गुप्त काल (Gupta period)
नमस्कार दोस्तों इंडिया जीके की इस सीरीज में हम भारत में गुप्त कालीन इतिहास को जानेंगे इस पोस्ट में गुप्त काल का उदय, गुप्त काल के शासक, शासकों के उपाधि, गुप्त साम्राज्य का पतन, इसकी पूरी जानकारी दी गयी है।
(9) कुमारगुप्त द्वितीय -(477 ई)
- इनका उल्लेख सरनाथ के बुद्धप्रतिमा में मिलता है ।- सारनाथ के लेख में इनका नाम भूमि रक्षित कुमारगुप्त मिलता है ।
(10) बुद्धगुप्त: (477-495ई)
- इसके शासनकाल की तिथि गुप्त संवत-157 अर्थात 477 ई को सारनाथ अभिलेख में मिलती है ।- बुद्धगुप्त ने परंभट्टरक महाराजाधिराज की उपाधि धारण की।
- स्वर्ण मुद्राओं पर उसकी उपाधि श्रीविक्रम मिलती है ।
- बुद्धगुप्त बौद्ध अनुयायी था इसका विवरण चीनी यात्री व्हेनसांग द्वारा किया गया है ।
(11) कुमारगुप्त तृतीय -
- कुमारगुप्त तृतीय गुप्तकालीन अंतिम महान शासक था।- दामोदपुर के 5 वे ताम्रपत्र में इनका उल्लेख मिलता है।
- इसने परमदैवत परमभट्टाकार ,और महाधिराज की उपाधि धारण की थी।
(12) विष्णुगुप्त -
- कुमारगुप्त तृतीय के पुत्र थे।- शासनकाल 550 ई. को माना जाता है।
प्रशस्ति लेखन
- बाणभट्ट द्वारा रचित हर्षचरित और कादम्बरी हर्षवर्धन काल के इतिहास की जानकारी मिलती है | - रामपालचरित पाल शासक रामपाल के क्रियाकलापों का वर्णन करता है और तत्कालीन बंगाल की जानकारी देता है. चालुक्य राजा विक्रमादित्य पर विक्रमांकदेवचरित लिखा गया |शासन प्रणाली
केन्द्रीय शासक राजा
- केन्द्र में शासक सबसे बड़ा अधिकारी था |- राज्य के पास एक स्थायी सेना होती थी, सामंत समय-समय पर राज्य को सैनिक सहायता देते थे, राजा सेना, न्याय और कानून के लिए अन्तिम अधिकारी था |
- सभी सेवकों को नकद वेतन मिलता था |
- राजा मंत्रिमण्डल की राय मानने को बाध्य नहीं था |
- दण्ड विधान बहुत कठोर नहीं था |
- उन्होने गुप्तचर विभाग को भी समाप्त कर दिया था |
मन्त्रिमण्डल
- केन्द्र में एक मन्त्रिमण्डल था. मंत्रियों का पद प्राय: वंश परम्परागत होता था |- सभी महत्त्वपूर्ण विषयों में राजा मन्त्रियों से सलाह लेता था |
- सभी विभाग किसी न किसी मंत्री के पास होते थे. जिसके लिए मंत्री ही उत्तरदायी होता था.
प्रांतीय शासन
- गुप्त राजाओं ने शासन सुचारु रूप से चलाने के लिए उसे कई प्रांतों में बांट रखा था |- प्रान्तों को मुक्ति कहा जाता था |
- प्रांतीय शासकों की नियुक्ति स्वयं सम्राट करता था |
- प्रांतीय शासकों का सम्बन्ध ज्यादातर राजकुल से ही होता था |
- प्रांतीय शासन लगभग केन्द्रीय शासन के अनुरूप ही था. जितने विभाग केन्द्र में थे उतने ही प्रांतों में थे |
जिले का प्रबंध
- प्रांत (मुक्ति) जिलों (विषयों ) में बंटे गए थे |- विषयपति की नियुक्ति प्रान्तीय शासक करता था, उसे सलाह देने के लिए जिला समितियां होती थीं जिनमें न केवल सरकारी अधिकारी ही होते थे वरन नागरिक भी शामिल किए जाते थे |
नगरों का शासन
- गुप्तकाल से भी आज की तरह नगरों का प्रबन्ध नगरपालिका करती थी |- नगर का मुखिया नगरपति कहलाता था |
गाँव का शासन
- गुप्त काल में शासन की सबसे छोटी इकाई गांव थी |- ग्रामाध्यक्ष गांव का मुखिया था |
- गांव का प्रबन्ध एवं न्याय कार्य पंचायत करती थी |
सेना
- राज्य एक स्थायी सेना रखता था तथा जरूरत पड़ने पर अपने सामंतों से भी सैनिक सहायता लेता था |- सेना में घोड़े अधिक महत्त्वपूर्ण होते थे, यद्यपि रथों तथा हाथियों का भी प्रयोग होता था |
आय के साधन
- गुप्तकाल में भूमिकरों की संख्या ज्यादा हो गई थी |- फाहियान के अनुसार, राज्य की आमदनी का मुख्य साधन भूमिकर था जो उपज का 1/6 भाग होता था |
- इस भू-कर के अतिरिक्त किसानों को आती-जाती सेना को “राशन” तथा पशुओं को चारा भी देना पड़ता था. गांव में जो भी सरकारी अधिकारी रहता था उसे पशु अनाज आदि गांव के लोगों को ही देना पड़ता था. इस प्रकार की बेगार को विष्टि कहा जाता था |
- चुंगी भी आय का महत्वपूर्ण साधन था |
न्याय व्यवस्था
- मौर्य काल की अपेक्षा गुप्तकाल में न्याय व्यवस्था अधिक विकसित तथा उन्नत थी |- इस काल में अनेक कानून की पुस्तकों को संकलित किया गया. कानूनों को सरल बना दिया था |
कानून की मर्यादा बनाये रखना राज्य का काम था, राजा मुकदमे का फैसला पुरोहितों की मदद से करता था |
गुप्त साम्राज्य की आर्थिक दशा
कृषि
- चीनी यात्री फाहियान के अनुसार है कृषि बहुत उन्नत स्थिति में थी | अनेक प्रकार के अनाजों के अलावा फल तथा तिलहन आदि की खेती की जाती थी |- सरकार किसानों से भू-कर के रूप में उपज का 1/6 भाग लेती थी | परन्तु ब्राह्मणों तथा अधिकारियों को कर-मुक्त भूमि दी गई थी |
- गुप्तकालीन भारतीय उद्योग धन्धों की स्थिति बहुत समृद्ध थी | लौह इस्पात उद्योग के साथ-साथ समुद्री-पोत निर्माण का उद्योग भी उन्नत था |
- फाहियान लिखता है कि देश में सोने, चांदी आदि धातुओं की मूर्तियां बनाई जाती थीं | हाथी दांत से भी अनेक प्रकार की वस्तुएं तैयार की जाती थीं |
- विभिन्न प्रकार के शिल्पकारों के संघ बने हुए थे जिन्हें ‘गिल्ड या श्रेणी’ कहा जाता था. इस शिल्पकारों की संस्थाओं के पास काफी धन हुआ करता था जो वे जनता की भलाई के कार्यो पर व्यय किया करती थीं |
व्यापार तथा नगर
- फाहियान के अनुसार, मगध राज्य में अनेक नगर थे तथा वहां धनी व्यापारी रहते थे |- सभी मार्ग सुरक्षित थे. जनता का नैतिक स्तर ऊंचा था. इसलिए लूटमार कम होती थी. शान्ति एवं सुरक्षा को व्यवस्था ने व्यापार को खूब बढ़ाया. गंगा, ब्रह्मपुत्र आदि नदियों में बड़-बड़े नावों द्वारा माल लाया ले जाया जाता था |
- गुप्तकाल में विदेशी व्यापार का पतन होने लग गया था | सन् 550 ई० तक भारत का पूर्वी रोमन साम्राज्य के साथ थोड़ा बहुत रेशम का व्यापार होता था | सन् 550 ई० के आसपास पूर्वी रोमन साम्राज्य के लोगों ने चीनियों से रेशम पैदा करने की कला सीख ली | इससे भारत के निर्यात व्यापार पर कुप्रभाव पड़ा | छठी शताब्दी ई० के मध्य के पहले ही विदेशों में भारतीय रेशम के लिए मांग कमजोर पड़ गई थी |
- थोड़ा-बहुत व्यापार चीन, लंका, जावा सुमात्रा और तिब्बत आदि से भी होता था |
- भड़ोंच, सुपारा आदि बन्दगाहों से विदेशी व्यपार होता था |
- लेन-देन के लिए कई प्रकार के सिक्के चलते थे |
- मोती, बहुमूल्य पत्थर, कपड़े, मसाले, नील, दवाइयां आदि पदार्थ दूसरे देशों को भेजे जाते थे |
सामाजिक परिवर्तन
- उस काल के लोग सादा जीवन व्यतीत करने के साथ-साथ उच्च विचार रखते थे. उनका चरित्र एवं नैतिक स्तर बहुत उच्च था | फाह्यान लिखता है, “चाण्डालों को छोड़कर देश भर में कहीं भी लोग किसी जीवित प्राणी को नहीं मारते हैं और न शराब और न नशीले पदार्थों का प्रयोग करते हैं, न प्याज-लहसुन खाते हैं, अन्तर्जातीय विवाहों के प्रमाण भी मिलते हैं |”
- संयुक्त परिवार समाज का आधार था |
- इस काल में शूद्रों और औरतों की स्थिति सुधरी, उन्हें अब महाकाव्यों और पुराणों को सुनने की आज्ञा मिल गई |
वर्ण व्यवस्था
- गुप्तकाल में भी भारतीय समाज परम्परागत चार वर्णों के साथ-साथ अनेक जातियों तथा उपजातियों में विभक्त था |- इस काल में ब्राह्मण राजवंशों के प्रमाण मिलते हैं जैसे “वाकाटक तथा कुटुम्ब”|
- गुप्त राजा ब्राह्मण व्यवस्था के महान समर्थक बन गये |
- ब्राह्मणों ने अनगिनत भूमि अनुदानों को प्राप्त कर बहुत ज्यादा सम्पत्ति इकट्ठी कर ली थी, अब भी वर्ण भेद समाज में चल रहा था |
- तत्कालीन विद्वान वराहमिहिर ने वृहत्संहिता में चारों वर्णों के लिए विभिन्न बस्तियों की व्यवस्था का समर्थन किया है | उसके अनुसार ब्राह्मण के घर में पांच, क्षत्रिय के घर में चार, वैश्य के घर भें तीन तथा शुद्र के घर में दो कमरे होने चाहिए |
- न्याय-व्यवस्था तथा दण्ड-विधान में भी वर्ण भेद पूर्णत: बना हुआ था | न्याय संहिताओं में कहा गया है कि ब्राह्मण की परीक्षा तुला से, क्षत्रिय की भग्नि से, वैश्य की जल से ओर शूद्र की विष से की जानी चाहिए |
दास प्रथा
- इस काल में दास प्रथा प्रचलित थी लेकिन इस बात के कई प्रमाण मिलते हैं कि गुप्त काल में यह कुप्रथा कमजोर हो गई थी |स्त्रियों की स्थिति
- उनकी स्थिति पहले की अपेक्षा अधिक दयनीय हो गई |- इसी काल में कन्याओं का अल्पायु में विवाह तथा (कुछ कुलीन लोगों में) सती प्रथा जैसी बुराइयां पुनः प्रचलित होने लगी |
- केवल उच्च वर्ग की स्त्रियों को प्राथमिक शिक्षा दी जाती थी |
- इस काल में वेश्या वृत्ति का भी उल्लेख मिलता है |
- देवदासियों का भी एक वर्ग था जो मन्दिरों के साथ सम्बद्ध था | लेकिन स्त्रियों को सम्पत्ति सम्बन्धी अधिकार प्राप्त थे. उनका पत्नी तथा विशेष परिस्थितियों में पिता की सम्पत्ति पुत्रविहीन पुरुष की कन्याओं के रूप में पाने का अधिकार होता था |
सातवाहन वंश (Satavahana Dynasty) For SCC, Bank, UPSC Exams...
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