गुप्त काल (Gupta period)
नमस्कार दोस्तों इंडिया जीके की इस सीरीज में हम भारत में गुप्त कालीन इतिहास को जानेंगे इस पोस्ट में गुप्त काल का उदय, गुप्त काल के शासक, शासकों के उपाधि, गुप्त साम्राज्य का पतन, इसकी पूरी जानकारी दी गयी है।
चौथी शताब्दी में उत्तर भारत में एक नए राजवंश, गुप्तवंश का उदय हुआ | इस वंश ने लगभग 300 वर्ष तक शासन किया | इस वंश के संस्थापक श्रीगुप्त थे | गुप्त वंशावली में श्रीगुप्त, घटोत्कच, चन्द्रगुप्त प्रथम, समुद्रगुप्त, रामगुप्त, चन्द्रगुप्त द्वितीय, स्कन्दगुप्त जैसे शासक हुए | इस वंश में तीन महान शासक थे – चन्द्रगुप्त प्रथम, समुद्रगुप्त और चन्द्रगुप्त द्वितीय (विक्रमादित्य) |
गुप्त काल के शासक
(1) श्री गुप्त :- (240 -280 ई)
- पूना स्थित ताम्र पत्र में इसका उल्लेख आदिराज के रूप में मिलता है।- श्रीगुप्त ने महाराज की उपाधि धारण की थी।
- इत्सिंग के अनुशार श्रीगुप्त ने एक मंदिर बनाया जिसमे उसने 24 गाँव दान में दिए थे।
(2) घटोत्कच गुप्त - (280 से 319 ई)
- इसने महाराज उपाधि धारण की थी |- रीद्धपुर ताम्रपत्र अभिलख में इसे प्रथम शासक बताया गया है।
(3) चन्द्रगुप्त प्रथम -(319 ई. से 335 ई)
-इसने महाराजाधिराज उपाधि धारण की थी |- इनकी पत्नी का नाम राजकुमारी कुमार देवी था।
- इन्होने सबसे पहले रजत (चांदी) की मुद्राओं का प्रचलन प्रारम्भ किया।
- गुप्त संवत का प्रारम्भ 319 ई में चन्द्रगुप्त प्रथम द्वारा किया गया।
(4) समुद्र गुप्त - (335 ई. से 380 ई.)
- इन्होने पराक्रमांक उपाधि धारण की थी |- इन्हे भारत का नेपोलियन(व्ही ए स्मिथ द्वारा) कहा जाता है।
- समुद्र गुप्त द्वारा विजित क्षेत्र को 4 भागो में बांटा गया है।
- पहला :- गंगा -जमुना दोआब के शासक जिन्हे पराजित कर अपने साम्राज्य में मिला लिया था।
- दूसरा :- पूर्वी हिमालय के राज्य जैसे नेपाल ,असम ,बंगाल।
- तीसरा :- आटविक राज्य - जो विंध्य क्षेत्र में पड़ते थे।
- चतुर्थ :- पूर्वी दक्कन और दक्षिण भारत के क्षेत्र जिसके अंतर्गत 12 शासकों को पराजित किया था।
- श्रीलंका के राजा ने गया में बुद्ध मंदिर बनवाने के लिए अपना दूत इन्ही के शासन काल में भेजा था।
- समद्र गुप्त वीणा बजाते थे इनके सिक्के में अश्वमेध और व्यगरराज अंकित होता था।
- इन्हे सौ युद्धो के विजेता कहा गया है।
- समुद्र गुप्त अपने आप को लिच्छवि दौहित्र कहलाने में गर्व का अनुभव करता था ।
(5) चंद्रगुप्त द्वितीय (380-412ई)
- इन्होने विक्रमादित्य की उपाधि धारण की थी |- चंद्रगुप्त द्वितीय ने अपने पुत्री (प्रभावती)का विवाह वाकाटक शासक रुद्रसेन द्वित्तीय से कराया जो मध्यभारत का शासक था ।
- चन्द्रगुप्त द्वितीय ने सर्वप्रथम रजत मुद्राओं का प्रचलन कराया था.
- चन्द्रगुप्त द्वितीय का उज्जैन स्थित दरबार में कालिदास और अमरसिंघ जैसे विद्वान् थे।
* चन्द्रगुप्त द्वितीय के दरबारी रत्न
1. हरिषेण - कविता (कृतिरचना)
2. वराहमिहिर - वृहद्संहिता
3. वररुचि - व्याकरण संस्कृत
4. धन्वन्तरि - आयुर्वेद
5. क्षपणक - ज्योतिष शास्त्र
6. अमरसिंह - अमरकोश
7. कालिदास - अभिज्ञानशाकुंतलम
8. शंकु - शिल्पशास्त्र
9. वेताल भट्ट - मन्त्र शास्त्र
(6) कुमार गुप्त प्रथम ( 415 से 455 ई)
- कुमार गुप्त चन्द्रगुप्त द्वितीय के पुत्र थे।- इन्होने महेन्द्रादित्य ,श्रीमहेंद्र की उपाधि धारण की |
- इसने अश्वमेध यज्ञ करवाया और अश्वमेध नामक मुद्रा चलाया।
- कुमार गुप्त प्रथम के शासन काल में नालंदा विश्व विद्यालय की स्थापना किया गया। और विश्वविद्यालय मे समय देखने के लिए जल घडी का प्रयोग किया जाता है।
- कुमार गुप्त के समय के सर्वाधिक अभिलेख प्राप्त हुए है। जिसकी संख्या 18 है।
- गुप्त कालीन सबसे बड़ा स्वर्ण मुद्रा भंडार बयाना मुद्राभंडार जो राजस्थन से प्राप्त हुआ है। जिसकी संख्या 623 है
- गुप्त कालीन मयूर शैली की मुद्राये सबसे पहले मध्यप्रदेश से प्राप्त हुआ है।
- कुमार गुप्त के समय में पुष्यमित्र ने आक्रमण किया। इसका उल्लेख स्कंदगुप्त के आंतरिक अभिलेख में मिलता है। और स्कंदगुप्त ने पराजित किया था।
(7) स्कंदगुप्त (शक्रादित्य) {455 - 467 ई.}
- इन्होने शक्रादित्य की उपाधि धारण की थी |- स्कंदगुप्त कुमारगुप्त का पुत्र था।
- स्कंदगुप्त के शासन काल में हूणों का आक्रमण हुआ था। और गुप्त वंश के कुछ भाग में अधिकार जमा लिए।
- व्हेनसांग ने नालंदा संघाराम को बनवाने वाले शासकों में शंकरदित्य का उल्लेख किया है।
- जुनागढ अभिलेख में स्कंदगुप्त का वर्णन मिलता है। इस अभिलेख से ये भी पता चलता है की सौराष्ट्र प्रान्त में उसने पर्णदत्त को अपना राज्यपाल न्युक्त किया था।
- जूनागढ़ अभिलेख में गिरनार के प्रशासक चक्रपालित द्वारा सुदर्शन झील में बांध का पुननिर्माण कराया गया था।
- स्कन्दगुप्त के उत्तराधिकारी पुरुगुप्त थे ।
(8) पुरुगुप्त -(467 - 476 ई.)
- पुरुगुप्त स्कन्दगुप्त का सौतेला भाई था ।- भीतरी मुद्रालेखन में उसकी माँ का नाम महादेवी अनंत देवी तथा पत्नी का नाम चंद्रदेवी मिलता है ।
- इसके शासन काल से ही गुप्त वंश का अवनाति प्रारम्भ हुआ था ।
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