गोविंद रानाडे का जीवन परिचय / Biography of Govind Ranade (18 जनवरी 1842 - 16 जनवरी 1901) - JANGIR ACADEMY | Online Study Portal

Monday, January 17, 2022

गोविंद रानाडे का जीवन परिचय / Biography of Govind Ranade (18 जनवरी 1842 - 16 जनवरी 1901)

 Mahadev Govind Ranade Biography / महादेव गोविंद रानाडे की जीवनी

Mahadev Govind Ranade Biography / महादेव गोविंद रानाडे की जीवनी

गोविंद रानाडे 19 वी शताब्दी के अक महान समाज और धर्म सुधार थे| उन्होने देश में शिक्षा और उसके इतिहास के प्रति जागरूकता फैलाने के लिए हमेशा ही याद किया जाता है| महादेव गोविंद रानाडे को जस्टिस रानाडे के नाम से जाना जाता है| 


भारत के प्रसिद्ध राष्ट्रवादी, समाज सुधारक, विद्वान् और न्यायविद थे| उन्हें "महाराष्ट्र का सुकरात" कहा जाता है| प्रार्थना समाज, आर्य समाज और ब्रह्म समाज का इनके जीवन पर बहुत प्रभाव था| गोविंद रानाडे 'दक्कन एजुकेशनल सोसायटी' के संस्थापकों में से एक थे| इन्होंने 'भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस' की स्थापना का भी समर्थन किया था|


जन्म व जीवन परिचय: 

जस्टिस रानाडे का जन्म 18 जनवरी 1842 को महाराष्ट्र में नासिक के निफाड़ कस्बे के कट्टर चितपावन ब्राह्मण परिवार में हुआ| उनका बचपन कोल्हापुर में बीता था उनके पिता मंत्री थे| उनकी पहली पत्नी की मृत्यु के बाद उनके समाज सुधारवादी मित्र चाहते थे कि वे विधवा विवाह करें, लेकिन रानाडे ने परिवार की इच्छाओं का ख्याल रखते हुए एक बालिका रामाबाई रानाडे से विवाह किया और उन्हें शिक्षित किया| रामाबाई ने रानाडे की मृत्यु के बाद उनके कार्यों को आगे बढ़ाया| 


शिक्षा:  

रानाडे की प्रारम्भिक शिक्षा कोल्हापुर के मराठी स्कूल में हुई और 14 साल की उम्र में वे बम्बई के एल्फिस्टोन कॉलेज में पढ़ने चले गए| वे बॉम्बे यूनिवर्सिटी के पहले बैच के छात्र थे| 1862 में उन्होंने बीए और फिर चार साल बाद एलएलबी की डिग्री प्रथम श्रेणी में हासिल की थी| 


राजनीतिक गतिविधि:

महादेव गोविंद रानाडे ने 'भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस' की स्थापना का समर्थन किया था और 1885 ई. के उसके प्रथम मुंबई अधिवेशन में भाग लिया| उनका मानना था कि मनुष्य की सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक और धार्मिक प्रगति एक दूसरे पर आश्रित है| इसलिए ऐसा व्यापक सुधारवादी आंदोलन होना चाहिए, जो मनुष्य की चतुर्मुखी उन्नति में सहायक हो| वे स्वदेशी के समर्थक थे और देश में निर्मित वस्तुओं के उपयोग पर बल देते थे| देश की एकता उनके लिए सर्वोपरी थी। उन्होंने कहा था कि- "प्रत्येक भारतवासी को यह समझना चाहिए कि पहले मैं भारतीय हूँ और बाद में हिन्दू, ईसाई, पारसी, मुसलमान आदि कुछ और।"


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समाज सुधारक के रूप में: 

रानाडे ने हमेशा समाज सुधार के लिए प्रयास किया| जिसके लिए शिक्षा को महत्वपूर्ण माना| धार्मिक सुधार से लोकशिक्षा से लेकर वे भारतीय परिवारों के हर पहलू में एक प्रगतिवादी सुधार देखना चाहते थे| रूढ़िवादी परम्पराओं और मान्यताओं के वे पूरी तरह विरोधी थे| उन्होंने विवाह आडंबरों पर अनावश्यक खर्चों, बाल विवाह, विधवा मुंडन, सागर पार यात्रा पर जातिगतप्रतिबंध जैसी कई कुरीतियों का पुरजोर विरोध किया| 


रचनाएँ: 

महादेव गोविंद रानाडे एक प्रकांड विद्वान् थे| उन्होंने अनेक ग्रंथों की रचना की थी, जिनमें से प्रमुख हैं-

  • विधवा पुनर्विवाह
  • मालगुजारी क़ानून
  • राजा राममोहन राय की जीवनी
  • मराठों का उत्कर्ष
  • धार्मिक एवं सामाजिक सुधार





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