राजस्थान की जनजातियां(Tribes of rajasthan)
इस पोस्ट में राजस्थान की प्रमुख जनजातियों का विस्तृत वर्णन किया गया है | राजस्थान की जनजातियां ( Tribes of Rajasthan)के बारे में राजस्थान की लगभग हर ए
ग्जाम में प्रश्न पूछे जाते है जैसे कि राजस्थान पुलिस, पटवार,रीट,एसआई आदि | आगामी समय में राजस्थान लेवल की सभी एग्जाम के लिए ये टॉपिक काफी महत्वपूर्ण है ......
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1. मीणा जनजाति (Meena Tribe)
- निवास स्थान :- जयपुर के आस-पास का क्षेत्र/पूर्वी क्षेत्र में प्रमुख रूप से निवास करते है |
- बाहुल्य क्षेत्र - जयपुर है।
- "मीणा" का शाब्दिक अर्थ मछली है। "मीणा" मीन धातु से बना है।
- मीणा जनजाति के गुरू आचार्य मुनि मगन सागर माने जाते है।
- मीणाओं का कुल देवता भूरिया बाबा/गोतमेश्वर को माना जाता है।
- मीणा जाति के लोग जीणमाता (रेवासा, सीकर) को अपनी कुल देवी मानते है।
- मीणा पुराण :- आचार्य मुनि मगन सागर द्वारा रचित मीणा जनजाति का प्रमुख ग्रन्थ है।
- मीणा, जनजातियों में सर्वाधिक जनसंख्या वाली जनजाति है।
- जनजातियों में सबसे सम्पन्न तथा शिक्षित मीणा जनजाति है।
- जयपुर में कछवाहा वंश का शासन प्रारम्भ होने से पूर्व आमेर में मीणाओं का शासन था।
- मीणा जाति के गांव ढाणी कहलाते है।
- गांव के मुखिया को पटेल कहां जाता है।
- भूरिया बाबा का मेला अरणोद (प्रतापगढ़) में वैषाख पूर्णिमा को भरता है।
- जीणमाता का मेला रेवासा (सीकर) में नवरात्रों के दौरान भरता है।
* मीणा वर्ग :-
- चोकीदार मीणा:- राजकीय खजाने की सुरक्षा करने वाले।
- जमीदार मीणा:- खेती व पशुपालन का कार्य करने वाले।
- चर्मकार मीणाः- चमडे़ से संबंधित व्यवसाय करने वाले।
- पडिहार मीणा:- भैंसे का मांस खाने वाले (टोंक व बूंदी क्षेत्र में रहते है।)
- रावत मीणाः- स्वर्ण राजपूतों से संबंध रखने वाले मीणा |
- सुरतेवाला मीणाः- अन्य जातियों से वैवाहिक संबंध रखने वाले मीणा ।
- चैरासी :- मीणा जाति की सबसे बड़ी पंचायत चैरासी पंचायत होती है।
- बुझ देवता:- मीणा जाति के देवी-देवताओं को बुझ देवता कहते है।
- नाता (नतारा) प्रथा:- इस प्रथा में विवाहित स्त्री अपने पति, बच्चो को छोड़कर दूसरे पुरूष से विवाह कर लेती है।
- छेडा फाड़ना :- तलाक की प्रथा है, जिसके अन्तर्गत पुरूष नई साड़ी के पल्लू में रूपया बांधकर उसे चैड़ाई की तरफ से फाड़कर पत्नी को पहना देता हैं। ऐसी स्त्री को समाज द्वारा परित्याकता माना जाता है।
- झगडा राशि:- जब कोई पुरूष किसी दूसरे पुरूष की स्त्री को भगाकर ले जाता है तो झगडा राशि के रूप में उसे जुर्माना चुकाना पड़ता हैं जिसका (झगडा राशि का) निर्धारण पंचायत द्वारा किया जाता है।
2. भील जनजाति (Bhil tribe)
- भीलों का मुख्य निवास स्थान भौमत क्षेत्र (उदयपुर) में है।
- भील शब्द की उत्पति "बील" (द्रविड़ भाषा का शब्द) से हुई है जिसका अर्थ "कमान" होता है।
- इतिहासकार कर्नल टाॅड ने भीलों को "वनपुत्र" कहा था।
- इतिहासकार टाॅलमी ने भीलों को फिलाइट(तीरदाज) कहा था।
- जनसंख्या की दृष्टि से मीणा जनजाति के बाद दूसरे नम्बर पर आते है।
- राजस्थान की सबसे प्राचीन जनजाति भील है।
- भीलों के घरों को "कू" कहा जाता है। भीलों के घरों को टापरा भी कहा जाता है।
- भीलों की झोपडियों के समुह को "फला " कहते है। भीलों के बडे़ गांव पाल कहलाते है।
- गांव का मुखिया गमेती/पालती कहलाते है।
- भीलों के कुल देवता टोटम देव है।
- भीलों की कुल देवी आमजा माता/केलड़ा माता (केलवाडा- उदयपुर) है।
- फाइरे-फाइरे :-भील जाति का रणघोष है।
- भीलों का गौत्र अटक कहलाता है।
- भील बाहुल्य क्षेत्र भौमट कहलाता है।
- संख्या की दृष्टि से सर्वाधिक भील बांसवाडा जिले में निवास करते हैं
- भीलों में प्रचलित मृत्यु भोज की प्रथा काट्टा कहलाती हैं।
- केसरिया नाथ जी/आदिनाथ जी /ऋषभदेव जी/काला जी के चढ़ी हुई केसर का पानी पीकर कभी झूठ नहीं बोलते।
* वस्त्र
- सिंदूरी:- लाल रंग की साड़ी सिंदूरी कहलाती है।
- कछावूः- लाल व काले रंग का घाघरा
- ठेपाडा/ढेपाडा :- भील पुरूषों की तंग धोती।
- खोयतू :- भील पुरूषों की लंगोटी।
- फालूः- भील पुरूषों की साधारण धोती।
- पोत्याः- भील पुरूषों का सफेद साफा
- पिरियाः- भील जाति की दुल्हन की पीले रंग की साड़ी।
* मेले
1. बेणेश्वर मेला (डूंगरपुर) :-माघ पूर्णिमा को भरता है।
2. घोटिया अम्बा का मेला (बांसवाडा):- चैत्र अमावस्या को भरता है।
- यह मेला "भीलों का कुम्भ"कहलाता है।
भीलों के लोकगीत
1.सुवंटिया :- भील स्त्री द्वारा गया जाता है |
2.हमसीढ़ो :- भील स्त्री व पुरूष द्वारा युगल रूप में
भीलों के विवाह
1.हरण विवाह :- लड़की को भगाकर किया जाने वाला विवाह।
2.परीक्षा विवाह :- इस विवाह में पुरूष के साहस का प्रदर्शन होता है।
3.क्रय विवाह(दापा करना) :- वर द्वारा वधू का मूल्य चुकाकर किया जाने वाला विवाह।
4.सेवा विवाह :- शादी से पूर्व लड़का अपने भावी सास-ससुर की सेवा करता है।
5.हठ विवाह :- लड़के तथा लड़की द्वारा भाग कर किया जाने वाला विवाह |
प्रथाएं
1.हाथी वेडो :- भीलों में प्रचलित विवाह की प्रथा, जिसके अन्तर्गत बांस, पीपल या सागवान वृक्ष के समक्ष फेरे लिये जाते है। इसमें वर को हरण तथा वधू को लाडी कहते है।
2.भंगोरिया उत्सव :- भीलों में प्रचलित उत्सव जिसके दौरान भील अपने जीवनसाथी का चुनाव करते है।
खेती
1.झुनिंग कृषि :- पहाडों पर वनों को काटकर या जलाकर भूमि साफ की जाने वाली कृषि जिसे चिमाता भी कहा जाता है।
2.वालर/दजिया :- मैदानी भागों को साफ कर की जाने वाली कृषि।
3. गरासिया जनजाति(Garasia Tribe)
- यह जनजाति मुख्यतः सिरोही जिले की आबुरोड़ व पिण्डवाड़ा तहसीलों में निवास करती है।
- गारासियों के घर को "घेर" कहां जाता है।
- गरासियों के गांव "फालिया" कहलाते है।
- गांव का मुखिया "सहलोत" कहलाता है।
- इस जनजाति के लोग एक से अधिक पत्नियां सम्पन्नता का प्रतीक मानते है।
- इस जनजाति मोर को अपना आदर्श पक्षी मानती है।
- गरासिया जाति के लोग मृतक व्यक्ति की अस्थियों का विसर्जन नक्की झील (माउंट आबु) में करते है।
- गौर का मेला/अन्जारी का मेला गरासियों का प्रमुख मेला है जो सिरोही में वैषाख पूर्णिमा को आयोजित होता है।
- मनखांरो मेलो :-चैपानी क्षेत्र (गुजरात)
- सोहरी :- अनाज संग्रहित करने की कोठियां सोहरी कहलाती है।
- कांधिया :- गरासिया जनजाति में प्रचलित मृत्युभोज की प्रथा।
- हरीभावरीः- गरासिया जनजाति द्वारा सामुहिक रूप से की जाने वाली कृषि।
- हेलरूः- गरासिया जनजाति के विकास के लिए कार्य करने वाली सहकारी संस्था को हेलरू कहा जाता है।
- हुरे :- गरासिया जाति के लोग मृतक व्यक्ति की स्मृति जो मिट्टी का रूमारक बनाते है, उसे हुरें कहा जाता है।
* विवाह
- 1. मोर बांधिया विवाह :- सामान्य रूप से हिन्दू रीति-रिवाज के अनुसार हेाने वाले विवाह।
- 2. पहरावणा विवाह :- ऐसा विवाह जिसमें फेरे नहीं लिए जाते है।
- 3. तणना विवाह :- लड़की को भगाकर किया जाने वाला विवाह
* नृत्य :- वालर, लूर, कूद, जवारा, मांदल, मोरिया आदि |
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