दक्षिण भारत के राजवंश (Dynasty of South India)
चालुक्य :-
चालुक्यों के इतिहास को तीन कालों में बांटा जाता है :(A) प्रारंभिक पश्चिम काल (छठी – 8वीं शताब्दी) बादामी (वातापी) के चालुक्य
(B) पश्चात् पश्चिम काल (7वीं – 12वीं शताब्दी) कल्याणी के चालुक्य
(C) पूर्वी चालुक्य काल (7वीं – 12वीं शताब्दी) वेंगी के चालुक्य
बादामी/वातापी के चालुक्य :-
मूलराज प्रथम :-
- इस वंश का संस्थापक मूलराज प्रथम था।- इसने सरस्वती घाटी में स्वतन्त्र राज्य की स्थापना की।
- ये शाकम्भरी के विग्रहराज से पराजित हुआ और कंथा दुर्ग में शरण ली।
भीमदेव प्रथम :-
- यह सबसे शक्तिशाली शासक था।- इसने कलचुरी नरेश कर्ण के साथ मिलकर परमार भोज की विरुद्ध एक संघ की स्थापना की। इस संघ ने धारा नगर को लूटा, लेकिन लूट के माल को लेकर ये संघ टूट गया। इसके बाद भीम ने परमार जयसिंह द्वितीय को साथ लेकर कर्ण को पराजित किया।
- इसने आबू पर्वत पर अपना अधिकार सुदृढ़ किया।
- इसी के सामंत विमल ने आबू पर्वत पर दिलवाड़ा के जैन मंदिर का निर्माण कराया। इसके निर्माता वास्तुपाल व तेजपाल थे। इस मंदिर के गर्भगृह में ऋषभदेव/आदिनाथ की मूर्ति है जिसकी आँखें हीरे की हैं।
- इसके शासनकाल में गजनबी ने 1025 ईo में सोमनाथ के प्रसिद्ध मंदिर को लूटा। भीमदेव भागकर कंथा के दुर्ग में छिप गया। बाद में इसने सोमनाथ मंदिर का पुनर्निर्माण कराया। सोमनाथ मंदिर जो पहले लकड़ी व ईंट से निर्मित था , भीम ने उसे पत्थर से निर्मित कराया।
जयसिंह सिद्धराज :-
- यह शैव मत का अनुयायी था और अपनी माँ के कहने पर सोमनाथ की यात्रा कर समाप्त कर दिया।- इसने आबू पर्वत पर अपने सात पूर्वजों की गजारोही मूर्तियाँ बनबायीं।
- इसने सिद्धपुर में रूद्र महाकाल मंदिर का निर्माण कराया।
- इसने खम्भात में मस्जिद बनाने के लिए एक लाख सिक्कों का दान किया।
- यह विभिन्न धर्मो व सम्प्रदायों के लोगों से चर्चाएं किया करता था।
- इसके दरबार में प्रसिद्ध जैन विद्वान् हेमचन्द्र रहते थे।
अजयपाल :-
- इसने जैन मंदिरों को ध्वस्त किया और साधुओं की हत्याएं करवा दीं।- इसके समय शैव और जैन मतानुयायियों के मध्य गृहयुद्ध प्रारम्भ हो गया।
कल्याणी के चालुक्य :-
- कल्याणी के चालुक्य वंश का उदय राष्ट्रकूटों के पतन के बाद हुआ।- इस वंश की स्वतंत्रता का जन्मदाता तैलप द्वितीय था।
- इनका पारिवारिक चिन्ह वराह था।
तैलप द्वितीय :-
- तैलप द्वितीय का परमार शासक मुंज से लम्बे समय तक संघर्ष चला।- मेरुतुंग की प्रबंध चिंतामणि से ज्ञात होता है कि इसने मुंज पर छः बार आक्रमण किया परन्तु हारता रहा।
सोमेश्वर प्रथम :-
- सोमेश्वर प्रथम 1043 ईo में अगला शासक बना।- इसने ही चालुक्यों की राजधानी मान्यखेत से कल्याणी स्थानांतरित की।
- इसने भोज परमार की राजधानी धारा पर आक्रमण कर उसे आत्मसमर्पण करने को मजबूर किया।
- राजराज चोल ने इसे बुरी तरह परास्त कर विजयेंद्र की उपाधि धारण की।
- चोलों से मिली लगातार हार के बाद इसने तुंगभद्रा नदी में डूबकर आत्महत्या कर ली।
सोमेश्वर तृतीय :-
- यह स्वयं एक विद्वान व्यक्ति था। इसने युद्ध से अधिक शांति की ओर ध्यान दिया।- इसने भूलोकमल्ल और त्रिभुवनमल्ल जैसी उपाधियाँ धारण की।
- इसने मानसोल्लास नामक शिल्पशास्त्र की रचना की।
सोमेश्वर चतुर्थ :-
- सोमेश्वर चतुर्थ कल्याणी के चालुक्य वंश का अंतिम शासक था। यह तैलप तृतीय का पुत्र था।मदुरई के पाण्ड्य (छठी से 14वीं शताब्दी) :-
- दक्षिण भारत में शासन करने वाले सबसे पुराने वंशों में से एक पाण्ड्य भी थे. इनका वर्णन कौटिल्य के अर्थशास्त्र और मेगस्थनीज के इंडिका में भी मिलता है.- इनका सबसे प्रसिद्द शासक नेंडूजेलियन था जिसने मदुरई को अपनी राजधानी बनाया.
- पाण्ड्य शासकों ने मदुरई में एक तमिल साहित्यिक अकादमी की स्थापना की जिसे संगम कहा जाता है.
- उन्होंने त्याग के वैदिक धर्म को अपनाया और ब्राम्हण पुजारियों का संरक्षण किया.
- उनकी शक्ति एक जनजाति ‘कालभ्र’ के आक्रमण से घटती चली गई.
- छठी सदी के अंत में एक बार पुनः पांड्यों का उदय हुआ. उनका प्रथम महत्वपूर्ण शासक दुन्दुंगन (590-620) था जिसने कालभ्रों को परस्त कर पांड्यों के गौरव की स्थापना की.
- अंतिम पांड्य राजा पराक्रमदेव था जो दक्षिण में विस्तार की प्रक्रिया में उसफ़ खान (मुह्हमद-बिन-तुगलक़ का वायसराय) द्वारा पराजित किया गया.
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