राजस्थान की चित्र शैलियां (Rajasthan's Picture Styles)
राजस्थान के प्रमुख आभूषण (Major Jewelry of Rajasthan) Rajasthan gk |
राजस्थान में प्राचीनतम चित्रण के अवशेष कोटा के आसपास चंबल नदी के किनारे की चट्टानों पर मुकन्दरा एवं दर्रा की पहाड़ीयों, आलनियां नदी के किनार की चट्टानों आदि स्थानों पर प्राप्त हुए हैं। राजस्थान में उपलब्ध सर्वाधिक प्राचिनतम चित्रित ग्रंथ जैसलमेर भंडार में 1060 ई. के ‘ओध निर्युक्ति वृत्ति’ एवं ‘दस वैकालिका सूत्र चूर्णी’ प्राप्त हुये हैं।
राजस्थान की चित्रकला शैली पर प्रभाव -- गुजरात तथा कश्मीर की शैलियों का
राजस्थानी चित्र शैली विशुद्ध रूप से भारतीय है ऐसा मत "विलियम लारेन्स" ने प्रकट किया।
राजस्थान में प्राचीनतम चित्रण के अवशेष कोटा के आसपास चंबल नदी के किनारे की चट्टानों पर मुकन्दरा एवं दर्रा की पहाड़ीयों, आलनियां नदी के किनार की चट्टानों आदि स्थानों पर प्राप्त हुए हैं। राजस्थान में उपलब्ध सर्वाधिक प्राचिनतम चित्रित ग्रंथ जैसलमेर भंडार में 1060 ई. के ‘ओध निर्युक्ति वृत्ति’ एवं ‘दस वैकालिका सूत्र चूर्णी’ प्राप्त हुये हैं।
राजस्थानी चित्रकला के विषय
- पशु-पक्षियों का चित्रण
- शिकारी दृश्य
- दरबार के दृश्य
- नारी सौन्दर्य
- धार्मिक ग्रन्थों का चित्रण आदि
* राजस्थानी चित्रकला शैलियों की मूल शैली "मेवाड़ शैली" को माना जाता है |
* सर्वप्रथम आनन्द कुमार स्वामी ने सन् 1916 ई. में अपनी पुस्तक "राजपुताना पेन्टिग्स" में राजस्थानी चित्रकला का वैज्ञानिक वर्गीकरण प्रस्तुत किया।
भौगौलिक आधार पर राजस्थानी चित्रकला शैली को चार भागों में बांटा जा सकता है। जिन्हें स्कूलस भी कहा जाता है।
1.मेवाड़ स्कूल:- उदयपुर शैली, देवगढ़ शैली, शाहपुरा शैली, नाथद्वारा शैली, चावण्ड शैली,।
2.मारवाड़ स्कूल:- जोधपुर शैली, नागौर शैली, किशनगढ़ शैली बीकानेर शैली जैसलमेर शैली,।
3.हाडौती स्कूल:- कोटा शैली, बुंदी शैली, झालावाड़ शैली आदि ।
4.ढुढाड़ स्कूल:- जयपुर शैली, आमेर शैली,शेखावटी शैली, उनियारा शैली, अलवर शैली।
शैलियों की पृष्ठभूमि का रंग
1. लाल - मेवाड़ शैली2. हरा - जयपुर की अलवर शैली
3. नीला - कोटा शैली
4. गुलाबी/श्वेत - किशनगढ शैली
5. सुनहरी - बूंदी शैली
6. पीला - जोधपुर व बीकानेर शैली
वृक्ष का चित्रण
पीपल/बरगद - जयपुर तथा अलवर शैली
खजूर - कोटा तथा बूंदी शैली
आम - जोधपुर तथा बीकानेर शैली
कदम्ब - मेवाड़ शैली
केला - नाथद्वारा शैली
पशु तथा पक्षी का चित्रण
हाथी व चकोर - मेवाड़ शैलीचील/कौआ व ऊंठ - जोधपुर तथा बीकानेर शैली
हिरण/शेर व बत्तख - कोटा तथा बूंदी शैली
अश्व व मोर:- जयपुर व अलवर शैली
गाय व मोर - नाथद्वारा शैली
नयन/आंखे का चित्रण
खंजर समान - बीकानेर शैलीमृग समान - मेवाड शैली
आम्र पर्ण - कोटा व बूंदी शैली
मीन कृत:- जयपुर व अलवर शैली
कमान जैसी - किशनगढ़ शैली
बादाम जैसी - जोधपुर शैली
1. मेवाड़ स्कूल
(A) उदयपुर शैली
इस शैली के प्रमुख चित्रकार - मनोहर लाल, साहिबदीन (महाराणा जगत सिंह -प्रथम के दरबारी चित्रकार) कृपा राम, उमरा आदि थे ।प्रमुख चित्रित ग्रन्थ - 1. आर्श रामायण - मनोहर व साहिबदीन द्वारा।
2. गीत गोविन्द - साहबदीन द्वारा।
- राजस्थानी चित्रकला की मूल शैली मानी जाती है।
- इस शैली का प्रारम्भिक विकास महाराणा कुम्भा के काल में हुआ।
- इस शैली का स्वर्णकाल जगत सिंह प्रथम का काल रहा।
- इस शैली मे महाराणा जगत सिंह के समय उदयपुर के राजमहलों में "चितेरों री ओवरी" नामक कला विद्यालय खोला गया, जिसे "तस्वीरां रो कारखानों"भी कहा जाता है।
- विष्णु शर्मा द्वारा रचित पंचतन्त्र नामक ग्रन्थ में पशु-पक्षियों की कहानियों के माध्यम से मानव जीवन के सिद्वान्तों को उकेरा गया है।
- सन 1260-61 ई. में मेवाड़ के महाराणा तेजसिंह के काल में इस शैली का प्रारम्भिक चित्र श्रावक प्रतिकर्मण सूत्र चूर्णि आहड़ में चित्रित किया गया। जिसका चित्रकार कमलचंद था।
-सन् 1423 ई. में महाराणा मोकल के समय सुपासनह चरियम नामक चित्र चित्रित हुआ जिसका चित्रकार हिरानंद था।
- पंचतन्त्र का फारसी अनुवाद "कलिला दमना" है, जो एक रूपात्मक कहानी है। इसमें राजा(शेर) तथा उसके दो मंत्रियों(गीदड़) कलिला व दमना का वर्णन मिलता है।
- उदयपुर शैली में "कलिला और दमना" नाम से चित्र चित्रित किए गए थे।
प्रमुख चित्रित विषय - मेवाड़ चित्रकला शैली में धार्मिक विषयों का चित्रण किया गया।
- इस शैली में रामायण, महाभारत, रसिक प्रिया, गीत गोविन्द इत्यादि ग्रन्थों पर चित्र बनाए गए। मेवाड़ चित्रकला शैली पर गुर्जर तथा जैन शैली का प्रभाव देखने को मिलता है।
नाथ द्वारा शैली
प्रमुख चित्रित विषय - गवालों का चित्रण, यमुना स्नान,श्री कृष्ण की बाल लीलाऐं, अन्नकूट महोत्सव आदि।प्रमुख चित्रकार - घासीराम, चतुर्भुज, खेतदान, नारायण, उदयराम, खूबीराम आदि। कमला व इलायची नाथद्वारा शैली की महिला चित्रकार हैं।
- नाथ द्वारा मेवाड़ रियासत के अन्तर्गत आता था, जो वर्तमान में राजसमंद जिले में स्थित है।
- यहां स्थित श्री नाथ जी मंदिर का निर्माण मेवाड़ के महाराजा राजसिंह द्वारा 1671-72 में करवाया था।
- यह मंदिर पिछवाई(मंदिर में मुर्ति के पिछे का पर्दा) कला के लिए प्रसिद्ध है, जो वास्तव में नाथद्वारा शैली का रूप है।
- इस चित्रकला शैली का विकास का श्रेय मथुरा के कलाकारों को दिया जाता है।
* महाराजा राजसिंह का काल इस शैली का स्वर्ण काल कहलाता है।
- नाथद्वारा शैली में भित्ती चित्रण में आला-गीला फ्रेस्को शैली का प्रयोग किया गया है।
देवगढ़ शैली
- चित्रित विषय - शिकार के दृश्य, अन्तःपुर, राजसी ठाठ-बाठ।- प्रमुख चित्रकार - बैजनाथ, बगला, कंवला, चीखा/चोखा आदि।
- इस शैली का प्रारम्भिक विकास महाराजा द्वाारिकादास चुडावत के समय हुआ था।
- इस शैली को प्रसिद्धी दिलाने का श्रेय डाॅ. श्रीधर अंधारे को है।
शाहपुरा शैली
- प्रमुख चित्रकार : - श्री लाल जोशी, दुर्गादास जोशी, पार्वती जोशी (पहली महिला फड़ चित्रकार) आदि है |- प्रमुख चित्र - हाथी व घोड़ों का संघर्ष (चित्रकास्ताजू)
- यह शैली भीलवाडा जिले के शाहपुरा कस्बे में विकसित हुई।
- शाहपुरा की प्रसिद्ध कला : फड़ चित्रांकन में इस चित्रण शैली का प्रयोग किया है।
- फड़ चित्रांकन में यहां का जोशी परिवार लगा हुआ है।
चावण्ड शैली
- प्रमुख चित्रकार - नसीरदीन(नसीरूद्दीन) इस शैली का चित्रकार हैं* नसीरदीन न "रागमाला" नामक चित्र बनाया।
- इस शैली का प्रारम्भिक विकास महाराणा प्रताप के काल में हुआ।
- इस शैली का स्वर्णकाल -अमरसिंह प्रथम का काल माना जाता है।
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