आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी (1864–1938)
जीवन परिचय:
महावीर प्रसाद द्विवेदी का जन्म उत्तर प्रदेश के (बैसवारा) रायबरेली जिले के दौलतपुर गाँव में 15 मई 1864 को हुआ था| इनके पिता का नाम पं॰ रामसहाय दुबे था| ये कान्यकुब्ज ब्राह्मण थे|धनाभाव के कारण इनकी शिक्षा का क्रम अधिक समय तक न चल सका था|
25 वर्ष की आयु में जी आई पी रेल विभाग अजमेर में 1 वर्ष का प्रवास मिला| नौकरी छोड़कर पिता के पास मुंबई प्रस्थान एवं टेलीग्राफ का काम सीखकर इंडियन मिडलैंड रेलवे में तार बाबू के रूप में नियुक्ति मिली| अपने उच्चाधिकारी से न पटने और स्वाभिमानी स्वभाव के कारण 1904 में झाँसी में रेल विभाग की 200 रुपये मासिक वेतन की नौकरी से त्यागपत्र दे दिया|
साहित्य:
द्विवेदी जी की साहित्य की धारणा अत्यंत व्यापक थी| वे केवल कविता, कहानी, उपन्यास, नाटक और आलोचना को ही साहित्य नहीं मानते थे| उनके अनुसार किसी भाषा में मौजूद संपूर्ण ज्ञानराशि साहित्य है| साहित्य का यही अर्थ वांगमय शब्द से व्यक्त होता है|
द्विवेदी-युग:
द्विवेदी-युग में राष्ट्रीय काव्य धारा के अंतर्गत प्रमुख कवि- मैथलीशरण गुप्त, नाथूराम शर्मा 'शंकर', गया प्रसाद शुक्ल 'सनेही', राम नरेश त्रिपाठी तथा राय देवीप्रसाद 'पूर्ण' आदि हैं| इन कवियों की रचनाओं में राष्ट्रीयता, स्वदेश प्रेम तथा भारत के अतीत गौरव का गान मिलता है|
सन् 1903 ई. में नौकरी छोड़कर उन्होंने 'सरस्वती' का सफल सम्पादन किया। इस पत्रिका के सम्पादन से उन्होंने हिन्दी साहित्य की अपूर्व सेवा की। उनकी साहित्य सेवा से प्रभावित होकर काशी नागरी प्रचसरिणी सभा ने उन्हें 'आचार्य' की उपाधि से विभूषित किया|
महावीर प्रसाद द्विवेदी जी ने अपने लिए चार आदर्श निश्चित किए-
2. रिश्वत न लेना
3. ईमानदारी से अपना काम करना और
4. ज्ञान वृद्धि के लिए निरंतर प्रयत्न करते रहना।
अनुदित—
- मेघदूत
- बेकन – विचारमाला
- शिक्षा
- स्वाधीनता
- विचार – रत्नावली
- कुमासम्भव
- गंगालहरी
- विनय – विनोद
- रघुवंश
- किरातार्जुनीय
- हिन्दी महाभारत
शैली—
कठिन – से कठिन विषय को बोधगम्य रूप में प्रस्तुत करना द्विवेदी जी की शैली की सबसे बड़ी विशेषता है | इनकी शैली के प्रमुख रूप निम्नलिखित है
- परिचयात्मक शैली
- गवेषणात्मक शैली
- भावात्मक शैली
- व्यंग्यात्मक शैली
- आलोचनात्मक शैली
- विचारात्मक शैली
- संवादात्मक शैली
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