राजस्थान की प्रथाए व रीति-रिवाज (Rajasthan's customs and traditions)
इस पोस्ट में राजस्थान की प्रमुख प्रथाएं व रिति -रिवाजो का विस्तृत वर्णन किया गया है | राजस्थान की प्रथाएं व रिति -रिवाजो ( Rajasthan's customs and traditions)के बारे में राजस्थान की लगभग हर एग्जाम में प्रश्न पूछे जाते है जैसे कि राजस्थान पुलिस, पटवार,रीट,एसआई आदि | आगामी समय में राजस्थान लेवल की सभी एग्जाम के लिए ये टॉपिक काफी महत्वपूर्ण है ......
इस पोस्ट में राजस्थान की प्रमुख प्रथाएं व रिति -रिवाजो का विस्तृत वर्णन किया गया है | राजस्थान की प्रथाएं व रिति -रिवाजो ( Rajasthan's customs and traditions)के बारे में राजस्थान की लगभग हर ए
ग्जाम में प्रश्न पूछे जाते है जैसे कि राजस्थान पुलिस, पटवार,रीट,एसआई आदि |
आगामी समय में राजस्थान लेवल की सभी एग्जाम के लिए ये टॉपिक काफी महत्वपूर्ण है ......
राजस्थान में प्रचलित प्रथाएं :
1.कन्या वध प्रथा(Female slaughter system):-
- यह प्रथा राजपूतों में सर्वाधिक प्रचलित थी जिसके अन्तर्गत लड़की के जन्म लेते ही उसे अफीम देकर अथवा गला दबाकर मार दिया जाता था।
- इस प्रथा पर सर्वप्रथम रोक हाडौती के पोलिटिकल एजेंट विल क्विंसन के प्रयासों से लार्ड विलियम बैंटिक के समय 1833 ई. में कोटा में तथा 1834 ई. में बूंदी राज्य में लगाई गई थी ।
2. दास प्रथा(Slavery):-
- इस प्रथा के अंतर्गत युद्ध में हारे हुए व्यक्तियों को बंदी बनाकर अपने यहां दास के रूप में रखा जाता था, साथ ही दासों का क्रय-विक्रय भी किया जाता था।
- राजपूतों में लड़की की शादी के अवसर पर गोला/गोली को दास-दासी के रूप में साथ भेजा जाता था।
- इस प्रथा पर सर्वप्रथम रोक 1832 में विलियम बैंटिक ने दास प्रथा पर रोक लगाई। राजस्थान में भी 1832 ई. में सर्वप्रथम कोटा व बूंदी राज्यों ने दास प्रथा पर रोक लगाई।
- 1961 में भारत सरकार द्वारा दहेज विरोध अधिनियम भी पारित कर लागू कर दिया गया लेकिन इस समस्या का अभी तक कोई निराकरण नही हो पाया है।
3. मानव व्यापार प्रथा(Human trade practice):-
- कोटा राज्य के अन्तर्गत मानव क्रय-विक्रय पर राजकीय शुल्क वसुला जाता था, जिसे "चैगान" कहा जाता था।
- इस प्रथा पर सर्वप्रथम रोक 1847 ई. में जयपुर रियासत में लगाई गई है।
4. विधवा विवाह प्रथा(Widow marriage practice):-
- ईश्वर चंद विद्या सागर के प्रयासों से 1856 ई. में लार्ड डलहौजी द्वारा विधवा पुनर्विवाह अधिनियम पारीत किया गया।
5. दहेज प्रथा(dowry system):-
- दहेज प्रथा निरोधक कानून 1961 ई. में पारीत हुआ।
6. बेगार प्रथा(Forced labor):-
- जागीरदारों द्वारा किसी व्यक्ति से काम करवाने के बाद कोई मजदूरी न देने की प्रथा।
- इस प्रथा पर सन् 1961 ई. में रोक लगाई गई।
7. बंधुआ मजदूर प्रथा/सागडी प्रथा/ हाली प्रथा(Bonded labor system):-
- सेठ, साहुकार अथवा पूंजीपति वर्ग के द्वारा उधार दी गई धनराशि के बदले कर्जदार व्यक्ति या उसके परिवार के किसी सदस्य को अपने यहां नौकर के रूप में रखा जाता था।
रीति -रिवाज(customs and traditions):
1. गर्भाधान
2. पुंसवन :- पुत्र प्राप्ति के समय का रिवाज |
3. सिमन्तोउन्नयन :- माता व गर्भरथ शिशु की अविकारी शक्तियों से रक्षा करने के लिए।
4. जातकर्म
5. नामकरण
6. निष्कर्मण :- शिशु को जन्म के बाद पहली बार घर से बाहर ले जाने के लिए।
7. अन्नप्रसान्न :- बच्चे को पहली बार अन्न खिलाने पर
8. जडुला/ चुडाकर्म :- 2 या 3 वर्ष बाद प्रथम बार बच्चे के केस उतारने पर
9. कर्णभेदन
10. विद्यारम्भ
11. उपनयन संस्कार :- गुरू के पास भेजा जाने पर।
12. वेदारम्भ :- वेदों का अध्ययन शुरू करने पर |
13. गौदान :- ब्रहा्रचार्य आश्रम में प्रवेश |
14. समावर्तन :- शिक्षा समाप्ति पर |
15. विवाह :- गृहस्थ आश्रम में प्रवेश |
16. अन्तिम संस्कार :- अत्येष्टि
विवाह के संस्कार(Rites of marriage) :
1. सगाई
2. टीका
3. लग्नपत्रिका
4. गणेश पूजन/ हलदायत की पूजा
- विवाह के तीन दिन, पांच दिन, सात दिन, नौ दिन, पूर्व लग्न पत्रिका पहुंचाने के बाद वर पक्ष एवं वधू पक्ष ही अपने- अपने घरों में गणेश पूजन कर वर और वधू घी पिलाते है। इसे बाण बैठाना कहां जाता है।
- घर की चार स्त्रियां (अचारियां) (जिसके माता-पिता जीवित हो वर व वधू को पीठी चढ़ाती है। बाद में एक चचांचली स्त्री जिसके माता-पिता एवं सास-ससुर जीवित हो) पीठी चढ़ाती है। बाद में स्त्रियां लगधण लेती है।
5. बिन्दोंरी/ बन्दोली
6. सामेला/ मधुपर्क
7. ढुकाव
8. तौरण मारना
9. पहरावणी/ रंगबरी (दहेज)
10. बरी पड़ला (वधू के लिए वर पक्ष द्वारा परिधान भेजना)
11. मुकलावा/ गैना
12. बढ़ार
13. कांकण डोरडा/ कांकण बंधन :- बन्दोली के दिन वर और वधू के दाहिने हाथ और पांव में कांकण डोरा बांधा जाता है।
14. मांडा झाकणा
15. कोथला (छुछक)
16. जान चढ़ना/ निकासी
17. सास द्वारा दही देना
19. पाणिग्रहण/ हथलेवा जोड़ना
20. जेवनवार :- पहला जेतनवार पाणिग्रहण से पूर्व होता है, जिसे "कंवारी जान का जीमण" कहां जाता है। दूसरे दिन का भोज "परणी जान का जीमण" कहलाता है। शाम का भोजन "बडी जान का जमीण" कहलाता है। चैथा भोज मुकलानी कहलाता है।
21. गृहप्रवेश/ नांगल :- वर की बहन या बुआ (सवासणियां) कुछ दक्षिणा लेकर उन्हें घर में प्रवेश होने देती है। इसे "बारणा राकना" कहते है।
- वधू के साथ उसके पीहर से उसका छोटा भाई या कोई निकट संबंधी आता है। वह ओलन्दा या ओलन्दी कहलाती है।
22. राति जगा
23. रोड़ी पूजन
24. बत्तीसी नूतना/भात नूतना
25. मायरा/ भात भरना
मृत्यु से संबंधित संस्कार
1. बैकुण्ठी :- अर्थी
2. बखेर :- खील, पतासा, रूई, मूंगफली, रू. पैसे व अनाज आदि |
3. आधेठा :- अर्थी का दिशा परिवर्तन करना।
4. अत्येष्टि
5. लौपा/ लांपा :- आग जो मृतक को जलाती है।
6. मुखाग्नि देना
7. कपाल क्रिया
8. सांतरवाडा :- अन्त्येष्टि के पश्चात् लोग नहा-धोकर मृतक व्यक्ति के यहां सांत्वना देने जाते है। यह रस्म 12 दिन तक चलती है।
9. फूल चूनना :- अन्त्येष्टि के तीन दिन बाद।
10. मोसर/ ओसर/ नुक्ता :- बारहवें दिन मृत्यु भोज की प्रथा है।
11. पगड़ी
प्रमुख शब्दावली
1. डाग :- यह एक सीमा शुल्क था।
2. जागीर भूमि :- जागीरदार के नियंत्रण में भूमि।
3. जकात :- सीमा शुल्क (बीकानेर क्षेत्र मे अधिक)
4. तलवार बंधाई :- उत्तराधिकारी घोषित होने पर की जाने वाली रस्म है।
5. खालसा भूमि :- सीधे राजा के नियंत्रण में भूमि।
6. प्रिंवीपर्स :- शासकों को दिया जाने वाला गुजारा भत्ता प्रिवीपर्स कहलाता था।
7. लाटा :- फसल कटाई के पश्चात् तोल कर लिया जाने वाला राजकीय शुल्क /कर, लाटा कहलाता था।
8. कुंडा :- खड़ी फसल की अनुमानतः उपज के आधार पर लिया जाने वाला राजकीय शुल्क/कर कुंडा कहलाता था।
9. हरावल :- सेना की अग्रिम पंक्ति हरावल कहलाती थी।
10. खिचड़ी लाग :- युद्ध के समय सैनिकों के भोजन के लिए शासको द्वारा स्थानीयय जनता से वसूला गया कर खिचड़ी लाग कहलाता था।
11. कीणा :- गावों में सब्जी अथवा अन्य सामान खरीदने के लिए दिया जाने वाला अनाज कीणा कहलाता था।
12. ताजीम :- सामंत के राजदरबार में प्रवेश करने पर राजा के द्वारा खडे़ होकर उसका सम्मान करना।
13. करब :- सामन्तों को प्राप्त विशेष सम्मान जिसके अंतर्ग्रत राजा जागीरदार के कन्धों पर हाथ रख कर अपनी छाती तक ले जाता था। जिसका अभिप्राय होता था कि आपका स्थान मेरे ह्रदय मे है।
14. बिगोड़ी :- यह भूमि कर है जिसके अन्तर्गत नकद रकम वसूली जाती थी।
15. सिगोटी :- पशुओं के विक्रय पर लगने वाला कर सिगोटी कहलाता था।
16. जाजम :- भूमि विक्रय पर लगने वाला कर जाजम कहलाता था।
17. मिसल :- राज दरबार में सभी व्यक्तियों का पंक्तिबद्ध बैठना, मिसल कहलाता था।
18. कामठा लाग :- दुर्ग के निर्माण के समय जनता से लिया गया कर, कामठा कहलाता था।
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