सम्राट अशोक महान (Emperor Ashok the great)
( 268- 232 B .C.)
303 ईसा पूर्व में चन्द्रगुप्त मौर्य के मरने के बाद, उनके पुत्र बिन्दुसार ने अफगानिस्तान से बंगाल तक अपना राज्य बढ़ाया. फिर वो भी 274 ईसा पूर्व में बीमारी के कारण मर गए. अपनी म्रत्यु से पहले उन्होंने अपने बड़े बेटे सुशीमा को राजकुमार घोषित कर दिया था. पिता के मरते वक़्त सुशीमा भारत-अफगानिस्तान बॉर्डर पर था. जब वह पटना आया. वहां पर अशोक था. ग्रीक योद्धाओं की मदद से उसका कब्ज़ा था गद्दी पर. ऐसा प्रतीत होता है कि सुशीमा को गेट पर ही मार दिया गया. एक संभावना ये भी है कि उसको आवां में जिन्दा भून दिया गया ! इसके बाद मगध मे शुरू हुआ कत्लों का सिलसिला. जो 4 साल तक चला. बुद्धिस्ट किताबों के अनुसार उसने अपने 99 भाइयों को मार दिया. केवल तिस्स को छोड़ दिया. कई अधिकारियों को भी मारा गया. अशोक ने 500 अधिकारियों को अपने हाथ से मारा था ! 270 ईसा पूर्व में अशोक राजा बन गया. उस समय उसको चंडाशोक जाता था !
जीवन परिचय
विश्व के इतिहास में केवल 3 राजाओं को ही उनके नाम के साथ ‘महान’ कहकर सम्भोदित किया जाता है एक अलेक्जेंडर, दुसरे अकबर और हमारे अपने महान सम्राट अशोक |
चक्रवर्ती अशोक सम्राट बिन्दुसार तथा रानी धर्मा का पुत्र था। लंका की परम्परा में बिंदुसार की सोलह पटरानियों और १०१ पुत्रों का उल्लेख है। पुत्रों में केवल तीन प्रमुख हैं, वे हैं - सुसीम,अशोक और तिष्य। तिष्य अशोक का सहोदर भाई और सबसे छोटा था। एक दिन धर्मा को स्वप्न आया कि उसका बेटा एक बहुत बड़ा सम्राट बनेगा। उसके बाद उसे राजा बिन्दुसार ने अपनी रानी बना लिया। चूँकि धर्मा क्षत्रिय कुल से नहीं थी, अतः उसको कोई विशेष स्थान राजकुल में प्राप्त नहीं था। अशोक के बारे में कहा जाता है कि वो बचपन से सैन्य गतिविधियों में प्रवीण था। अशोक काल में उकेरा गया प्रतीतात्मक चिह्न, जिसे हम अशोक चिहन के नाम से भी जानते हैं, आज भारत का राष्ट्रीय चिह्न है। बोद्ध धर्म के इतिहास मे गोतमबुद्ध के पश्चात् सम्राट अशोक का ही स्थान आता है।
सम्राट अशोक मगथ के सम्राट थे जिसकी राजधानी पाटलीपुत्र थी अशोक महान ने जहां-जहां भी अपना साम्राज्य स्थापित किया, वहां-वहां अशोक स्तंभ बनवाए। अपने धर्मलेखों के स्तंभ आदि पर अंकन के लिए उन्होंने ब्राह्मी और खरोष्ठी दो लिपियों का उपयोग किया था। कहते हैं कि उन्होंने तीन वर्ष के अंतर्गत 84,000 स्तूपों का निर्माण कराया था।
दिव्यदान के अनुसार अशोक की एक पत्नी का नाम 'तिष्यरक्षिता' मिलता है। उसके लेख में केवल उसकी पत्नी 'करूणावकि' है। दिव्यादान में अशोक के दो भाइयों सुसीम तथा विगताशोक का नाम का उल्लेख मिलता है |
भाब्रु लघु शिलालेख के अनुसार अशोक त्रिरत्न- बुद्ध, धम्म और संघ में विश्वास करता है, लघु शिलालेख से यह भी पता चलता है कि राज्याभिषेक के 10वें वर्ष में अशोक ने बोध गया की यात्रा की, 12वें वर्ष वह निगालि सागर पहुचा और कोनगमन बुद्ध के स्तूप के आकार को दुगना करवाया । महावंश तथा दीपवंश के अनुसार उसने तृतीय बौद्ध संगीति (सभा) का आयोजन करवाया और मोग्गलिपुत्त तिस्स की सहायता से संघ में अनुशासन और एकता लाने का सफल प्रयास किया।
कल्हण की 'राजतरंगिणी' के अनुसार अशोक के इष्टदेव शिव थे, लेकिन अशोक युद्ध के बाद अब शांति और मोक्ष चाहते थे और उस काल में बौद्ध धर्म अपने चरम पर था। सभी बौद्ध ग्रंथ अशोक को बौद्ध धर्म का अनुयायी बताते हैं। अशोक के बौद्ध होने के सबल प्रमाण उसके अभिलेख हैं। राज्याभिषेक से संबद्ध लघु शिलालेख में अशोक ने अपने को 'बुद्धशाक्य' कहा है। कलिंग युद्ध में हुए नरसंहार तथा विजित देश की जनता के कष्ट ने अशोक की अंतरात्मा को झकझोर दिया। मौर्य सम्राट के शब्दों में, 'इस लड़ाई के कारण 1,50,000 आदमी विस्थापित हो गए, 1,00,000 व्यक्ति मारे गए और इससे कई गुना नष्ट हो गए...'। युद्ध की विनाशलीला ने सम्राट को शोकाकुल बना दिया और वह प्रायश्चित करने के प्रयत्न में बौद्ध विचारधारा की ओर आकर्षित हुआ।
अशोक की मृत्यु
अशोक की मृत्यु 40 साल के शासन के बाद 232 B . C . में हुई | यह माना गया है कि इसकी मृत्यु के बाद इसका साम्राज्य पश्चिमी तथा पूर्वी हिस्से में विभाजित हो गया | पूर्वी हिस्से पर अशोक के पोते दसरथ ने शासन किया जबकि पश्चिमी हिस्से को संप्रति ने संभाला | उसके साम्राज्य का विस्तार 265 B.C. में काफी बड़ा था
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