दक्षिण भारत के राजवंश (Dynasty of South India)
चोल (9वीं – 13वीं शताब्दी) :-
- चोल वंश दक्षिण भारत के सबसे प्रसिद्द वंशों में से एक है |- नवीं शताब्दी में कावेरी व पेन्नार नदियों के आस-पास विजयालय नामक व्यक्ति ने चोल वंश की स्थापना की ।
- विजयालय ने तंजौर पर अधिकार किया था ओर विजयालय के द्वारा नर केसरी की उपाधि ली गयी थी।
- इन्होने तंजौर को अपनी राजधानी बनाकर तमिलनाडु और कर्नाटक के कुछ हिस्सों पर शासन किया था।
- चोल काल मे राज्य के लिए मण्डलम शब्द का प्रयोग किया गया है।
- संगम काल मे चोल शासक करिकाल था।
आदित्य प्रथम (880-907) :-
- इसके काल मे चोल राज्य पल्लवों से पूर्ण रूप से स्वतंत्र हुआ था |
- आदित्य प्रथमने कोदण्डराय की उपाधि धारण की ।
परातंक प्रथम (907-953) :-
- इसके शाषनकाल मे मदुरै पर पाण्ड्य शासकों का अधिकार था।- परातंक प्रथम ने मदुरै पर अधिकार कर लिया और परातंक प्रथम के द्वारा मदुरेकोंड की उपाधि ली गयी।
राजराज प्रथम (985-1014) :-
- राजराज प्रथम ने राष्ट्रकूटों से अपना क्षेत्र वापस छीन लिया और चोल शासकों में सर्वाधिक शक्तिशाली बन गया |- उसने तंजावुर (तमिलनाडु) में वृहदेश्वर मन्दिर का निर्माण करवाया था।
- राजराज प्रथम के काल मे भूमि सर्वेक्षण का कार्य करवाया गया।
- इसके काल मे स्थानीय स्वशासन की शुरूआत हुई थी।
- राजराज प्रथम ने चीन में अपने राजदूत भेजे थे।
चोलकालीन ग्राम सभा :-
उर – साधारण लोगो की सभा को कहा जाता था |सभा/महासभा – वरिष्ठ ब्राम्हणों की सभा होती थी |
नगरम – व्यापारियों का संगठन को कहा जाता था |
प्रशासनिक इकाई :-
केंद्र > मण्डलम > वलनाडू > नाडु > कोट्टम > गांवआय का स्रोत :-
दक्षिण भारत मे कडमै एक प्रकार का भूमि कर था यह बागान कर भी था। जो सुपारी पर लिया जाता था।
पेरुन्दनम :- उच्च सरकारी अधिकारी होता था |
वैडेक्कार :- राजा के अंगरक्षक को कहा जाता था |
उडनकुट्टम :- राज्य के मंत्री को कहा जाता था |
मग्नमै :-
यह भी एक प्रकार का कर था जो स्वर्णकार, बढई व कुम्भकार से लिया जाता था।
राष्ट्रकूट :-
- राष्ट्रकूट दक्षिण भारत मे बादामी के चालुक्य शासकों के सामन्त हुआ करते थे।- आधुनिक लातूर (महाराष्ट्र) व उसके आसपास का क्षेत्र राष्ट्रकूट शासकों के अधिकार में था।
- राष्ट्रकूट शासक दंतीदुर्ग ने आठवीं शताब्दी में अपने साम्राज्य का विस्तार किया और मान्यखेत को अपनी राजधानी के रूप में स्थापित किया।
कृष्ण प्रथम :-
- कृष्ण प्रथम के काल में एलोरा में प्रसिद्ध कैलाश मंदिर का निर्माण हुआ जिसका आधार द्रविड़ शैली था।ध्रुव :-
- ध्रुव ने गुर्जर प्रतिहार शासक वत्सराज व बंगाल के शासक धर्मपाल को पराजित किया |- ध्रुव ने अपनी उत्तर भारत की विजय के उपलक्ष में राजकीय चिन्ह के रूप में गंगा व यमुना का प्रयोग किया था।
अमोघवर्ष :-
- इसका काल साहित्य के लिए जाना जाता है |- अमोघवर्ष ने कन्नड़ भाषा में कवि राजमार्ग नामक पुस्तक की रचना की थी।
* आगे चलकर कृष्ण तृतीय व इंद्र तृतीय राष्ट्रकूट शासक हुए इन्होंने गुर्जर प्रतिहार शासकों के साथ संघर्ष किया था।
प्रतिहार (8वीं से 10वीं शताब्दी) :-
- प्रतिहारों को गुर्जर-प्रतिहार भी कहा जाता था, ऐसा शायद इसलिए कहा जाता था क्योंकि ये मूलतः गुजरात या दक्षिण-पश्चिम राजस्थान से थे |- नागभट्ट प्रथम, ने सिंध से राजस्थान में घुसपैठ करने वाले अरबी आक्रमणकारियों से पश्चिम भारत की रक्षा की थी |
- नागभट्ट प्रथम, के बाद प्रतिहारों को लगातार पराजय का सामना करना पड़ा जिसमें इन्हें सर्वाधिक राष्ट्रकूट शासकों ने पराजित किया था |
मिहिरभोज
- प्रतिहार शक्ति, मिहिरभोज, जो भोज के नाम से प्रसिद्द था, कि सफलता के बाद अपना खोया गौरव पुनः पा सकी थी |- उसके प्रभुत्वशाली शासन ने अरबी यात्री सुलेमान को आकर्षित किया था |
महेन्द्रपाल
- मिहिरभोज का उत्तराधिकारी महेन्द्रपाल प्रथम था जिसकी प्रमुख उपलब्धि मगध और उत्तरी बंगाल पर अपना आधिपत्य था |- उसके दरबार का प्रसिद्द लेखक राजशेखर था जिसने अनेक साहित्यिक रचनाएँ लिखी –
1. कर्पूरमंजरी 2. बालरामायण
3. विद्वशाल भंजिका 4. भुवनकोश
5. हरविलास 6. काव्यमीमांसा
- महेन्द्रपाल की मृत्यु के साथ ही सिंहासन के लिए संघर्ष शुरू हो गया था |
- भोज द्वितीय ने गद्दी कब्ज़ा की, लेकिन जल्द ही सौतेले भाई महिपाल प्रथम ने खुद को सिंहासन वारिस घोषित कर दिया |
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