कल्हण(Kalhan)
- कल्हण एक शिक्षित कश्मीरी ब्राह्मण कवि थे जिसके राजपरिवारों में अच्छे सम्बन्ध थे।
- कश्मीर निवासी कल्हण, जिनका वास्तविक नाम कल्याण था।
- मुख्य लेख :- राजतरंगिणी
- कल्हण ने 'राजतरंगिणी' नामक महान् महाकाव्य की रचना की थी। जिसकी रचना 1148 से 1150 ई. के बीच हुई |
- 'राजतरंगिणी' का शाब्दिक अर्थ है - राजाओं की नदी, जिसका भावार्थ है - 'राजाओं का इतिहास या समय-प्रवाह'।
- अपने ग्रंथ के आरंभ में कल्हण ने लिखा है- 'वही श्रेष्ठ कवि प्रशंसा का अधिकारी है जिसके शब्द एक न्यायाधीश के पादक्य की भांति अतीत का चित्रण करने में घृणा अथवा प्रेम की भावना से मुक्त होते हैं।'
- राजतरंगिणी के प्रथम तरंग में बताया गया है कि सबसे पहले कश्मीर में पांडवों के सबसे छोटे भाई सहदेव ने राज्य की स्थापना की थी और उस समय कश्मीर में केवल वैदिक धर्म ही प्रचलित था। फिर सन 273 ईसा पूर्व कश्मीर में बौद्ध धर्म का आगमन माना जाता है।
- राजतरंगिणी में आठ तरंग (अध्याय) और संस्कृत में कुल 7826 श्लोक हैं।
- इस पुस्तक के प्रथम तीन अध्याय कश्मीर की पीढ़ी-दर-पीढ़ी से आ रही मौखिक परंपराओं का चित्रण है। अगले तीन अध्याय भी इतिवृत्तात्मक ही हैं। केवल अंतिम दो अध्याय कल्हण की व्यक्तिगत जानकारी एवं ग्रंथावलोकन पर आधारित हैं।
Click Here to Read Current Affairs
No comments:
Post a Comment