मौलाना अबुल कलाम आजाद की जीवनी / Biography Of Maulana Abul Kalam Azad(1888 - 1958) - JANGIR ACADEMY | Online Study Portal

Tuesday, February 22, 2022

मौलाना अबुल कलाम आजाद की जीवनी / Biography Of Maulana Abul Kalam Azad(1888 - 1958)

 मौलाना अबुल कलाम आजाद का जीवन परिचय / Maulana Abul Kalam Azad Biography

Biography Of Maulana Abul Kalam Azad


पूरा नाम:          अबुल कलाम गुलाम मुहियुद्दीन
जन्म:         11 नवम्बर 1888
जन्म स्थान:     मक्का, सऊदी अरब
पिता :               मुहम्मद खैरुद्दीन
पत्नी:               जुलेखा बेगम
मृत्यु :               22 फ़रवरी 1958 नई दिल्ली
राजनैतिक पार्टी: भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस
नागरिकता:      भारतीय
अवार्ड:             भारत रत्न

मौलाना अबुल कलाम आज़ाद या अबुल कलाम गुलाम मुहियुद्दीन एक प्रसिद्ध भारतीय मुस्लिम विद्वान थे| वे कवि, लेखक, पत्रकार और भारतीय स्वतंत्रता सेनानी रहे थे| वे महात्मा गांधी के सिद्धांतो का समर्थन करते थे| उन्होंने हिंदू-मुस्लिम एकता के लिए खिलाफत आंदोलन में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका रही थी| आजादी के बाद वे भारत के उत्तर प्रदेश राज्य के रामपुर जिले से 1952 में सांसद चुने गए और वे भारत के पहले शिक्षा मंत्री बने|


मौलाना अबुल कलाम आज़ाद का जन्म:- 

आजाद का जन्म 11 नवम्बर 1888 को मक्का, सऊदी अरब में हुआ था| इनके पिता मोहम्मद खैरुद्दीन एक बंगाली मौलाना थे, जो बहुत बड़े विद्वान थे| जबकि इनकी माता अरब की थी, जो शेख मोहम्मद ज़हर वात्री की बेटी थी| मौलाना आजाद जब 2 वर्ष के थे, तब 1890 में उनका परिवार वापस भारत आया और कलकत्ता में बस गया| मौलाना आजाद जब 13 साल की उम्र के थे तब उनकी शादी जुलेखा बेगम से हुई| 


शिक्षा:- 

मौलाना अबुल कलाम आज़ाद की आरंभिक शिक्षा इस्लामी तौर तरीकों अर्थात घर पर या मस्ज़िद में उन्हें उनके पिता तथा बाद में अन्य विद्वानों ने पढ़ाया| इस्लामी शिक्षा के अलावा उन्हें दर्शनशास्त्र, इतिहास तथा गणित की शिक्षा प्राप्त की| आज़ाद ने उर्दू, फ़ारसी, हिन्दी, अरबी तथा अंग्रेजी़ भाषाओं में महारथ हासिल की| 


सोलह साल मे उन्हें वो सभी शिक्षा प्राप्त कि जो आमतौर पर 25 साल में मिला करती थी| वे सलाफी अथवा देवबन्दी विचारधारा के करीब थे और उन्होंने क़ुरान के अन्य भावरूपों पर लेख भी लिखे थे| आज़ाद ने अंग्रेज़ी समर्पित स्वाध्याय से सीखी और पाश्चात्य दर्शन को बहुत पढ़ा| उन्हें मुस्लिम पारम्परिक शिक्षा को रास नहीं आई और वे आधुनिक शिक्षावादी सर सैय्यद अहमद खाँ के विचारों के समर्थक थे|


आज़ादी के आन्दोलन में योगदान:- 

मौलाना अबुल कलाम आजाद ने अंग्रेजी हुकूमत का विरोध करते हुए अंग्रेजी सरकार को आम आदमी के शोषण के लिए जिम्मेवार ठहराया था| उन्होंने अपने समय के मुस्लिम नेताओं की भी आलोचना की जो उनके अनुसार देश के हित के समक्ष साम्प्रदायिक हित को तरज़ीह दे रहे थे| अन्य मुस्लिम नेताओं से अलग उन्होने 1905 में बंगाल के विभाजन का विरोध किया और ऑल इंडिया मुस्लिम लीग के अलगाववादी विचारधारा को खारिज़ किया| 


ब्रिटिश शासन के दौरान उन्हें कई बार जेल भी जाना पड़ा था| उन्होंने महात्मा गांधी के असहयोग आंदोलन में शामिल होकर अंग्रेजी हुकूमत का विरोध किया था| उन्होंने अपनी एक साप्ताहिक पत्रिका ‘अल-बलाग’ में हिन्दू-मुस्लिम एकता पर आधारित भारतीय राष्ट्रवाद और क्रांतिकारी विचारों का प्रचार-प्रसार किया| मौलाना आजाद हिन्दू-मुस्लिम एकता के पक्षधर और भारत विभाजन के धुर विरोधी थे|


पत्र-पत्रिकाओं का संपादन:-

कोलकाता में ‘लिसान-उल-सिद’ नाम की पत्रिका शुरू की थी| तेरह से अठारह वर्ष की उम्र के बीच उन्होंने बहुत सी पत्र-पत्रिकाओं का संपादन किया| मौलाना आजाद ने कई पुस्तकों की रचना और अनुवाद भी किया, जिसमें ‘इंडिया विन्स फ्रीडम’ और ‘गुबार-ए-खातिर’ प्रमुख हैं|


उन्होंने 1912 में अल हिलाल नामक एक साप्ताहिक पत्रकारिता निकालना शुरू किया| अल हिलाल के माध्यम से उन्होंने सांप्रदायिक सौहार्द और हिंदू मुस्लिम एकता को बढ़ावा देना शुरू किया और साथ ही ब्रिटिश शासन पर प्रहार किया| ब्रिटिश शासन ने आखिरकार सरकार ने इस पत्रिका को प्रतिबंधित कर दिया|


आज़ादी के बाद:-

स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद 1952 के संसदीय चुनावों में वे उत्तर प्रदेश की रामपुर संसदीय सीट से तथा 1957 के संसदीय चुनावों में हरियाणा की गुड़गांव संसदीय सीट से कांग्रेस उम्मीदवार के रूप में सांसद चुने गए थे| वे भारत के पहले शिक्षा मंत्री बने थे| उन्होंने ग्यारह वर्षों तक राष्ट्र की शिक्षा नीति का मार्गदर्शन किया| मौलाना आज़ाद को ही 'भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान' अर्थात 'आई.आई.टी.' और 'विश्वविद्यालय अनुदान आयोग' की स्थापना का श्रेय दिया जाता है| 


उन्होंने शिक्षा और संस्कृति को विकसित करने के लिए निम्न उत्कृष्ट संस्थानों की स्थापना की- 

  • संगीत नाटक अकादमी (1953)
  • साहित्य अकादमी (1954)
  • ललितकला अकादमी (1954)

केंद्रीय सलाहकार शिक्षा बोर्ड के अध्यक्ष होने पर सरकार से केंद्र और राज्यों दोनों के अतिरिक्त विश्वविद्यालयों में सार्वभौमिक प्राथमिक शिक्षा, 14 वर्ष तक की आयु के सभी बच्चों के लिए निःशुल्क और अनिवार्य शिक्षा, कन्याओं की शिक्षा, व्यावसायिक प्रशिक्षण, कृषि शिक्षा और तकनीकी शिक्षा जैसे सुधारों की वकालत की थी| उन के इन योगदानों को देखते हुए वर्ष 1992 में मरणोपरान्त भारत रत्न से सम्मानित किया गया|


मृत्यु:- 

22 फरवरी, 1958 को हार्ट अटैक से उनका निधन हो गया था| उनके उत्कृष्ट कार्यों के सम्मान में उनके जन्म दिवस, 11 नवम्बर को राष्ट्रीय शिक्षा दिवस घोषित किया गया। इसके अलावा देश भर के कई शिक्षा संस्थानों और संगठनों का नामकरण उनके नाम पर किया गया है। 1992 में उन्हें मरणोपरांत भारत रत्न से सम्मानित किया गया|


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