Mauryan administration, economy, social life (मौर्यकालीन प्रशासन, अर्थव्यवस्था, सामाजिक जीवन) For SSC,BANK, UPSC, Etc.... - JANGIR ACADEMY | Online Study Portal

Tuesday, September 15, 2020

Mauryan administration, economy, social life (मौर्यकालीन प्रशासन, अर्थव्यवस्था, सामाजिक जीवन) For SSC,BANK, UPSC, Etc....

 मौर्यकालीन प्रशासन, अर्थव्यवस्था, सामाजिक जीवन

(Mauryan administration, economy, social life) :-

मौर्यकालीन प्रशासन, अर्थव्यवस्था, सामाजिक जीवन

नमस्कार दोस्तों इंडिया जीके की इस सीरीज में हमें मौर्यकालीन प्रशासन, अर्थव्यवस्था, सामाजिक जीवन को जानेंगे, इस टॉपिक से जुड़े प्रश्न सभी एग्जाम में पूछे जाते है, जैसे : - UPSC exam, bank, SSC Etc.....

 मौर्यकालीन प्रशासन

 - अर्थशास्त्र में मंत्रिणः शब्द का उल्लेख मिलता है। मौर्यकाल में प्रशासन चलाने के लिए तीर्थ व अध्यक्ष नियुक्त किये गए थे। इन अधिकारियों की नियुक्ति उपधा परीक्षण के बाद की जाती थी।
* उपधा परीक्षण का अर्थ होता था – नैतिकता की जाँच करना।
- मंत्रिणः में पुरोहित, प्रधानमंत्री, समाहर्त्ता, सन्निधाता व युवराज की शामिल किया गया था।

अध्यक्ष :- संख्या – 26

 - मेगस्थनीज ने इंडिका में अध्यक्ष के लिए मजिस्ट्रेट शब्द का प्रयोग किया है।
- मानाध्यक्ष :– दूरी व समय से सम्बंधित साधनों को नियंत्रित करने वाला अधिकारी
- गणिकाध्यक्ष :– गणिकाओं से सम्बंधित अधिकारी
- पोतवाध्य्क्ष :– माप-तोल से सम्बंधित अधिकारी
- सुनाध्यक्ष :– बूचड़खाने से सम्बंधित अधिकारी
- मुद्राध्यक्ष :– पासपोर्ट अधिकारी
- अकराध्यक्ष :– खान विभाग से सम्बंधित अधिकारी
- सिताध्यक्ष :– राजकीय कृषि विभाग का अधिकारी
- विविताध्यक्ष :– चारागाह का अधिकारी
- पण्याध्य्क्ष :– व्यापार-वाणिज्य से सम्बंधित अधिकारी
- अक्षपटलाध्यक्ष :– महालेखाकार
- नवाध्यक्ष :– जहाजरानी विभाग का अध्यक्ष

तीर्थ(विभाग) :- इनकी संख्या 18 होती है | 

- पुरोहित (धर्माधिकारी)
- प्रधानमंत्री :– मौर्यकाल में पुरोहित व प्रधानमंत्री दोनों पदों पर एक ही व्यक्ति को नियुक्त किया जाता था।
* चन्द्रगुप्त के काल मे चाणक्य, बिन्दुसार के काल मे चाणक्य व खल्लाटक तथा अशोक के काल मे राधागुप इस पद पर था।

- प्रदेष्ठा :– फौजदारी न्यायालयों का न्यायाधीश को कहा जाता था |
- कर्मान्तिक :– उद्योग धंधों का प्रमुख अधिकारी होता है |
- व्यवहारिक :– दीवानी न्यायालयों का न्यायाधीश को कहा जाता था |
- सन्निधाता:– राजकीय कोषाध्यक्ष होता था |
- युवराज :– उत्तराधिकारी को कहा जाता था |
- समाहर्त्ता :– राजस्व विभाग का प्रधान अधिकारी होता था |

 प्रान्त –

- उत्तरापथ :– तक्षशिला
- दक्षिणापथ :– सुवर्णगिरि
- प्राची :– पाटलिपुत्र
- अवंति :– उज्जैयिनी
- कलिंग :– तोसली
- चन्द्रगुप्त मौर्य के समय 4 प्रांत थे (उत्तरापथ, दक्षिणापथ, प्राची, अवंति)
- अशोक के समय पांच प्रांत (उत्तरापथ, दक्षिणापथ, प्राची, अवंति, कलिंग) थे।

मौर्यकालीन प्रशासनिक इकाई :-

केंद्र :– राजा
प्रांत या चक्र :– कुमार (आर्यपुत्र)
मण्डल :– प्रदेष्ठा
आहार/विषय/जिला :– विषयपति
स्थानीय :– 800 गाँवों का समूह
द्रोणमुख :– 400 गाँवों का समूह
खर्वाटिक :– 200 गाँवों का समूह
संग्रहण :– 10 गाँवों का समूह
गांव :- प्रशासन की सबसे छोटी इकाई | 


 नगर प्रशासन :- 

- मेगस्थनीज के अनुसार मौर्यकालीन नगर प्रशासन 6 समितियों में विभक्त था, प्रत्येक समिति में 5 सदस्य होते थे।
(1) शिल्पकला समिति
(2) विदेश समिति
(3) जनसंख्या समिति
(4) उद्योग-व्यापार समिति
(5) वस्तु निरीक्षक समिति
(6) कर निरीक्षक समिति

 जिले के अधिकारी :-

- एग्रोनोमोई :- यह जिले का अधिकारी होता था। यह सड़क निर्माण से सम्बंधित कार्य करता था।
- एस्ट्रोनोमोई :- यह नगर का प्रमुख अधिकारी होता था।
- रूपदर्शक :- सिक्को की जांच करने वाला अधिकारी होता था |

अन्य अधिकारी –

- प्रादेशिक :- प्रदेश का प्रमुख अधिकारी को कहा जाता था |
- रज्जुक :- जनपद का प्रमुख अधिकारी को कहा जाता था |
- युक्त :- रज्जुक के अधीन अधिकारी को कहा जाता था |

 राजस्व प्रशासन :-

 राजस्व के प्रमुख स्रोत –

राष्ट्र :– जनपद से प्राप्त आय
दुर्ग:– नगरों से प्राप्त आय
सेतु :– फल-फूल व सब्जियों से प्राप्त आय
खनि :– खानों से प्राप्त आय
वन :– जंगल से प्राप्त आय
वणिक पथ :– स्थल व जल मार्ग से होने वाली आय
ब्रज :– पशुओं से प्राप्त आय


आय के अन्य स्रोत :-

सीता – राजकीय भूमि पर खेती से प्राप्त आय को सीता कहा गाय है |
भाग – किसानों से प्राप्त आय को भाग कहा गया है |
प्रणय – संकटकाल में प्रजा से लिया जाने वाला कर प्रणय कहा गाय है |
विष्टि – निःशुल्क श्रम या बेगार को विष्टि कहा गाय है |
बलि – यह एक प्रकार का धार्मिक कर था।
हिरण्य – यह कर अनाज के रूप में न लेकर नगद लिया जाता था।
रज्जू – भूमि की माप हेतु जो कर लिया जाता था उसे रज्जू कहा गया है।
वर्तनी – सीमा पार करने पर लिया जाने वाले कर को वर्तनी कहा गया है |

* अर्थशास्त्र में बीमा की जानकारी मिलती है बीमा के लिए “भय प्रतिकार व्यय” शब्द का प्रयोग किया गया।

 राज्य के द्वारा नियंत्रित उद्योग :-
                                                 हथियार उद्योग, जहाजरानी उद्योग, खान उद्योग, नमक उद्योग, शराब उद्योग

गुप्तचर विभाग :-

 - कौटिल्य ने गुप्तचरों के लिए गूढ़ पुरुष शब्द का प्रयोग किया है।
- गुप्तचर विभाग के लिए महामात्यपर्सप शब्द का प्रयोग किया है।

 गुप्तचरों के प्रकार :-

- संस्था :- एक स्थान पर रहकर गुप्तचर का कार्य करने वाले को संस्था कहा जाता था |
- संचार :- घूम – घूम कर गुप्तचर का कार्य करने वाले को संचार कहा जाता था  |
- मौर्यकाल में महिलाएँ भी गुप्तचर का कार्य किया करती थी।


मौर्यकालीन सिक्के :-

1. सोने के सिक्के – निष्क व सुवर्ण
2. ताम्बे के सिक्के – माषक व काकणी
3. चाँदी के सिक्के – पण, कार्षापण, धरण व शतमान

- मौर्यकालीन राजकीय मुद्रा पण थी, पण का प्रयोग वेतन देने में किया जाता था। 
- इस पर सूर्य, चन्द्र, मयूर, पीपल, बैल व सर्प की आकृति बनी होती थी। इन्हें पंचमार्क या आहत मुद्रा कहा जाता था।


 सैन्य प्रशासन :-

 - प्लिनी के अनुसार चन्द्रगुप्त मौर्य के पास 6 लाख की सेना थी।
 - जस्टिन ने चन्द्रगुप्त मौर्य की सेना को डाकुओं की सेना है।

 मेगस्थनीज के अनुसार सेना में 6 समितियां थी प्रत्येक समिति में 5 सदस्य थे।

(1) पैदल समिति
(2) रथ समिति
(3) अश्व समिति
(4) गज समिति
(5) नौ-सेना समिति
(6) रसद समिति

 अर्थव्यवस्था :-

 कृषि,  पशुपालन, व्यापार-वाणिज्य पर आधारित थी |
 वार्त्ता :– वृति (आजीविका) का साधन

फसल :- 3 प्रकार की –
ग्रेष्मीक – खरीफ की फसल
हैमन – रबी की फसल
केदार – जायद की फसल
सबसे उत्तम फसल – धान
सबसे निकृष्ट फसल – गन्ना

सामाजिक जीवन :-

- समाज मे वर्ण व्यवस्था मौजूद थी :– ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य व शुद्र चार वर्ण थे।
- कौटिल्य ने शुद्र को आर्य के समान माना और शूद्रों को सेना में भर्ती होने योग्य भी माना था।
- मौर्यकाल में कार्य के आधार पर भी सामाजिक विभाजन दिखाई पड़ता है जैसे –

* तन्तुवाय – जुलाहा
* रजक – धोबी
* प्लवक – रस्सी पर चलने वाला
* कुशिलव – तमाशा दिखाने वाला
* सौभिक – मदारी
* कुहक – जादूगर
- मेगस्थनीज के अनुसार मौर्यकालीन समाज सात जातियों में विभक्त था – दार्शनिक,  कारीगर, सैनिक, निरीक्षक, सभासद (शासक वर्ग), किसान, अहीर (ग्वाले),

- अनिष्कासिनी :- ऐसी महिलाएं जो घरों से बाहर नही निकलती थी।
- रूपाजीवा :- संगीत व नृत्य के माध्यम से अपना जीवन-यापन करने वाली महिलाएं।
- प्रवहण :- यह एक सामूहिक उत्सव था।

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