शैली के चीत्र बने।

                                         3.ढूढाड़ स्कूल

(A) अलवर शैली

- प्रमुख चित्रकार : - मुस्लिम संत शेख सादी द्वारा रचित ग्रन्थ गुलिस्ताँ पर आधारित चित्र गुलाम अली तथा  बलदेव नामक चित्रकारों द्वारा तैयार किए गए। डालचंद, सहदेव व बुद्धाराम अन्य प्रमुख चित्रकार है।
- अलवर शैली पर ईरानी, मुगल तथा जयपुर शैली का प्रभाव देखने को मिलता है।
- महाराजा विनय सिंह का काल इस शैली का स्वर्णकाल था।
- प्रमुख विषय : बसलो चित्रण अर्थात् बार्डर पर सुक्ष्म चित्रण तथा योगासन इस शैली के प्रमुख विषय है।
 अलवर शैली के चित्रों की पृष्ठ भूमि में शुभ्र आकाश का तथा सफेद बादलों का दृश्य दिखाया गया है।
- महाराजा शिवदान के समय इस शैली में वैश्या या गणिकाओं पर आधारित चित्र बनाए गए, अर्थात कामशास्त्र पर आधारित चित्र इस शैली की निजी विशेषता मानी जाती है।
- इस शैली में हाथी दांत की प्लेटों पर चित्रकारी का कार्य मूलचंद के द्वारा किया गया है।

(B) आमेर शैली

- प्रमुख चित्र - 1. बिहारी सतसई (जगन्नाथ -चित्रकार)
                      2.आदि पुराण (पुश्दत्त -चित्रकार )
- इस शैली मै प्राकृतिक रंगों की प्रधानता है।
- इस शैली का प्रारम्भिक विकास महाराजा मानसिंह- प्रथम के काल में हुआ।
- मिर्जा राजा जयसिंह का काल आमेर चित्रकला शैली का स्वर्णकाल था।
- आमेर चित्रकला शैली का प्रयोग आमेर के महलों में भिति चित्रण के रूप में किया गया है।
- इस शैली पर मुगल शैली का सर्वाधिक प्रभाव पड़ा ।

(C) जयपुर शैली

- प्रमुख चित्र - 1. गोवर्धन पूजा (गोपाल दास -चित्रकार) 2. रासमण्डल
- प्रमुख चित्रकार - गोविन्दराम, लक्ष्मण दास, सागिगराम, गोपाल दास प्रमुख चित्रकार थे।
- चित्रण के विषय - युद्ध प्रसंग,जानवरों की लड़ाई, कामसूत्र व पौराणिक कथाऐं।
- इस शैली का प्रारम्भिक विकास सवाई जयसिंह के समय हुआ था।
- इस शैली का स्वर्णकाल सवाई प्रताप सिंह का काल माना जाता है।
* जयपुर के शासक ईश्वरी सिंह के समय इस शैली में राजा महाराजाओं के बडे़-बडे़ आदमकद चित्र अर्थात पोट्रेट चित्र दरबारी चित्रकार साहिब राम के द्वारा तैयार किए गए थे ।

(D) उनियारा शैली

- प्रमुख चित्रकार - मीर बक्ष, बख्ता, काशीराम, धीमा, प्रमुख चित्रकार है।
- इस शैली में जयपुर व बूंदी शैली का मिश्रण है।
- इस शैली का प्रमुख विषय रसिक प्रिया है।
- रसिकप्रिया रीति काल के प्रसिद्ध कवि केशव द्वारा लिखा गया ग्रंथ है |

(E) शेखावाटी शैली

- प्रमुख चित्रकार  - बालूराम, तनसुख, जयदेव।
- इस शैली का सर्वाधिक विकास सार्दुल सिंह शेखावत के काल में हुआ।
- यह शैली हवेलियों में भिति चित्रण की दृष्टि से समृद्ध शैली है।
* इस शैली में भित्ति चित्रण करने वाले चित्रकार चेजारे कहलाते है।
- शेखावटी शैली के भित्ति चित्रकार अपने चित्रों पर अपना नाम तथा तिथि अंकित करते थे।
- बलखाती बालों की लट का एक ओर अंकन शैखावटी शैली का प्रमुख चित्र है।
- लोक जीवन की झांकी इस शैली का प्रमुख चित्रण विषय रहा है।

                                         4.हाडौती स्कूल

(A) बूंदी शैली

- प्रमुख चित्रकार-  अहमदअली
- इस शैली का स्वर्णकाल सुर्जन सिंह हाड़ा का काल माना जाता है।
- इस शैली को राजस्थानी विचारधारा की शैली या प्राचीन विचारधारा की शैली कहा जाता है।
- बूंदी शैली में दक्षिण शैली, ईरानी शैली, मुगल शैल/व मराठा शैली का प्रभाव देखने को मिलता है।
* बूंदी शैली के अन्तर्गत यहां चित्रशाला का निर्माण राव उम्मेद सिंह हाडा ने करवाया था। जिसे भित्ति चित्रों का स्वर्ग कहते हैं।
- रंगमहल के चित्र राव शत्रुशाल हाडा के समय बने ।
- पशु-पक्षियों का चित्रण बूंदी शैली की प्रमुख विशेषताएं है।
- इस शैली में सुनहरे तथा भडकिले रंगों का प्रयोग बहुतायत किया गया है।
- वृक्षों पर कुदकते बंदर, वर्षा में नाचता मोर, वन में धूमता शेर तथा पुरूष आकृति में चित्रण के विषय थे।

(B) कोटा शैली

- प्रमुख चित्रकार - डालू, नूर मुहम्मद, गोविन्दराम, रघुनाथदास, लच्छीराम (कुचामनी ख्याल का जनक) आदि
कोटा शैली का स्वतंत्र विकास महाराजा रामसिंह के समय हुआ।
- इस शैली में महाराजा उम्मेद सिंह हाडा के समय सर्वाधिक चित्र चित्रित किए गए।
* शिकारी दृश्यों का चित्रण इस शैली की मुख्य विशेषता है।
* राज्य की एक मात्र शैली जिसमें नारियों को शिकार करते हुए दर्शाया गया है।
- कोटा शैली का सबसे बड़ा चित्र रागमाला सैट, 1768 ई. में महाराजा गुमानसिंह के समय डालू नामक चित्रकार द्वारा तैयार किया गया।

राजस्थान मे चित्रकला की प्रमुख संस्थाऐं

(I) जोधपुर - चितेरा , धोरा
(II) उदयपुर- ढखमल, तुलिका कला परिश्द
(III) जयपुर-  कलावृत, आयाम. पैंग, क्रिएटिव संस्थाऐं, जवाहर कला केन्द्र (1993)
(IV) भीलवाडा - अंकन
(V) राजस्थान स्कूल ऑफ आर्ट्स एवं क्राफ्ट्स - महाराजा रामसिंह के 1857  में जयपुर में स्थापित की,  इसका पुराना नाम मदरसा-ए-हुनरी था।
(VI) राजस्थान ललित कला अकादमी - 24 नवम्बर 1957  में जयपुर में स्थापित की गयी ।

प्रमुख चित्रकला संग्रहालय

1.पोथी खाना- जयपुर                     2. जैन भण्डार - जैसलमेर
3. पुस्तक/मान प्रकाश -जोधपुर       4. सरस्वती भण्डार - उदयपुर
5. अलवर भण्डार - अलवर              6. कोटा भण्डार - कोटा

प्रमुख चित्रकार

1. रामगोपाल विजयवर्गीय

- जन्म:- बालेर (सवाईमाधोपुर) {नारी चित्रण इनका प्रमुख विषय था।}
- इन्हे राजस्थान में एकल चित्रण प्रणाली की परम्परा प्रारम्भ करने वाले प्रथम चित्रकार कहा जाता है।
- इन्हे  "राजस्थान की आधुनिक चित्रकला का जनक" कहते है

2. गोवर्धन लालबाबा

- जन्म - कांकरोली (राजसमंद) {भील जीवन का चित्रण इनका प्रमुख विषय था।}
- इन्हें "भीलों का चितेरा" भी कहा जात है।
- इनका प्रमुख /प्रसिद्ध चित्र :-  बारात 

3. परमानन्द चोयल

- जन्म स्थान  - कोटा
* भैसों का चित्रण इनका प्रमुख विषय था, इन्हें " भेसों का चितेरा"भी कहा जाता है।

4. जगमोहन माथोडिया

- जन्म स्थान - जयपुर
- चित्रण के विषय 'श्वान' थे, इन्हें "श्वानों का चितेरा" भी कहा जाता है।

5. भूर सिंह शेखावत

- जन्म स्थान  - बीकानेर
- प्रमुख विषय :- ग्रामिण परिवेश व देश भक्तों का चित्रण, इन्हें "गांवों का चितेरा" कहा जाता है।

6. कृपाल सिंह शेखावत

- जन्म स्थान  - मऊगांव (सीकर)
* इन्हें "ब्लयू पाॅटरी का जादूगर " कहा जाता है। परम्परागत पाॅटरी में ब्लयू (नीला) व हरा रंग उपयोग में लिया जाता था। कृपाल सिंह शेखावत ने पाॅटरी में 25 रंगो का प्रयोग किया था।
* इन्हें सन् 1974 में 'पद्म श्री' पुरस्कार दिया गया था।

7. सोभाग मल गहलोत

- जन्म स्थान - जयपुर
- प्रमुख विषय : पक्षियों के घोसलों का चित्रण, इन्हें "नीड का चितेरा" कहते है।

8. सुरजीत कौर चायल

- कार्यक्षेत्र:- जयपुर
- राजस्थान की प्रथम चित्रकार है जिनकी चित्रकला का प्रदर्शन जापान की "फुकाको कला दीर्घा" में किया गया।

9. देवकी नन्दन शर्मा

- प्रमुख विषय :- पशु पक्षियों का चित्रण। इन्हें "Man of nature and living objects" "(प्रकृति और जीवित वस्तुओं का मनुष्य")कहते है।

10. राजा रवि वर्मा

- जन्म स्थान :- केरल (राजा रवि वर्मा को " भारतीय चित्रकला का जनक" कहा जाता है।)

11. ए.एच.मूलर

- जर्मनी के परम्परावादी चित्रकार जिनके चित्र बीकानेर संग्रहालय में संग्रहीत है।

भित्ति-चित्रण

भिति चित्रण की प्रमुख रूप से तीन विधियां है।

1. फ्रेसको ब्रुनो

- ताजा पलस्तर की हुई नम भिति पर किया गया चित्रण कार्य। राजस्थान में इस कला को आलागीला/आरायश    कला कहते है।
- इस कला को मुगल सम्राट आकबर के समय इटली से भारत लाया गया।
- परम्परा जयपुर से प्रारम्भ हुई और फिर पूरे राजस्थान में फैली।
- शैखावटी क्षेत्र में इस शैली को पणा कहा जाता है।

2. फ्रेसको सेको

इटली की इस कला में पलस्तर की हुई भिति के सुखने के पश्चात् चित्रणकार्य किया जाता है।
साधारण भित्ति चित्रण का कार्य साधारण दीवार पर किया गया चित्रण है।
अन्य महत्वपूर्ण तथ्य
- पैर में से कांटा निकालती हुई नायिका चित्र कोटा शैली का है।
- भित्ति चित्रांकन की दृष्टि से कोटा तथा बूंदी रियासत राजस्थान की समृद्ध रियासत है।
- बीकानेर शैली तथा शैखावटी शैली के चित्रकार चित्रों पर अपना नाम व तिथि अंकित करते थे।
- कोटा की झााला हवेली शिकारी दृश्यों के चित्रण के लिए प्रसिद्ध रही है, इनका निर्माण झाला जालिम सिंह द्वारा किया गया।
- शैखावटी में गोपालदास की छत्तरी पर किया गया भिति चित्रण सबसे प्राचीन है। जो देवा नामक चित्रकार द्वारा तैयार किए गए है।
-राजस्थानी चित्रकला शैलियों में सबसे प्राचीन चित्र दसवैकालिका सुत्र चूर्णि जैसलमेर शैली के अन्तर्गत चित्रत किया गया, जो वर्तमान में जैन भण्डार में संग्रहित है।

 Wish You All The Best For Your Examination 

Dear Candidates ! “उम्मीद है हमारी यह Post आपके काम आयी होगी। जिस किसी भी Candidate को अगर हमारे बनाए Posts में किसी प्रकार की कोई त्रुटि(Error) या किसी प्रकार की Problem हो तो आप हमे Comment करके बता सकते हैं और अगर हमारी Posts आपको अच्छे लगे आपके काम आए तो आप इन्हे अपने मित्रों (Friends) को Share कर सकते हैं और हमे Feedback दे सकते हैं।



धन्यवाद !!!!!
Team JANGIR ACADEMY


Join Our facebook Group - 





No comments:

Post a Comment