राजस्थान के लोक गीत (Folklore of Rajasthan)
इस पोस्ट में राजस्थान की प्रमुख लोक गीतो का विस्तृत वर्णन किया गया है | लोक गीतों के बारे में राजस्थान की लगभग हर एग्जाम में प्रश्न पूछे जाते है जैसे कि राजस्थान पुलिस, पटवार,रीट,एसआई आदि |
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लोक गीत
जनसमुदाय द्वारा गाए जाने वाले परम्परागत गीतो को ही लोकगीत कहां जाता है। राजस्थान में बहुत सी जातियां या पेशेवर लोग राजस्थानी लोक गीतों को पीढ़ी दर पीढ़ी से गाते आ रहे है। इसी प्रकार राजस्थानी लोकगीतों का त्यौहारो की दृष्टि से भी बहुत महत्व है।राजस्थानी लोकगीत :-
- यह गीत उत्तरी मेवाड़ में भील जाति की स्त्रियां पति – वियोग में गाती है।
2. सेंजा गीत :-
- यह एक विवाह गीत है, जो अच्छे वर की कामना हेतु महिलाओं द्वारा गाया जाता है।
3. पीपली गीत :-
- यह गीत मारवाड़ बीकानेर तथा शेखावटी क्षेत्र में वर्षा ऋतु के समय स्त्रियों द्वारा गाया जाने वाला गीत है।
- यह गीत एक विरहणी के प्रेमोदगारो को अभिव्यक्त करता है। जिसमे प्रेयसी अपने पति को परदेस से बुलाती है।
4. पपैयो गीत :-
- यह गीत पपीहा पक्षी को सम्बोधित करते हुए गाया जाता है।
- जिसमें प्रेमिका अपने प्रेमी को उपवन में आकर मिलने की प्रार्थना करती है।
- यह गीत दाम्पत्य प्रेम का आदर्श परिचायक है।
5. कुरजा गीत :-
- यह गीत विरहणी द्वारा अपने प्रियतम को सन्देश भिजवाने हेतु कुरजां पक्षी को माध्यम बनाकर गाया जाता है।
6. जकडि़या गीत :-
- पीरों की प्रशंसा में गाए जाने वाले गीत को जकडि़या गीत कहा जाता है।
7.झोरावा गीत :-
- यह लोक गीत जैसलमेर में पति के परदेस जाने पर उसके वियोग में गाये जाने वाला गीत है |
8.जलो और जलाल :-
- यह गीत विवाह के समय वधु के घर से स्त्रियां जब बारात का डेरा देखने जाती है, तब गाया जाता है – “म्हें तो थारा डेरा निरखण आई ओ, म्हारी जोड़ी रा जलाल।“
9. कांगसियों :-
- यह गीत लोकप्रिय श्रृंगारिक गीत है। कांगसियो कंघे को कहै जाता है।
- इस पर प्रचलित लोक गीत कांगसियो कहलाते है – “म्हारै छैल भँवर रो कांगसियो पनिहारियां ले गई रे”
10. हमसीढो :-
- यह गीत भील स्त्री तथा पुरूष दोनों द्वारा सम्मिलित रूप से मांगलिक अवसरों पर गाया जाता है।
11. कागा गीत :-
- इस गीत में विरहणी नायिका कौए को सम्बोधित करके अपने प्रियतम के आने का शगुन मनाती है और कौए को प्रलोभन देकर उड़ने को कहती है। – “ उड़-उड़ रे म्हारा काला रे कागला, जद म्हारा पिवजी घर आवै”
12. हिचकी गीत :-
- यह गीत मेवात क्षेत्र अथवा अलवर क्षेत्र का लोकप्रिय है। – “म्हारा पियाजी बुलाई म्हानै आई हिचकी”
13.हरजस :-
-यह गीत राजस्थानी महिलाओं द्वारा गाए जाने वाला भक्ति लोकगीत है | जिसमे राम और कृष्ण दोनों की लीलाओं का वर्णन होता है।
14. दुप्पटा गीत :-
- यह गीत विवाह के समय दुल्हे की सालियों द्वारा गाया जाता है।
15. कामण :-
-यह गीत वर को जादू-टोने से बचाने के लिए ग्रामीण क्षेत्रों में स्त्रियों द्वारा गाया जाता है।
16. पावणा :-
- यह गीत विवाह के पश्चात् दामाद के ससुराल जाने पर भोजन के समय अथवा भोजन के उपरान्त स्त्रियों द्वारा गाया जाता है।
17. सिठणें :-
- यह गाली गीत, जो विवाह के समय स्त्रियां हंसी-मजाक के उद्देश्य से गाती है।
18. मोरिया गीत :-
- इस लोक गीत में ऐसी बालिका की व्यथा है, जिसका संबंध तो तय हो चुका है लेकिन विवाह में देरी हो रही है।
19.पंछीडा गीत :-
- यह गीत हाडौती तथा ढूढाड़ क्षेत्र का लोकप्रिय गीत है, जो त्यौहारों तथा मेलों के समय गाया जाता है।
20. बिच्छुड़ो :-
-यह गीत हाडौती क्षेत्र का लोकप्रिय गीत जिसमें एक स्त्री जिसे बिच्छु ने काट लिया है और वह मरने वाली है, वह पति को दूसरा विवाह करने का संदेश देती है। – “मैं तो मरी होती राज, खा गयो बैरी बिछुड़ो”
21. जीरो :-
- यह गीत जालौर क्षेत्र का लोकप्रिय गीत है।
- इस गीत में स्त्री अपने पति से जीरा न बोने की विनती करती है। – “यो जीरो जीव रो बेरी रे, मत बाओ म्हारा परण्या जीरो।“
22. रसिया गीत :-
- यह गीत ब्रज, भरतपुर व धौलपुर क्षेत्रों में गाया जाता है।
23. धुमर :-
- यह गीत स्त्रियों द्वारा गणगौर अथवा तीज त्यौहारों पर घुमर नृत्य के साथ गाया जाता है, जिसके माध्यम से बालिका श्रृंगारिक साधनों की मांग करती है।
24. औल्यूंगीत :-
- यह गीत बेटी की विदाई के समय गाया जाता है। – “कँवर बाई री ओल्यु आवे ओ राज।“
25. लांगुरिया :-
- यह गीत करौली की कैला देवी की अराधना में गाये जाने वाला भक्तिगीत लांगुरिया कहलाते है।
26. गोरबंध:-
- गोरबंध, ऊंट के गले का आभूषण है।
- यह गीत मारवाड़ तथा शेखावटी क्षेत्र में इस आभूषण पर गीत गाया जाता है। – “म्हारौ गोरबंध नखरालो”
27. चिरमी :-
- इस गीत चिरमी के पौधे को सम्बोधित कर बाल ग्राम वधू द्वारा अपने भाई व पिता की प्रतिक्षा के समय की मनोदशा का वर्णन है।
28. पणिहारी :-
- इस लोकगीत में राजस्थानी स्त्री का पतिव्रता धर्म पर अटल रहना बताया गया है।
29. इडुणी:-
- यह गीत पानी भरने जाते समय स्त्रियों द्वारा गाया जाता है।
30. केसरिया बालम :-
- यह एक प्रकार का विरह युक्त रजवाड़ी गीत है जिसे स्त्री विदेश गए हुए अपने पति की याद में गाती है।
31. धुडला गीत :-
- यह गीत मारवाड़ क्षेत्र का लोकप्रिय गीत है, जो स्त्रियों द्वारा घुड़ला पर्व पर गाया जाता है। – “घुड़ले घुमेला जी घुमेला, घुड़ले रे बांध्यो सूत।“
32. लावणी गीत :-
- लावणी से अभिप्राय बुलावे से है।
- नायक द्वारा नायिका को बुलाने के सन्दर्भ में लावणी गाई जाती है। प्रमुख लवाणियां – मोरध्वज, भरथरी आदि
33. मूमल :-
- यह गीत जैसलमेर क्षेत्र का लोकप्रिय गीत, जिसमें लोद्रवा की राजकुमारी मूमल का सौन्दर्य वर्णन किया गया है।
- यह एक श्रृंगारिक गीत है। – “म्हारी बरसाले री मूमल, हालेनी ऐ आलीजे रे देख।“
34. ढोला-मारू :-
- यह सिरोही क्षेत्र का लोकप्रिय गीत है,जो ढोला-मारू के प्रेम-प्रसंग पर आधारित है, तथा इसे ढाढ़ी गाते है।
35. हिण्डोल्या गीत :-
- यह गीत श्रावण मास में राजस्थानी स्त्रियां झुला-झुलते समय गाती है।
36. जच्चा गीत :-
- बालक के जन्म के अवसर पर गाया जाने वाला गीत है इसे होलरगीत भी कहते है।.
37. घोड़ी गीत :-
- यह गीत लड़के में विवाह पर निकासी के समय गाया जाता है। – “म्हारी चंद्रमुखी सी, इंद्रलोक सूं आई ओ राज।“
38. बना-बनी गीत :-
- यह गीत विवाह के अवसर पर गाया जाता है।
39. गणगौर गीत :-
- गणगौर पर स्त्रियों द्वारा गाया जाने वाला प्रसिद्व लोकगीत है |
40. तेजा गीत :-
- यह किसानों का गीत है। खेती शुरू करते समय तेजाजी की भक्ति में गाया जाता है।
41. रातीजगा :-
- विवाह, पुत्र जन्मोत्सव, मुंडन आदि शुभ अवसरों पर रात भर जाग कर गाये जाने वाले किसी देवता के गीत रातीजगा कहलाता है।
42. बधावा :-
- यह शुभ कार्य के सम्पन्न होने पर गाया जाने वाला लोक गीत है |
लोक गायन शैलियां
1. माण्ड गायन शैली- 10 वीं 11 वीं शताब्दी में जैसलमेर क्षेत्र माण्ड क्षेत्र कहलाता था। इसलिए यहां विकसित गायन शैली माण्ड गायन शैली कहलाई।
- यह एक श्रृंगार प्रधान गायन शैली है।
- प्रमुख गायिकाएं
1. अल्ला-जिल्हा बाई (बीकानेर) - केसरिया बालम आवो नही पधारो म्हारे देश।
2. मांगी बाई (उदयपुर) राजस्थान का राज्य गीत प्रथम बार गाया।
3. गवरी देवी (बीकानेर) जोधपुर निवासी सादी मांड गायिका।
4. गवरी देवी (पाली) भैरवी युक्त मांड गायकी में प्रसिद्ध
5. जमिला बानो (जोधपुर)
- बन्नों बेगम (जयपुर) प्रसिद्ध नृतकी "गोहरजान" की पुत्री है।
2. मांगणियार गायन शैली
- राजस्थान के पश्चिमी क्षेत्र विशेषकर जैसलमेर तथा बाड़मेर की प्रमुख जाति मांगणियार है, जिसका मुख्य पैसा गायन व वादन है।
- मांगणियार जाति मूलतः सिन्ध प्रान्त की है तथा यह मुस्लिम जाति है।
- प्रमुख वाद्य यंत्र कमायचा तथा खड़ताल होता है।
- कमायचा तत् वाद्य यंत्र है।
- इस गायन शैली में 6 रंग व 36 रागिनियों का प्रयोग होता है।
- प्रमुख गायक
1. सदीक खां मांगणियार (प्रसिद्ध खड़ताल वादक)
2. साकर खां मांगणियार (प्रसिद्ध कम्रायण वादक)
3. लंगा गायन शैली
- लंगा जाति का निवास स्थान जैसलमेर-बाडमेर जिलों में है।
- बडवणा गांव (बाड़मेर) " लंगों का गांव" कहलाता है।
- यह जाति मुख्यतः राजपूतों के यहां वंशावलियों का बखान करती है।
- प्रमुख वाद्य यत्र कमायचा तथा सारंगी है।
- प्रसिद्ध गायकार
1. अलाउद्दीन खां लंगा
2. करीम खां लंगा
4. तालबंधी गायन शैली
- औरंगजेब के समय विस्थापित किए गए कलाकारों के द्वारा राज्य के सवाईमाधोपुर जिले में विकसित शैली है।
- इस गायन शैली के अन्तर्गत प्राचीन कवियों की पदावलियों को हारमोनियम तथा तबला वाद्य यंत्रों के साथ सगत के रूप में गाया जाता है।
- वर्तमान में यह पूर्वी क्षेत्र में लोकप्रिय है।
5. हवेली संगीत गायन शैली
- प्रधान केन्द्र नाथद्वारा (राजसमंद) है।
- औरंगजेब के समय बंद कमरों में विकसित गायन शैली।
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